World Heritage Day: विरासत की नींव पर खड़ा है JAMSHEDPUR
जमशेदपुर की ये ऐतिहासिक धरोहरें न केवल शहर की विरासत को समृद्ध करती हैं, बल्कि हमें याद दिलाते हैं कि विकास केवल इमारतें खड़ी करने में नहीं, बल्कि इतिहास को जीवित रखने में भी है। इस विश्व धरोहर दिवस पर आइए, इन स्थलों के संरक्षण का संकल्प लें और आने वाली पीढ़ियों के लिए इस समृद्ध विरासत को संजोकर रखें।

जमशेदपुर।
हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व धरोहर दिवस केवल स्मारकों और इमारतों की महत्ता को नहीं दर्शाता, बल्कि यह उस समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है जो पीढ़ियों को जोड़ती है। जमशेदपुर—भारत का पहला नियोजित औद्योगिक शहर—ऐसी ही विरासतों से समृद्ध है, जो टाटा स्टील और जमशेदजी टाटा की दूरदर्शिता का जीवंत प्रमाण हैं। टाटा स्टील की स्थापना के साथ ही जमशेदपुर में न केवल एक औद्योगिक क्रांति की नींव पड़ी, बल्कि एक समावेशी, बहुसांस्कृतिक और विविधतापूर्ण समाज का निर्माण हुआ।
इस विरासत की जड़ें न केवल जमशेदपुर की गलियों और इमारतों में हैं, बल्कि यह झारखंड और ओडिशा की साझी संस्कृति में भी गहराई से समाई हैं। खास तौर पर, टाटा स्टील की औद्योगिक यात्रा का अभिन्न हिस्सा रहा है ओडिशा के मयूरभंज रियासत से उसका ऐतिहासिक जुड़ाव, जहां से लौह अयस्क की आपूर्ति प्रारंभ हुई थी। 1925 में शुरू हुई नोआमुंडी की खदानें आज भी 100 वर्षों बाद टाटा स्टील की धरोहर और औद्योगिक सामर्थ्य का प्रतीक हैं।
आज जब हम विश्व धरोहर दिवस मना रहे हैं, आइए नजर डालते हैं जमशेदपुर और आसपास के उन ऐतिहासिक स्थलों पर, जो इस शहर की विरासत, स्थापत्य, सामाजिक समरसता और औद्योगिक गौरव को जीवित रखते हैं—और आने वाली पीढ़ियों को इसके इतिहास से जोड़ते हैं।
टाटानगर स्टेशन | 1891
टाटानगर जंक्शन रेलवे स्टेशन एक सदी से भी अधिक पुराना है। साकची को टिस्को स्टील प्लांट के लिए आदर्श स्थल के रूप में चिन्हित किये जाने के बाद, 1891 में कालीमाटी स्टेशन के रूप में स्थापित इस स्टेशन का विस्तारीकरण 1910 में किया गया था। 1919 में, टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी एन टाटा के सम्मान में स्टेशन का नाम बदलकर टाटानगर कर दिया गया। 1961 में, टाटानगर स्टेशन का नवीनीकरण किया गया और एक मुख्य प्लेटफ़ॉर्म और चार अतिरिक्त प्लेटफ़ॉर्म बनाए गए ।
वाटर वर्क्स | 1908
वाटर वर्क्स की स्थापना 1908 में हुई थी, जिसका निर्माण कार्य श्री गोडबोले के नेतृत्व में शुरू हुआ और बाद में श्री रेनकेन ने पूरा किया। जल आपूर्ति के लिए सुवर्णरेखा नदी पर 1200 फीट लंबा छोटा बांध और एक शक्तिशाली पंपिंग स्टेशन बनाया गया। एक प्राकृतिक घाटी में जलाशय और आधा मील लंबा बांध भी निर्मित किया गया। 1910 तक संयंत्र तैयार हो गया था और इसमें प्रति दिन एक मिलियन गैलन पानी पंप करने की क्षमता थी। 1921 में पैटरसन प्यूरीफिकेशन प्लांट शुरू हुआ, और 1996 तक इसकी क्षमता 37.0 एमजीडी तक पहुँच गई थी।
यूनाइटेड क्लब | 1913
सामाजिक मेलजोल और मनोरंजन गतिविधियों के लिए 1913 में डायरेक्टर्स बंगलो के सामने बना यह क्लब टिस्को इंस्टिट्यूट के रूप में शुरू हुआ। टेनिस कोर्ट, बॉलिंग एली, बिलियर्ड रूम और भव्य कॉन्सर्ट हॉल जैसे आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित यह क्लब सामुदायिक एकता का प्रतीक बना।1948 में छोटा नागपुर रेजिमेंट (सीएनआर) क्लब, जहाँ वर्तमान में लोयोला स्कूल स्थित है, के साथ इसके विलय के बाद इसका नाम यूनाइटेड क्लब पड़ा।

