संजय कुमार सुमन


सिवान ।
” साखों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम,आँधिया से कह दो औकात में रहें ”
व्यापक परिपेक्ष्य में कही गई राहत इंदौरी की उक्ति कविता चैधरी के संदर्भ में अक्षरशः प्रासंगिक है। आँधियां कोई भी हो यह प्राकृतिक वैचारिक,संस्कृति,सामाजिक और शैक्षिक व्यवस्था को तहस नहस कर डालता है। होश संभालते ही कविता का सामना भी कई आँधियों से हुआ। अशिक्षा,पिछड़ेपन और नशाखोरी की आँधियों से उसका घर-समाज तबाह था।
हम बात कर रहे हैं सिवान जिलान्तर्गत हुसैनगंज प्रखंड के गोपालपुर की कविता चैधरी की। गोपालपुर गांव के बुनियाद पासी के घर जन्म लेने वाली कविता चैधरी को अपने गांव के बच्चे-बच्चे को शराब के नशे में डूबा देख बड़ी कोफ्त होती थी। गांव में कोई विद्यालय नहीं था। तकरीबन हर घर में शराब की भट्ठियां चलती थी। पढ़ने की उम्र में बच्चे शराब के नशे में डूबे रहते।
आलम यह था कि महिलाओं को सड़क पर चलना दूभर था। यदि कोई युवती पढ़ने का साहस कर घर की दहलीज लांघ भी देती तो मनचलों की छेड़खानी से तंग आकर आगे पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। ऐसे वातावरण में कविता का हृदय चित्कार उठता। वह इन आँधियों से टकराने का मजबूत ईरादा कर चुकी थी। उसने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी। वंचित तबके में जन्म लेने के बाद भी कविता ने खुद को कभी अबला और असहाय नहीं समझा। अपने शराबियों द्वारा आए दिन घरेलू हिंसा और मारपीट की घटनाओं से तंग आकर गांव में खुले देशी शराब के ठेके को बंद कराने को ठान ली। लगातार शराब के खिलाफ आन्दोलन चला कर अंततः अपने गांव से ठेका को बंद करवा कर ही दम लिया।
कविता बताती है कि जब वह नोंवी कक्षा में पढ़ती थी तभी स्थानीय एनजीओ अमित वेलफेयर ट्रस्ट से जुड़ गई और ट्रस्ट के संस्थापक शंभू सिंह और सचिव अमित कुमार सिंह की प्रेरणा से अपने महादलित मुहल्ले के छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी। कहते हैं “अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,लोग आते गए और कारवाँ बनता गया।” बच्चों के बीच अकेली कविता द्वारा शुरू किया गया यह अभियान कारवाँ में तब्दील होता गया। कारवाँ में महादलित मुहल्ले की महिलाएँ जुड़ती चली गई और सबने मिलकर कविता के नेतृत्व में शराबियों के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन चलाया। इसका परिणाम यह हुआ कि गोपालपुर महादलित मुहल्ले में चलने वाले देशी शराब के ढेके को बंद करना पड़ा। हालांकि यह सब आसानी से संभव नहीं हो पाया। एक महादहलत लड़की द्वारा स्वैच्छिक स्कूल चलाना कुछ लोगों को नागवार गुजरा। उन्होनें इसका जमकर विरोध किया लेकिन महिलाओं के समर्थन के आगे विरोधियों के हौसले पस्त हो गए। हौंसलों की ऊँची ऊड़ान भरती हुई कविता ने अपनी पढ़ाई तो पूरी की ही साथ ही वंचित समुदाय एवं युवतियों के लिए निःशुल्क विद्यालय खोलकर पढ़ाया भी। इससे भी एक कदम आगे बढ़कर उसने महिला स्वाबलंबन के लिए लड़कियों को जूड़ो कराटे और सिलाई-कटाई का प्रशिक्षण दे रही है।
आज कविता अपने क्षेत्र के बच्चों के लिए ‘आईकॉन’ की हैसियत रखती है। उसे इन रचनात्मक कार्यो के लिए सामाजिक एवं सरकारी स्तर पर सम्मानित भी किया गया। स्थानीय बीडीओ ने प्रखंड कार्यालय बुलाकर सम्मानित किया तो भारत सरकार के युवा व खेल मंत्रालय की संस्था ‘नेहरू युवा केन्द्र’ ने जिला युवा पुरस्कार एवं लक्ष्मीबाई पुरस्कार देकर कविता के कार्यो को सराहा। आज कविता शिक्षा के प्रति समर्पण एवं शराब विरोधी आन्दोलन की जीती-जागती मिशाल है। लिहाजा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से उम्मीद है कि वे भी कविता को सम्मानित करेंगे।