जमशेदपुर-आर्थिक प्रजातंत्र पर आज एक व्याख्यान का आयोजन बिष्टुपुर माइकल जॉन ऑडिटोरियम में

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जमशेदपुर।

“प्र उ त यूनिवर्सल” की ओर से आयोजित किया गया इस कार्यक्रम की शुरुआत “प्र उ त” दर्शन के प्रणेता श्री प्रभात रंजन सरकार जी के तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई तत्पश्चात बारी-बारी से मंच पर उपस्थित मुख्य वक्ता आचार्य विमलानंद अवधूत एवं विशिष्ट अतिथि आचार्य परमानंद अवधूत पारसनाथ प्रसाद इंदु देवी डॉक्टर आशु जितेंद्र सिंह सुधीर सिंह डॉक्टर नवल शर्मा एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष अरविंद लाल को पुष्प देकर सम्मानित किया गया कार्यक्रम का संचालन राजेंद्र प्रसाद जी ने की आचार्य विमलानंद अवधूत ने आर्थिक प्रजातंत्र पर अपने विचार रखते हुए कहां की आर्थिक प्रजातंत्र को समझने के पहले राजनीतिक लोकतंत्र की कुछ बातें जाननी जरूरी है प्रजातंत्र का दूसरा नाम ही राजनीतिक लोकतंत्र है जिसका मतलब है आर्थिक और राजनैतिक केंद्रीकरण राजनैतिक लोकतंत्र में जनता को वोट डालने का अधिकार दिया है लेकिन साथ ही इस व्यवस्था ने लोगों से आर्थिक समानता के अधिकार को छीन लिया है जिस कारण अमीर और गरीब के बीच दूरी बहुत है जनता की क्रय क्षमता में अत्यंत विषमता रोजगार भोजन की उपलब्धता और सामाजिक सुरक्षा के बीच काफी अंतर है भारत में प्रचलित लोकतंत्र भी एक राजनैतिक लोकतंत्र है जो कि गरीबों के शोषण की उत्तम प्रणाली बन चुकी है लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमी है इसका सार्वभौमिक मताधिकार उम्र आधारित मताधिकार यह जनता को धोखा देने के लिए बनाया गया है भारत का संविधान को तीन बड़े शोषक समूह ो ने मिलकर बनाया था अंग्रेजी साम्राज्यवाद भारतीय पूंजीपति और भारतीय साम्राज्यवाद जिसमें कुछ एक सत्ता लोभी नेताओं द्वारा पर्दे के पीछे से पूरे राज नैतिक लोकतांत्रिक सामाजिक और आर्थिक ढांचे को नियंत्रित किया जाता है राजनैतिक प्रजातंत्र या उदार लोकतंत्र में पूरे मीडिया जैसे रेडियो दूरदर्शन और समाचार पत्रों पर पूंजीपति और नेता ही नियंत्रण रखते हैं और समाजवादी देशों में प्रशासनिक अधिकारी और नौकर शाह देश को विनाश की कगार पर धकेलने में आगे रहते हैं .लोकतंत्र इन दोनों रूपों में ईमानदार सक्षम समाजसेवी नेताओं के उभरने की कोई संभावना नहीं है प्रजातंत्र में जनता को आर्थिक आजादी कोई रास्ता नहीं है राजनीतिक लोकतंत्र के बजाए” प्र उ त”प्रगतिशील उपयोग तत्व आर्थिक लोकतंत्र की मांग करता है इस आर्थिक लोकतंत्र में आर्थिक ताकत आम आदमी के हाथ में होना चाहिए सभी व्यक्ति को समाज में क्रय शक्ति की क्षमता होनी चाहिए सभी को जीवन की न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति की गारंटी होनी चाहिए जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण वितरण और तर्कसंगत ढंग से अधिकतम उपयोग करना होगा
आर्थिक आजादी दिलाने का एकमात्र साधन है प्र उ त
प्र उ त नारा है शोषण को समाप्त करने के लिए हमें राजनैतिक लोकतंत्र नहीं आर्थिक लोकतंत्र चाहिए सभी लोकतांत्रिक देशों में आर्थिक शक्ति कुछ खास गिने चुने लोगों के हाथों में ही केंद्रित हो जाती है जबकि समाजवादी और साम्यवादी देशों में यही शक्ति एक पार्टी विशेष के कुछ लोगों के हाथों में आ जाती है
लेकिन जब आर्थिक आजादी में आम जनता के हाथ में आर्थिक शक्ति आ जाएगी तो नेताओं का वर्चस्व समाप्त हो जायेगा
राजनीतिक दल हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा पार्टी विहीन व्यवस्था आर्थिक लोकतंत्र की संस्थापना संभव हो जाएगी