केओके मोनरो पेरिन मेमोरियल स्कूल |1915
केओके मोनरो पेरिन मेमोरियल स्कूल (KMPM) की स्थापना 21 जून 1915 को जमशेदपुर में हुई थी। यह शहर का पहला स्कूल था, जिसका नाम टिस्को प्लांट की स्थापना में सहयोग देने वाली चार्ल्स पेज पेरिन की पत्नी श्रीमती केओके मोनरो पेरिन के सम्मान में रखा गया। शुरुआत में यह इमारत एक न्यायालय थी जिसे बाद में स्कूल में परिवर्तित किया गया। हिंदी और बंगाली इसके प्रारंभिक शिक्षा माध्यम थे। तीन वर्षों के भीतर स्कूल में लड़कियों के लिए प्राथमिक, मध्य और उच्च विद्यालय भी शुरू किए गए।
सेंट जॉर्जस चर्च | 1916
सेंट जॉर्जस चर्च की आधारशिला 28 दिसंबर 1914 को रखी गई और 16 अप्रैल 1916 को यह चर्च अस्तित्व में आया। इसे सर दोराबजी टाटा द्वारा ईसाई समुदाय के लिए दी गई जमीन पर बनाया गया। जमशेदपुर में मंदिरों, मस्जिदों, चर्चों, गुरुद्वारों और मठों के लिए विशेष स्थान निर्धारित कर जमशेदजी टाटा ने एक समावेशी और धर्मनिरपेक्ष समाज की नींव रखी। यह शहर आज भी उस भावना को जीवंत रखे हुए है।
मद्रासी सम्मेलनी (1917):
मद्रासी सम्मेलन की स्थापना 1917 में बिष्टुपुर के जे रोड पर तमिल भाषी समुदाय की सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की गई थी। जब टिस्को प्लांट की स्थापना के समय बड़ी संख्या में तमिल परिवार जमशेदपुर आए, तब इस सम्मेलन ने उनके लिए एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में कार्य किया। सम्मेलन ने न केवल तमिल संस्कृति को संरक्षित किया, बल्कि जमशेदपुर में इसे बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डायरेक्टर बंगला (1918):
1918 में बना यह भव्य बंगला, टाटा स्टील के आरंभिक संचालन का केंद्र रहा है। सर दोराबजी टाटा जैसे दिग्गजों की मेज़बानी कर चुका यह बंगला, 8 बड़े कमरों, भोजन कक्ष, कार्ड रूम और हरे-भरे लॉन से सुसज्जित है। इस ऐतिहासिक स्थल ने पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित कई प्रमुख हस्तियों की मेजबानी की है जो जमशेदपुर की यात्रा पर आए थे।
शावक नानावटी टेक्निकल इंस्टिट्यूट (1921):

भूतपूर्व जमशेदपुर टेक्निकल इंस्टिट्यूट की स्थापना 1 नवंबर, 1921 को 23 छात्रों के साथ की गई थी, जिसका उद्देश्य धातुकर्म, कार्य रखरखाव और औद्योगिक अर्थव्यवस्था में कुशल प्रशिक्षण प्रदान करना था। संस्थान में चार कक्षाएं, दो हॉल और दो कार्यालय थे। 2 अप्रैल, 1992 को इसका नाम बदलकर शावक नानावती टेक्निकल इंस्टिट्यूट (एसएनटीआई) कर दिया गया, जो संस्थान के पहले पूर्व छात्र शावक नानावती के नाम पर था। शावक नानावती ने 1970 से 1992 तक टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक के रूप में संस्थान और कंपनी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बेल्डीह बैपटिस्ट चर्च (1923):
