सहरसा-क्या पुरूष नसबंदी पखवारा में टुटेगा दो वर्षो का रिकार्ड 21 नवम्बर से शुरू हुये पुरूष नसबंदी पखवारा में

 

 

BRAJESH

ब्रजेश भारती
सिमरी बख्तियारपुर,सहरसा,  ।
सोच व काबिलियत के बूते हम भले ही मंगल तक पहुंचने पहुंच गये हो , लेकिन जिम्मेदारी के मामले में पुरुष अभी भी आधी आबादी (महिलाओं) से बहुत पीछे हैं। फिलहाल महिला बंध्याकरण व नसबंदी के आंकड़े तो यही कहानी बयां कर रहे हैं। पौरुष खोने के अनावश्यक डर ने पुरुषों को नसबंदी के मामले में महिलाओं से मीलों पीछे कर दिया है। 21 नवम्बर से 4 दिसंबर तक राज्य के स्वास्थ विभाग ने पुरूष नसबंदी पखवारा आयोजित की है। ऐसे में अनुमंडलीय अस्पताल सिमरी बख्तियारपुर के लिये ये पखवारा किसी चुनौती से कम नही है।चुनौती इसलिये भी है की पिछले दो वर्षो का रिकार्ड बताता है की एक भी पुरूष यहां नसबंदी नही कराये है।
क्या है आंकड़ा-

अनुमंडलीय अस्पताल सिमरी बख्तियारपुर में पिछले दो वर्षो का रिकार्ड का इतिहास देखा जाय तो सिर्फ यहां महिलायें ही जनसंख्या नियंत्रण के लिये नसबदी कराती है। इसे विभाग की लाहपरवाही कहें या फिर यहां के पुरूषों की सोच,जनसंख्या नियंत्रण की सभी जिम्मेदारी महिलाओं को दे रखा है। वर्ष 15-16 के आंकड़े के अनुसार इस अस्पताल में 1392 महिलाओं ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुये बंध्याकरण कराया वही एक वर्ष में एक भी पुरूष ने नसबंदी नही कराया। वही वर्तमान वित्तीय 16-17 के अक्टुबर माह तक 538 महिलाओं ने नसबंदी का आपरेशन कराया है जानकारों का कहना है जैसे जैसे ठंड बढ़ेगा महिला बंध्याकरण की संख्या बढेगी। वही अभी एक भी पुरूष की नसबंदी नही हो सकी है। ऐसे में यह पखवारा क्या पिछले दो वर्षो के शून्य रिकार्ड को तोड़ पायेगा ? जबकि स्वास्थ विभाग ने पुरूष नसबंदी कराने वाले पुरूषों को दो हजार रूपये प्रोत्साहन राशि व उत्प्रेरक को तीन सौ रूपये देने का प्रावधान कर रखा है। मात्र दस मिनट में पुरूष नसबंदी करा घर जा सकते है।
पौरुष खोने का डर बना पुरुषों को हीरो के बजाय जीरो –
पुरुष का एनएसवी के मामले में पिछड़ने के कारणों की अगर समीक्षा की जाये तो पता चलता है कि पौरुष खोने का डर ही पुरुषों को एनएसवी कराने से रोक रहा है। इस बाबत निजी क्लिनीक चलाने वाले प्रमोद भगत बताते हैं कि पुरुषों में यह भ्रम है कि एनएसवी कराने से उनमें मर्दानगी समाप्त हो जायेगी. जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता है।पंजाब व हरियाणा में एनएसवी करानेवाले पुरुषों की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन हमारे यहां इसकी संख्या नन्ग है।

बंध्याकरण से आसान है एनएसवी –
अनुमंडलीय अस्पताल के उपाधीक्षत एन के सिंह ने कहा कि महिलाओं का बंध्याकरण पुरुषों की एनएसवी से ज्यादा कठिन होता है। के पेट में चीरा लगाने के बाद उसकी एनएसवी की जाती है जबकि पुरुषों का दो मिनट में एनएसवी हो जाता है. यहां तक एनएसवी कराने वाला पुरुष अगले दिन से अपने काम पर भी जा सकता है।वही सरकार की ओर से सहायता राशि भी दी जाती है।

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