आर्थिक लोकतंत्र की आवश्यकता है और विशेषताएं… आर्थिक प्रजातंत्र में युग के अनुसार सभी लोगों को न्यूनतम आवश्यकताओं की गारंटी की व्यवस्था उनके संविधान में होगा क्रय क्षमता में बढ़ोतरी होगा आर्थिक व्यवस्था और शक्ति स्थानीय लोगों के हाथ में होगा कच्चे माल का उपयोग स्थानीय लोगों के आवश्यकता की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाएगा कच्चा माल निर्यात नहीं होगा जहां कच्चा माल है वही उद्योग लगाया जाएगा उस उद्योग में स्थानीय लोगों को रोजगार दी जाएगी आर्थिक लोकतंत्र में प्रत्येक आर्थिक निर्णय स्थानीय लोगों के हाथों में होना चाहिए आर्थिक लोकतंत्र में बाहरी लोगों का स्थानीय अर्थव्यवस्था में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप की अनुमति नहीं होनी चाहिए
आर्थिक लोकतंत्र या आर्थिक आजादी की सफलता के लिएआर्थिक प्रजातंत्र पर आज एक व्याख्यान का आयोजन बिष्टुपुर माइकल जॉन ऑडिटोरियम में

“प्र उ त यूनिवर्सल” की ओर से आयोजित किया गया इस कार्यक्रम की शुरुआत “प्र उ त” दर्शन के प्रणेता श्री प्रभात रंजन सरकार जी के तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई तत्पश्चात बारी-बारी से मंच पर उपस्थित मुख्य वक्ता आचार्य विमलानंद अवधूत एवं विशिष्ट अतिथि आचार्य परमानंद अवधूत पारसनाथ प्रसाद इंदु देवी डॉक्टर आशु जितेंद्र सिंह सुधीर सिंह डॉक्टर नवल शर्मा एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष अरविंद लाल को पुष्प देकर सम्मानित किया गया कार्यक्रम का संचालन राजेंद्र प्रसाद जी ने की आचार्य विमलानंद अवधूत ने आर्थिक प्रजातंत्र पर अपने विचार रखते हुए कहां की आर्थिक प्रजातंत्र को समझने के पहले राजनीतिक लोकतंत्र की कुछ बातें जाननी जरूरी है प्रजातंत्र का दूसरा नाम ही राजनीतिक लोकतंत्र है जिसका मतलब है आर्थिक और राजनैतिक केंद्रीकरण राजनैतिक लोकतंत्र में जनता को वोट डालने का अधिकार दिया है लेकिन साथ ही इस व्यवस्था ने लोगों से आर्थिक समानता के अधिकार को छीन लिया है जिस कारण अमीर और गरीब के बीच दूरी बहुत है जनता की क्रय क्षमता में अत्यंत विषमता रोजगार भोजन की उपलब्धता और सामाजिक सुरक्षा के बीच काफी अंतर है भारत में प्रचलित लोकतंत्र भी एक राजनैतिक लोकतंत्र है जो कि गरीबों के शोषण की उत्तम प्रणाली बन चुकी है लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमी है इसका सार्वभौमिक मताधिकार उम्र आधारित मताधिकार यह जनता को धोखा देने के लिए बनाया गया है भारत का संविधान को तीन बड़े शोषक समूह ो ने मिलकर बनाया था अंग्रेजी साम्राज्यवाद भारतीय पूंजीपति और भारतीय साम्राज्यवाद जिसमें कुछ एक सत्ता लोभी नेताओं द्वारा पर्दे के पीछे से पूरे राज नैतिक लोकतांत्रिक सामाजिक और आर्थिक ढांचे को नियंत्रित किया जाता है राजनैतिक प्रजातंत्र या उदार लोकतंत्र में पूरे मीडिया जैसे रेडियो दूरदर्शन और समाचार पत्रों पर पूंजीपति और नेता ही नियंत्रण रखते हैं और समाजवादी देशों में प्रशासनिक अधिकारी और नौकर शाह देश को विनाश की कगार पर धकेलने में आगे रहते हैं .लोकतंत्र इन दोनों रूपों में ईमानदार सक्षम समाजसेवी नेताओं के उभरने की कोई संभावना नहीं है प्रजातंत्र में जनता को आर्थिक आजादी कोई रास्ता नहीं है राजनीतिक लोकतंत्र के बजाए” प्र उ त”प्रगतिशील उपयोग तत्व आर्थिक लोकतंत्र की मांग करता है इस आर्थिक लोकतंत्र में आर्थिक ताकत आम आदमी के हाथ में होना चाहिए सभी व्यक्ति को समाज में क्रय शक्ति की क्षमता होनी चाहिए सभी को जीवन की न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति की गारंटी होनी चाहिए जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण वितरण और तर्कसंगत ढंग से अधिकतम उपयोग करना होगा
