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जनतंत्र रूपी वाहन का चक्र है संचार तंत्र————-

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कल्याणी कबीर,जमशेदपुर,

मीडिया  को जनतंत्र  का  प्रकाश  स्तम्भ  और  चतुर्थ स्तम्भ है .

सूचना  तंत्र  ही  जन को   जनतंत्र  से  जोड़ता  है .

राष्ट्रीय  सीमा का  अतिक्रमण कर  मानवीय मूल्यों की रक्षा करता है .

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संचार  तंत्र राजनीतिक और सरकारी  दवाबों से मुक्त होकर  कार्य करे .

मीडिया  को जनतंत्र  का  प्रकाश  स्तम्भ  और  चतुर्थ स्तम्भ कहा  गया है   . इन दो  शब्दों से  ही  यह   ज्ञात्त हो जाता  है  कि मीडिया  की  जनतंत्र  में कितनी सशक्त   भूमिका  है . मीडिया  यानी  जन संचार  के माध्यम  ,, अब  ये  माध्यम दृश्य  भी  हो  सकते हैं , श्रव्य  भी  और  दोनों भी  . पर  सूचना  तंत्र  ही  जन को   जनतंत्र  से  जोड़ता  है  , जनतंत्र में जनता  का  विश्वास  कायम  रहे  इसके  लिए  प्रयासरत  रहता  है .

जनतंत्र  जनता  का तंत्र है और जन के  मन की  विचारधारा  और  सोच को  यह सूचनातंत्र बहुत  ही  प्रभवित करता  है  . तभी  तो  इतिहास  ने  जब भी  करवट  बदला  है  ,   भिन्न – भिन्न देशों में जब – जब ,जहाँ –   जहाँ  क्रांति  की  आँधी  आई  है  , बदलाव की   बयार  बही  है  वहाँ मीडिया  की  उल्लेखनीय  भूमिका  नज़र  आई  है  .  सूचना तंत्र  किसी   भी  समाज  के  बदलते  प्रतिमानों , मूल्यों , राजनीतिक , सामाजिक , सांस्कृतिक और  आर्थिक  परिस्थितियों का दर्पण होते  हैं . इतना  ही नहीं , वो समाज  को  विश्व से जोड़ते  हैं ताकि  हम ”  वसुधैव  कुटुम्बकम ”  की विचारधारा  के अनुगामी  बन  सकें  , आज का मानव राष्ट्रीय  सीमा का  अतिक्रमण कर  मानवीय मूल्यों की रक्षा  हेतु  वैचारिक  धरातल पर  विश्व के अन्य लोगों से जुड़ पा रहा है तो  इसका  श्रेय पूरी  तरह से मीडिया को  ही जाता है .इससे    एक  फायदा  यह भी  होता  है  कि  एक  जगह  चल रही  मानव – मूल्यों और अधिकारों की  लड़ाई  अपनी सीमा का अतिक्रमण कर  पूरे  विश्व पटल पर लड़ी जाने लगती  है . अवचेतन रूप  से  हर देश का  नागरिक  एक  दूसरे  के दुःख  दर्द  से  जुड़ा हुआ महसूस करता  है  और मीडिया  जनतांत्रिक मूल्यों का वाहक बन   मानव को मानव से अवचेतन धरातल पर बाँधने की यह  महती ज़िम्मेवारी  अपने काँधे  पर  उठाये रहता है  .

 

 

प्रजातंत्र में हमें विचारों के अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता    है  और  इस आज़ादी  का  भरपूर  उपयोग  करती  हैं मीडिया  . सूचना तंत्र  के लिए  जरुरी  है  कि  वो  डर  , हिचक , स्वार्थ  को  ताक पर  रखकर  जनता  के हक़  की  बात  करे  और शासकों की  निरंकुशता  पर सवाल  उठाये . समाज  के अंदर  कोढ़ की तरह व्याप्त  बुराइयों पर इनकी कलम चले और वो जनता के  बीच  उसे लेकर  जागरूकता फैलाएँ . मीडिया  और  जनता  दोनों ही एक दूसरे  के  ” माउथ पीस ” हैं . मीडिया  जनता  की बात  उठाती  हैं और  जनता  भी  मीडिया  के माध्यम  से  ही  अपनी बात  , मत , समर्थन , विरोध     शासकों तक पहुँचाता  है . अविश्वास  के दीमक से प्रजातंत्र की जड़ें खोखली  होती जा रही  हैं ऐसे में  हम कह  सकते  हैं कि  सूचना तंत्र  जनता  के समक्ष  एक ऐसा  मंच     प्रस्तुत  करता है  जहाँ  वो  निर्भीक  होकर  अपने  उद्गार  और अपनी बात रख पाती  है .शायद  यही  कारण है  कि  देश  –  विदेश के  शासक और बड़े  –  बड़े तानाशाह  भी  मीडिया  की  शक्ति  की  अवहेलना  करने  का  दुस्साहस   नहीं कर पाते .  नेता  भी  जानते हैं कि  जनता  की  नब्ज़   मीडिया  के माध्यम से  ही मापी  जा  सकती  है  . शासक    वर्ग  मीडिया  तंत्र के माध्यम   से ही   भाँप  जाता है  कि जनता  का  रुख क्या है , उनकी  शिकायतें क्या  है  , फिर  इसी  आधार पर  वो  अपनी कमियों को पाटने  की  कोशिश करता  है  और  जनहित में कार्य करके  जनता का मन और मत  जीतने  की  कोशिश  करता है  . जनतंत्र  के  चतुर्थ  स्तम्भ  से  ऐसी  अपेक्षा  राजा और  प्रजा  दोनों को  होती  है  कि  वो  इन दोनों के  बीच  संवाद  और संवेदनाओं के  पुल  बनाये .

