जमशेदपुर-शास्त्रीय संगीत की नई युवा पीढ़ी की पौध में समर्पण की कमी है और शास्त्रीय संगीत के लिए चाहिए दीवानगी

जमशेेदपुर।
रस, रंग और भाव प्रधान शास्त्रीय संगीत की गायन शैली ठुमरी शास्त्रीय संगीत के मंचों की जान हुआ करती थी, मगर इसका दायरा अब सिमट रहा है। शास्त्रीय संगीत और गायन के प्रति घटती अभिरुचि से इसके प्रति रुझान कम हुआ है। यह चिंता नामी गिरामी ठुमरी गायकों को भी सता रही है।
जमशेदपुर की बहु एवं कोलकाता की जानी मानी शास्त्रीय संगीत गायिका सोहिनी मजुमदार शास्त्रीय संगीत की तालीम पंडित अमियों रंजन बंदोपाध्याय , विदुषी सुरंजना बोस , विदुषी डलिया राहुत ( श्रीमती डालिया देश की प्रख्यात ठुमरी गायिका स्वर्गीय गिरिजा देवी की वरीय शिष्या थी) एवं पंडित तुषार दत्ता से प्राप्त की Iसोहिनी आल इंडिया रेडियो व दूरदर्शन की “A” ग्रेड वर्ग की नियमित कलाकार है एवं भारत सरकार के ICCR में “ख्याल” की मान्यता प्राप्त कलाकार है I सोहिनी को बचपन में की संगीत की प्रेरणा अपने दादा जी स्वर्गीय रबिन्द्रनाथ चट्टोराज एवं अपनी माँ श्रीमती संगीता मजुमदार से मिली I सोहिनी ने संगीत प्रभाकर की डिग्री प्रयाग संगीत समिति इलाहबाद से प्राप्त की I
सोहिनी ने कहा कि गायकी की नई पौध में समर्पण की कमी है और शास्त्रीय संगीत के लिए दीवानगी चाहिए।
आमश्रोता में अब ठुमरी कितनी प्रासंगिक है?
सोहिनी : खयाल के बाद ठुमरी शास्त्रीय संगीत की सबसे ज्यादा प्रचलित संगीत विधा है। ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत की ऐसी जीवंत विधा है जिसके प्रति अब लोगों का रुझान कम हुआ है। या यों कहें कि अब लोगों के पास समय की कमी है।
इस हालात में नए ठुमरी गायक कितनी रुचि ले रहे हैं?

सोहिनी : बात ठुमरी की हो अथवा शास्त्रीय संगीत की अन्य विधाएं, सभी समर्पण मांगती है। कलाकारों की नई पौध में इसकी बहुत कमी है। मैने अपने गुरु विष्णुपुर घराना के पंडित अमियो रंजन बंदोपाध्याय के सान्निध्य में वर्षो मेहनत की है।
शहर के युवा कलाकारों को शार्टकट से बचने के लिए क्या संदेश देंगी?
सोहिनी : टीवी और सोशल मीडिया पर त्वरित सफलता की कहानी आज युवाओं को शार्टकट सिखाती है, लेकिन कामयाबी दिन-रात मेहनत, जुनून और दीवानगी से मिलती है। गुरुओं के सान्निध्य में रहकर ही सफलता मिलती है।
ठुमरी गायन में किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
सोहिनी : देखिए.. ठुमरी शास्त्र और भाव का सम्मिश्रण है। शास्त्र के बंधन थोड़े ढीले कर दिए जाते हैं, जिसमें उसकी गुणवत्ता तो रहती है लेकिन भाव में लचीले हो जाते हैं। जब भावनाएं बंधनमुक्त होकर तीव्र वेग में बहती हैं तो ठुमरी की उत्पत्ति होती है।
देश में शास्त्रीय संगीत की दशा दिशा पर क्या कहेंगी।
सोहिनी : फिल्मी गीत हों फ्जूयन या संगीत की अन्य विधाएं, बिना शास्त्रीय संगीत के टिक नहीं सकते। परंपरागत शास्त्रीय संगीत सीखने वाले ही आज देश दुनिया में झंडा फहरा रहे हैं। नृत्य, संगीत और गीत बिना शास्त्र के परवान चढ़ नहीं सकते। इसलिए इसका महत्व यथावत है।
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