दुमका राजा कौन — शिबु,बाबूलाल या सुनील

210
AD POST

अजीत कुमार ,जामताड़ा,28 मार्च
लोकसभा चुनाव २०१४ में दुमका संसदीय प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है. झामुमो
सुप्रीमो शिबू सोरेन को अपनी शाख बचानी है तो झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल
मरांडी के गृह क्षेत्र छोड़ने के कारण उनकी प्रतिष्ठा दाव पर लगी है, वहीँ
नमो की लहर पर सवार भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन अपनी नैया पार करने की
जुगाड़ लगा रहे है.

सूबे के दो पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन एवं बाबूलाल मरांडी समेत नमो की
लहर में भाजपा के प्रत्याशी सुनील सोरेन के चुनावी दंगल में उतरने की
घोषणा से चुनावी सरगर्मी तेज हो गयी है। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के
समक्ष अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने की चुनौती है तो झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल की
राजनीतिक मापदंड को यह लड़ाई निर्धारित करेगी. सुनील को इन दोनों के दंगल में
अपने लिए एक गली की तलाश है। जो काफी मुस्किल दिख रही है.

AD POST

कमोबेश यह क्षेत्र शिबू और बाबूलाल दोंनो की कर्म भूमि है. महाजनी
आन्दोलन के समय से शिबू सोरेन इस क्षेत्र में काम किया है तो बाबूलाल
मरांडी ने संघ के प्रचारक के रूप में इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है.
आज राजनीतक हालत बदले हुए है, झामुमो से कई कद्दावर नेता पार्टी छोड़ चुके
है और झामुमो की जड़ खोदने में लग गए है. मरांडी के लिए जमीं पुराना है तो
हालत मुश्किल है. वहीँ सुनील सोरेन से कार्यकर्ता नाराज चल रहे है. ऐसे
में मोदी लहर पर कितना तैर पाएंगे कहना मुश्किल है.

बहरहाल अगर विधान सभा सीटों के हिसाब से दुमका संसदीय सीट की स्थिति पर
नजर डालें तो अभी यह संसदीय सीट झामुमो के खाते में है। कुल छह विधान सभा
सीट वाले इस संसदीय सीट पर झामुमो का एकतरफा दबदबा है। छह में से पांच
दुमका, जामा, शिकारीपाड़ा, जामताड़ा एवं सारठ विधान सभा सीट पर झामुमो के
विधायक काबिज है। एकमात्र नाला विधान
सभा सीट भाजपा के कब्जे में है। इतना ही नहीं झामुमो के दो विधायक फिलहाल
सूबे में सत्ता शीर्ष पर बैठे हैं।
दुमका से झामुमो विधायक हेमंत सोरेन सूबे के मुख्यमंत्री हैं तो सारठ
विधायक शशांक शेखर भोक्ता विधान सभा अध्यक्ष के पद पर काबिज हैं।
शिकारीपाड़ा के विधायक नलीन सोरेन लगातार पांचवीं बार प्रतिनिधित्व कर
रहे हैं। इसके अलावा जामताड़ा से विष्णु भैया एवं जामा से सीता सोरेन
पार्टी की विधायक हैं। कुल मिलाकर झामुमो के लिए दुमका संसदीय सीट फिलहाल
अभेद दुर्ग जैसी है। इससे इतर इस दुर्ग को भेदने की चुनौती झाविमो
सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी एवं भाजपा के सुनील सोरेन के समक्ष है। बाबूलाल
1999 के बाद यहां से पहली बार गैर भाजपाई बनकर संसदीय चुनाव लड़ेंगे।
इससे पहले बाबूलाल यहां से भाजपा की टिकट पर 1998 की चुनाव में शिबू
सोरेन को शिकस्त देकर संसद पहुंचे थे। अगले ही साल वर्ष 1999 में हुए
चुनाव में बाबूलाल ने दूसरी जीत दर्ज की थी और शिबू सोरेन की पत्नी रुपी
सोरेन किस्कू को शिकस्त देने में सफल हुए थे। अब बदले हालात में बाबूलाल
मरांडी चुनाव मैदान में हैं। वे अपनी अलग पार्टी झाविमो बनाकर राजनीतिक
कद को बढ़ाने की तैयारी में यहां से ताल ठोंकने में जुटे हैं। अलबत्ता
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन शिबू सोरेन से हार
गए थे लेकिन इसके बाद भी पार्टी ने इन पर दोबारा भरोसा किया है। भाजपा को
आसरा है कि नमो की लहर में इस बार सुनील संसद तक जरूर पहुंचेंगे।

बहरहाल, तीनों दल इसके लिए चुनावी चाक-चौबंद में जुट गए हैं। तेज गति से
चुनावी हलचल आगे बढ़ती जा रही है और मतदाता भी सब कुछ समझने की कोशिश कर
रहे हैं। हालांकि दुमका सीट पर चुनाव 24 अप्रैल को होना है और इसमें अभी
काफी समय है. इस अंतराल में यहां की राजनीतिक तपिश चरम पर होगी और समीकरण
बनते बिगड़ते रहेंगे।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More