 

 

आज का परिदृश्य जटिल है  ,  स्थिति   चिंतनीय  है  .राजनीतिक   पटल  पर  हम इतने  नीचे  गिर चुके हैं कि  जनतंत्र की गरिमा की रक्षा महत्वपूर्ण हो गया है और   मीडिया  की  जवाबदेही    पहले की अपेक्षा काफी  बढ़ गई  है .ऐसे हालत में  स्वतंत्र  मीडिया  तंत्र  को चाहिए कि वो  निरपेक्ष और तटस्थ होकर  सत्य से जनता  का  साक्षात्कार कराये . सच  लिखना और बोलना  जोखिम   भरा है  पर  मीडिया  के लोग  सच के पहरुए नहीं बनेंगे तो  जनतंत्र का हर स्तम्भ  खोखला  होता  जाएगा  .सूचना तंत्र के कर्मयोगियों को धर्म , जाति  , रुतबा  , संप्रदाय  और शौहरत     से प्रभावित हुए बिना  अपनी बात जनता  के  सामने रखनी  होगी . राजनीति  के कलुषित  दौर में जहाँ शासकों के लिए  भोली – भाली जनता एक वोट बैंक से अधिक कुछ नहीं है  वहाँ  ” सिंहासन खाली   करो  कि जनता  आती है  ”  जैसी  पंक्ति का आत्मविश्वास सूचना तंत्र  ही जनता में जगा सकता    है . भारत  आज भी  गरीबों    , बेरोजगारों   और अविकसित गाँवों  वाला देश है  ऐसे में मीडिया ही  जनता  के  मस्तिष्क  में वो दृढ –  विचार ,आत्मविश्वास और  मानसिक शक्ति  जगा सकता है जिसके बल पर  वह शासक दल  को  जन हित  के बारे में सोचने और जन कल्याण कारी  कार्य करने को विवश कर सके .घरेलू  हिंसा , कन्याभ्रूण   हत्या , लिंगभेद . बलात्कार , यौनशोषण   जैसी  बुराइयाँ  जो पहले चारदीवारी के बीच ही  छुपी रह जाती थी   आज मीडिया  ने उसे  समाज  के कठघरे में  ला  खड़ा किया है  ताकि हम सवस्थ  मानसिकता के साथ इन मुद्दों पर  सोचें और  इसे दूर करने हेतु कारगर कदम उठायें . आरुषि हत्याकांड , निर्भया कांड ,  तहलका तरुण तेजपाल , ताज होटल पर आतंकी  हमला  इन मुद्दों पर  मीडिया  ने  ” हल्ला बोल ” की राजनीति  अपनाई . नतीजा  हम सब के सामने है . सरकार अपना पीछा  नहीं छुड़ा पाई और जहाँ   जो सही लगा  उचित    निर्णय लिया . ये जन और  जनतंत्र दोनों के लिए ही  सुखद    है कि मीडिया  पर  अभी  भी जन  समुदाय  का  भरोसा  बना हुआ है   .   अत: जरुरी  है  कि  संचार  तंत्र राजनीतिक और सरकारी  दवाबों से मुक्त होकर  कार्य करे साथ ही  इन के माध्यम  से ऐसी कोई बात  न फैलाये   जिससे   समाज  में जाति , संप्रदाय  और वर्ग की दीवारें खड़ी  हो  जाए  .संवेदनशील  मुद्दों पर  मीडिया  के दवारा    यदि  सोच समझ  कर कलम  चलाई  जाए , विचार व्यक्त किये जाएँ तो विश्व   के वाङ्ग्मय में शांति और  सौहार्द  का  अद्भुत  वातावरण तैयार  किया  जा सकता है , जो आज के वक्त कि सबसे बड़ी जरुरत है  . उम्मीद है कि मीडिया  अपनी महत्ता समझेगा और विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र भारत के लिए  सकारात्मक स्तम्भ बना रहेगा  .

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