
महेंद्र प्रसाद,
सहरसा,

सहरसा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर एवं अनुमंडल से 8 किलोमीटर पर स्थित बाबा मटेश्वर धाम में श्रावणी की पहली सोमवारी को डाक बम एवं कावरिया को लेकर भीड़ उमड़ पड़ी। मुंगेर के छर्रापट्टी से गंगा जल उठाकर लगभग 98 किलोमीटर की सफ़र कर हर श्रावण में लाखो श्रद्धालु शिवलिंग पर जल चढ़ाते है। इन श्रद्धालु को सबसे ज्यदा दिक्कत सहरसा मानसी रेल खंड के बदला से कोपरिया तक आने में होती है। जान की बाज़ी लगाकर ये डाक बम रेल लाइन होते है कई खतरनाक पुल होते हुए मटेश्वर तक पहुचते है। जिन कारण कई बार हादसा हुआ है। एकाएक ट्रेन के पुल पर आ जाने से कई कावरिया पानी में भी कूद गया है। लेकिन रेलवे ने बाबजूद इन शर्फलु के लिए कोई व्यवस्था नहीं किया। आज भी कावरिया इसी खतरनाक पुल से आते जाते है।
स्थानीय लो करते है मदद- इन कावरिया की सेवा स्थानीय लोग करते है। कावरिया के आने जाने वाले रस्ते में लाइट, पानी यहाँ तक की जो कावरिया चलने में अश्मर्थ रहते है उन्हें अपनी बाइक से धाम तक पहुचाते है। इन कावरिया की टोली में युवा का सबसे बड़ा योगदान होता है।
* स्वयं अंकुरित है शिवलिंग- ...
मटेश्वरधाम का अनोखा शिवलिंग स्वयं अंकुरित है। यह शिवलिंग 14 वीं शताब्दी की बतायी जाती है। समतल जमीन से 30.40 फीट उंचे टीले पर स्थापित काला पत्थर के शिवलिंग की मोटाई करीब 4 फीट तथा ऊंचाई ढ़ाई फीट है। शिवलिंग के चारों तरफ एक इंच की चौड़ाई में खाली स्थान है। गर्मी के मौसम में खाली स्थान पानी से लबालब भरा रहता है। जबकि बरसात में इसका जलस्तर काफी नीचे चला जाता है। वर्ष 2003 में शकराचार्य बासुदेवानंद सरस्वती ने इस शिवलिंग का दर्शन कर कहा था कि ऐसा अद्भूत शिवलिंग मैंने पहली बार देखा है। यह दुनिया का अनोखा शिवलिंग है। बताया जाता है कि यह मंदिर पत्थर से निर्मित था। लेकिन औरंगजेब शासन काल में इसे तोड़ दिया गया था। अभी भी मंदिर के अवशेष प्रांगण में पड़ा हुआ है।
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