1900 के दशक की शुरुआत में टिस्को प्लांट की स्थापना के साथ देश-विदेश से कई परिवार जमशेदपुर आए। शहर में बसे बैपटिस्ट समुदाय की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अमेरिकन फॉरेन बैपटिस्ट मिशन सोसाइटी ने टिस्को से ज़मीन लेकर 1923 में बेल्डीह ट्रायंगल में चर्च ऑफ़ क्राइस्ट और पादरी निवास का निर्माण किया। बाद में, जब अमेरिका की हेनरी जे कैसर कंपनी के कर्मचारी टिस्को के 2 मिलियन टन विस्तार परियोजना में सहयोग के लिए अपने परिवारों संग आए, तो उनके बच्चों की शैक्षणिक ज़रूरतों को देखते हुए 1954 में बेल्डीह चर्च स्कूल की नींव रखी गई।
कालीबाड़ी (1932):
बेल्डीह कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना दिसंबर 1932 में पंडित भूपतिचरण स्मृतितीर्थ द्वारा कराई गई थी। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि दशकों से दुर्गा पूजा के भव्य आयोजनों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। मान्यता है कि यहां स्थापित देवी दुर्गा की मूर्ति स्टील सिटी की सबसे विशाल और प्रभावशाली मूर्तियों में से एक है, जो श्रद्धालुओं और दर्शकों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र बनी रहती है।
भरूचा मेंशन (1935):
भरूचा हवेली का निर्माण 1935 में खुर्शीद मानेकजी भरूचा द्वारा किया गया, जो टिस्को के पहले भारतीय मुख्य कैशियर थे। यह अनोखी चार मंज़िला बहुकोणीय हवेली स्टील और ईंटों से बनी थी, जिसमें विभाजन की दीवारें सुर्खी और ईंटों के मिश्रण से बनाई गई थीं, जो टाटा स्टील जनरल ऑफिस के डिज़ाइन से मेल खाती थीं। शुरूआत में यह हवेली पारसियों के लिए छात्रावास और लॉज के रूप में उपयोग होती थी। 1950 के दशक में, इसके एक हिस्से को रीगल टॉकीज़ में परिवर्तित किया गया, जो जमशेदपुर का पहला आलीशान थिएटर कॉम्प्लेक्स था।
रिसर्च एंड डेवलपमेंट बिल्डिंग | 1937
रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) बिल्डिंग का उद्घाटन 1937 में टाटा स्टील के तत्कालीन अध्यक्ष सर नौरोजी सकलातवाला और भारत रत्न सर एम विश्वेश्वरैया ने किया था। इस इमारत को कार्यक्षमता और आराम सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसमें कर्मचारियों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण प्रदान करने पर विशेष ध्यान दिया गया। कमरों का डिज़ाइन कार्य के प्रवाह के अनुरूप था, और सभी सेवाएं फर्श के नीचे चलने वाली नलिकाओं से प्रदान की जाती थीं। सुरक्षा के लिहाज से धुआं निष्कर्षण प्रणाली, आपातकालीन शावर, और विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए स्विचबोर्ड जैसी सुविधाएँ सुनिश्चित की गई थीं।
क्लॉक टावर (1939):
70 फीट ऊंचा और चार घुमावदार घड़ियों वाला क्लॉक टॉवर एंग्लो-स्विस वॉच कंपनी द्वारा निर्मित था, जिसे 4 मार्च 1939 को टिनप्लेट कंपनी ऑफ इंडिया (TCIL) ने अपने पहले जनरल मैनेजर जॉन लेशोन की 16 साल की सेवा के सम्मान में स्थापित किया। गोलमुरी क्लब के गोल्फ कोर्स पर स्थित यह टॉवर दशकों तक शहर का प्रमुख टाइमकीपर रहा। 1994 में घड़ी बंद हो गई, और दो दशकों तक निष्क्रिय रही। 3 मार्च 2014 को संस्थापक दिवस पर इसे फिर से मरम्मत करके शहर को समर्पित किया गया। टॉवर का रखरखाव गोलमुरी क्लब द्वारा किया जाता है, जो इसके 18-होल गोल्फ कोर्स की सुंदरता को और बढ़ाता है।
कीनन स्टेडियम (1939):
