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गरीबो के पहुँच से दूर होते जा रहे है देशी फ्रीज़

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संवाददाता.जमशेदपुर,11 अप्रैल
आज घरों में आधुनिकता व फैशन हावी हो लेकिन पुरानी परंपराओं व चीजों का महत्व आज भी बरकरार है। गर्मी से राहत पाने के लिए पूर्ण रूप से लोग बिजली पर निर्भर है। लेकिन बिजली की अनियमित आवाजाही से सभी लोग परेशान है लेकिन प्रकृति प्रदत्त संसाधन का मजा कुछ और ही है। यह देशी फ्रिज ( यानी घड़ा )गरीब व अमीर सभी की हलक को तर करता है। इतना ही नहीं घड़ा का पानी पीना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। गर्मी के आते ही लोग अपने अपने घरों में देशी फ्रिज अर्थात मटके और सुराही के इंतजाम में लग जाते थे। समय की मार ऐसी पडी की हर तरफ फैली मंहगाई ने इन देशी फ्रिज को भी अपनी जकड में ले लिया। अब ये बिकते है लेकिन गरीब के बस की बात नहीं है कि वो इन्हें खरीद कर अपनी प्यास बुझा लें।
शहर में सालों से मटके बेच रहे कुम्हारों के मुताबिक डिमांड में कोई कमी नहीं है बस इतना अंतर है कि अब घडों के दाम पहले से बढ़ गए है पर मुनाफ़ा घट गया है मंहगाई के कारण लागत बढ़ गयी है लेकिन बिक्री पहले जैसी नहीं रही किसी तरह गुजारा चल रहा है । हजारों रुपये खर्च कर पानी का जो स्वाद फ्रिज नहीं दे पाते हैं वह देसी घड़ा देते हैं ।
अब महंगाई की मार इस देसी फ्रिज पर भी पड़ गई है। पहले जो मटका तीस रुपए में मिल जाता था आज उसकी कीमत तिगुनी हो गई है। तिगुनी कीमतों के कारण गरीब तबका इसे खरीदने से पीछे भी हट रहा है। कुम्हारों के मुताबिक मटकों का निर्माण विशेष प्रकार की मिटटी से होता है इसलिए भी इनके भाव बढ गए है। हम भी मजबूर है क्योकिं ये ही हमारा सीजन भी हैं।

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