कौशीक घोष चौधरी
दुर्गा पूजा में ढाक का विशेष महत्व है. इसके बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है I दुर्गापूजा के दौरान ढाक (एक तरह का वाद्य यंत्र) बजाने की परंपरा काफी पुरानी है। ढाक की आवाज दशहरा का एहसास दिलाती है। शहर के सभी पंडालों में ढाक बजाने की परंपरा है। ढाक बजाने वालों का ग्रुप होता है, जो दुर्गापूजा में 20-25 हजार रुपए लेते हैं। कमेटियों के अनुसार इस बार शहर में 70
लाख रुपए सिर्फ ढाकी पर खर्च होंगे। शहर में 306 पंडाल बने हैं। औसतन एक टीम दुर्गापूजा में 22 हजार रुपए लेती है तो 70 लाख देने होंगे। यहां मेदिनीपुर, झारग्राम आदि जगहों से कलाकार आते हैं। इस साल करीब 3000 कलाकार यहां आएंगे। एक टीम में 7 से 12 सदस्य होते हैं। सात कलाकारों की टीम पर 15 हजार और 12 लोगों की टीम में 25 हजार रुपए खर्च होता है।
ढाकी का रेट
12 सदस्य – 20 – 25 हजार
7 सदस्य – 10 – 15 हजार
4 सदस्य – 5 – 8 हजार
“दुर्गापूजा में ढाकी का काफी महत्व है। पूजा के दौरान ढाक बजने से श्रद्धा बढ़ती है। इससे माता की कृपा बरसती है। परंपरागत ढाक का ज्यादा महत्व होता है।“ सुभाष बोस, सचिव शास्त्रीनगर दुर्गा पूजा कमिटी
Comments are closed.