आर्थिक आजादी दिलाने का एकमात्र साधन है” प्र उ त”
“प्र उ त” का नारा है शोषण को समाप्त करने के लिए हमें राजनैतिक लोकतंत्र नहीं आर्थिक लोकतंत्र चाहिए सभी लोकतांत्रिक देशों में आर्थिक शक्ति कुछ खास गिने चुने लोगों के हाथों में ही केंद्रित हो जाती है जबकि समाजवादी और साम्यवादी देशों में यही शक्ति एक पार्टी विशेष के कुछ लोगों के हाथों में आ जाती है लेकिन जब आर्थिक आजादी में आम जनता के हाथ में या आर्थिक शक्ति आ जाएगी तो नेताओं का प्रदर्शन समाप्त हो जायेगा राजनीतिक दल हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा पार्टी भी इन व्यवस्था आर्थिक लोकतंत्र की संस्थापना संभव हो जाएगी आर्थिक लोकतंत्र की आवश्यकता है और विशेषताएं आर्थिक प्रजातंत्र में योग के अनुसार सभी लोगों को न्यूनतम और सकता हूं की गारंटी की व्यवस्था उनके संविधान में होगा क्रय क्षमता में बढ़ोतरी होगा आर्थिक व्यवस्था और शक्ति भारत में प्रचलित लोकतंत्र भी एक रावत की लोकतंत्र है जो कि गरीबो के श्वसन की उत्तम पहले बन चुकी है लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमी है इसका असर घूम-घूम मताधिकार उधारी मताधिकार दिया जनता को धोखा देने के लिए बनाया गया भारत का संविधान तीन बड़े सो सक्षम होने मिलकर बनाया था अंग्रेजी समाजवाद भारतीय पूंजीपति और भारती सम्राज्य्वाद एक दूसरे को आर्थिक लोकतंत्र में बाहरी लोगों का स्थानीय अर्थव्यवस्था में किसी भी प्रकार का हास्य की अनुमति नहीं होगी आर्थिक लोकतंत्र या आर्थिक आजादी की सफलता के लिए” प्र उ त “व्यवस्था को लागू करना अत्यंत जरुरी है यह सभी लोगों का आर्थिक रुप से कल्याण करेगा आर्थिक प्रजातंत्र में प्रत्येक मनुष्य के मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए अवसर भी प्राप्त होंगे आर्थिक लोकतंत्र ना सिर्फ मानव जाति की आर्थिक आजादी के लिए आवश्यक है बल्कि इस व्यवस्था के लागू होने पर वनस्पति जगत और पशु जगत के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगा आर्थिक प्रजातंत्र मनुष्य और अन्य जीव के वास्तविक जीवन मूल्य को स्थापित करेगी और समाज का सर्वांगीण विकास होगा व्यवस्था को लागू करना अत्यंत जरुरी है यह सभी लोगों का आर्थिक रुप से कल्याण करेगा आर्थिक प्रजातंत्र में प्रत्येक मनुष्य के मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए अवसर भी प्राप्त होंगे आर्थिक लोकतंत्र ना सिर्फ मानव जाति की आर्थिक आजादी के लिए आवश्यक है बल्कि इस व्यवस्था में लागू होने पर वनस्पति जगत और पशु जगत के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगा आर्थिक प्रजातंत्र मनुष्य और अन्य जीवो के वास्तविक जीवन मूल्य को स्थापित करेगी और समाज का सर्वांगीण विकास होगा

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