
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि वह दिन दूर नहीं जब भारत को उच्च शिक्षा संस्थाओं के संदर्भ में विश्व में अपना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ईसा पूर्व छठीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक लगभग 1800 वर्षों की अवधि के दौरान भारतीय शैक्षिक संस्थाओं का विश्व में दबदबा कायम था और विश्वभर के विद्वानों के लिए वे आकर्षण केंद्र थीं। भारत को निश्चित तौर पर अतीत की अपनी खोई हुई गरिमा को फिर से प्राप्त करना चाहिए और एक बार फिर पूरे विश्व के लिए अवधारणाओं का सृजन केंद्र बन जाना चाहिए।

राष्ट्रपति महोदय ने क्यूएस, आईसीएए, ब्रिटिश कांउसिल, फिक्की और केएमपीजी के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए यह बात कही। राष्ट्रपति भवन में कल (12 मई, 2014) उन्हें “ क्यूएस यूनिवर्सिटी रैंकिंगः एशिया 2014” की पहली प्रति भेंट की गई थी।
राष्ट्रपति ने प्रतिनिधियों को बताया कि भारतीय अधिकारी भारतीय उच्च शिक्षा संस्थाओं से समुचित प्रारूप में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में प्रतिनिधियों के साथ हर संभव सहयोग करेंगे।
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