कई शिव भक्तों ने अपने बांह में रस्सी को आर-पार कर रोजनी फोड़वाया
अजीत कुमार ( अज्जु)
सरायकेला।
: सचमुच शिव की भक्ति में गजब की शक्ति होती है. तभी तो भगवान अपने भक्तों पर कृपा रखते हैं. कुछ ऐसा ही दिंदली बस्ती में आयोजित एतिहासिक चडक़ पूजा सह मेला में शिव भक्तों ने कर दिखाया है. पूजा में शामिल शिव भक्तों ने पूजा के दौरान न केवल उपवास रखा, बल्कि अपने बांह में रोजनी भी फोड़वाया, जिसमें बच्चे भी शामिल थे. इसे देख वहां मौजूद लोग दांतों तले अंगुलियां दबा लीं. प्राचीन काल से चली आ रही यह पूजा प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह के दूसरे सप्ताह में मनायी जाती है. इस बार भी दो दिवसीय चडक़ पूजा सह मेला मंगलवार को संपन्न हुई. शिव मंदिर परिसर में इसका आयोजन किया गया, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए. वहीं इसे देखने काफी संख्या में लोग जमा हुए.
रोजनी फोड़ कार्यक्रम रहा आकर्षण का केंद्र
चडक़ मेले में सुबह से ही लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. सबसे पहले रोजनी फोड़ कार्यक्रम आयोजित हुआ. सुबह नौ बजे से 12 बजे तक चले इस कार्यक्रम में करीब दो दर्जन से अधिक शिव भक्तों ने रोजनी फोड़वाया. शिव भक्त गाजे-बाजे के साथ दिंदली स्थित तालाब (अब भर दिया गया) से अपने बांह में रोजनी फोड़ व खटिया बिनने वाले रस्सी को आर-पार कर नाचते हुए शिव मंदिर परिसर तक आये. ऐसी मान्यता है कि पीठ व बांह में अंकुशी घोंपने के बाद जख्म पर मंदिर के सिंदूर लगाने से सब कुछ ठीक हो जाता है. वहीं दो दिवसीय मेले में आकर्षण बनाये रखने के लिए विश्व प्रसिद्ध सरायकेला व पुरूलिया शैली मेें छऊ नृत्य का आयोजन किया गया. सोमवार की रात्रि को सरायकेला शैली में गांव के ही दो समितियों द्वारा छऊ नृत्य का आयोजन किया गया. मंगलवार की रात्रि में पुरुलिया शैली में छऊ नृत्य का आयोजन किया गया, जिसमें श्यामपदो महतो (बागमुंडी) बनाम शशधर कालिंदी (पुरुलिया) द्वारा छऊ नृत्य प्रस्तुत किया गया, जो रात भर तक चला. आयोजन को सफल बनाने में पूजा कमेटी समेत ग्रामवासियों का काफी योगदान रहा. मालूम हो कि प्राचीन काल यानी 1818 से दिंदली में चडक़ पूजा होती आ रही है. अगले साल चडक़ पूजा का दो सौ वर्ष पूरा होगा.
51 बकरे की दी गयी बलि
चडक़ पूजा के दौरान इस बार कुल 51 बकरे की बलि दी गयी. शिव मंदिर के सामने शिव पूजा के पश्चात लोग अपनी-अपनी मन्नत के हिसाब से पाठा (बकरे) की बलि भी चढ़ायी. बलि देने की विधिवत पूजा राजपुरोहित विनोद बनर्जी (निवासी गुढ़ा, सरायकेला) ने संपन्न करायी. जबकि सुनील प्रमाणिक ने बलि चढ़ाने का कार्य पूरा किया.
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