कीनन स्टेडियम का निर्माण 1939 में जॉन लॉरेंस कीनन के नाम पर किया गया, जो 1930 से 1945 तक टिस्को के महाप्रबंधक थे। यह स्टेडियम क्रिकेट के प्रमुख स्थलों में से एक बन चुका है, जहां 10 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले गए, जिनमें 1983 का भारत-वेस्ट इंडीज मैच पहला था। भारत ने इस मैदान पर केवल एक जीत हासिल की, वह भी दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ। इस बहुउद्देश्यीय स्टेडियम ने बिहार (अब झारखंड) क्रिकेट टीम के कई रणजी ट्रॉफी मैचों की मेज़बानी की है। पहले यह फुटबॉल मैचों के लिए भी प्रसिद्ध था
बुलेवार्ड होटल (1940):
गोवा से आए बर्थोलोम्यू डी’कोस्टा द्वारा ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिकों के ठहरने के लिए निर्मित यह होटल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिकों की मेज़बानी का केंद्र था, जिसे इसे 6 महीने में बनवाया गया था। इसकी मूल वास्तुकला आज भी उस दौर की झलक दिखाते हैं।
16.आर्मरी ग्राउंड (1941):
15 सितंबर 1941 को जमशेदपुर के गोलमुरी लाइन्स में बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन का गठन हुआ था। इसे टिस्को प्लांट की रक्षा के लिए जापानी विमानों से सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वायसराय लॉर्ड वेवेल के दौरे के दौरान नॉर्दर्न टाउन में एक स्वदेशी एंटी-एयरक्राफ्ट गन विकसित कर उसका प्रदर्शन किया गया। रेजिमेंट के कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल ट्वीड द्वारा जिस स्थान पर शस्त्रागार प्रदर्शित किया गया था, वह आज आर्मरी ग्राउंड के नाम से जाना जाता है। यह जमशेदपुर के सबसे पुराने खेल मैदानों में से एक है, जहां आज भी शौकिया और पेशेवर खेल आयोजन होते हैं।
17. सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट स्कूल (1945):
सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट स्कूल की स्थापना 15 जनवरी, 1945 को अपोस्टोलिक कार्मेल सिस्टर्स की मंडली द्वारा की गई थी। स्कूल की शुरुआत 5, बेल्डीह ट्रायंगल में हुई, फिर यह सी.एन.आर. हॉल, धाकीडीह हाई स्कूल और दलमा विला में भी स्थानांतरित हुआ। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी द्वारा पार्क रोड, नॉर्थन टाउन में भूमि आवंटित करने के बाद, जनवरी 1951 में नया स्कूल भवन स्थापित किया गया। मार्च 1952 में स्कूल ने अपना पहला मैट्रिकुलेट छात्रों का बैच भेजा। 1963 में भारतीय विद्यालय प्रमाण पत्र परिषद से संबद्धता प्राप्त करने के बाद, 1965 में छात्रों ने आईएससी परीक्षा दी।
18 डरेल हाउस
विश्व प्रसिद्ध लेखक और वन्यजीव संरक्षणवादी गेराल्ड मैल्कम डरेल का जन्म 7 जनवरी, 1925 को इसी बंगले में हुआ था। यह बंगला, जो प्रकृतिवादी और लेखक जेराल्ड डरेल का जन्मस्थान है, आज भी उनकी यादों को संजोए हुए है। जमशेदपुर की औपनिवेशिक वास्तुकला का यह अद्वितीय उदाहरण अपने समय की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को दर्शाता है
- प्रॉक्टर हाउस
प्रॉक्टर हाउस जमशेदपुर की औद्योगिक और सामाजिक विरासत का प्रतीक है। ई ए प्रॉक्टर, जो 1919 से 1934 तक शहर में रहे, ने बैटल ब्लास्ट फर्नेस और शीट मिल जैसी महत्वपूर्ण इकाइयों के निर्माण का नेतृत्व किया, जिससे टाटा स्टील के विस्तार को गति मिली। उनकी पत्नी श्रीमती प्रॉक्टर ने स्थानीय ईसाई विधवा महिलाओं को कढ़ाई व सिलाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। उनके सामूहिक योगदान के सम्मान में इस ऐतिहासिक निवास को ‘प्रॉक्टर हाउस’ नाम दिया गया।