छऊ से हो सकता लोक नाटक का विकास

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वरीय संवाददाता,जमशेदपुर,27 मार्च
विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर कलाधाम, आदर्शनगर, सोनारी की ओर से गुरुवार को झारखंडी लोक नाटक के विकास विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। वरिष्ठ रंगकर्मी रविकांत मिश्रा ने कहा कि झारखंड में लोक नाटक की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि छऊ नृत्य भी नृत्य नाटिका का रूप है। यहां के युवाओं में नैसर्गिक सुर-ताल का ज्ञान रहता है जिसका उपयोग रंगमंच पर किया जा सकता है। निदेशक गौतम गोप ने कहा कि हबीब तनवरी ने मध्य प्रदेश की लोक संस्कृति और नृत्य गायन को जिस तरह आधुनिक शैली में प्रस्तुत किया, वैसे ही झारखंडी लोक नाटक का भी विकास किया जा सकताहै। सचिव राकेश पांडेय ने कहा कि राज्य की कला-संस्कृति समृद्ध है। देवकुमार ने कहा कि बिहार में भिखारी ठाकुर ने लोक नाटक को अलग पहचान दी। अशोक सिंह सरदार ने सलाह दी कि हम समुदाय में जाकर नाटक करें ताकि एक नया दर्शक वर्ग पैदा हो। रंगकर्मी महावीर महतो ने कहा कि झारखंड में लोक नाटक की प्राचीन परंपरा है। पहले आदिवासी समुदाय के लोक सेंदरा करने के लिए जाते थे और सेंदरा के दौरान घटित गतिविधियों को आंगिक अभियन के माध्यम से पुन: रचते थे। परिचर्चा में बीरबल लोहार, प्रीति गुप्ता, सोमलाल सरदार, सुधीर सरदार, सीता गोप, विष्णु लोहार, गोपी सरदार, बाला गोप, अभिमन्यु पातर आदि मौजूद थे।

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