राजकुमार झा


मधुबनी।
आज 31 अक्तूबर के दिन ही सन् 1984 में इंदिरा गांधी देश के लिए कुर्बान हो गईं थीं . पीएम रेसीडेंस में ही उन्हें गोलियां मारी गई थी . खबर आग की तरह फैली थी . पूरा देश सन्न था . तब देश की मीडिया बहुत फास्ट नहीं थी . सेकंड-सेकंड की खबरें नहीं आती थी . न मोबाइल था,न वाट्सएप था . खबरों के लिए देश पूरी तरह आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर आश्रित था . दोनों सरकार के नियंत्रण में थी . सरकार जैसा कहती,वैसा ही बताना होता था .
गोलियों से घायल इंदिरा गांधी को नई दिल्ली के अस्पताल में पहुंचाया जा चुका था . देश भर में सिखों के खिलाफ दंगे शुरु हो गये थे . पूरा देश रेडियो व दूरदर्शन से चिपक गया था . पर कई घंटों तक इंदिरा गांधी की स्थिति को लेकर देश में सस्पेंस बना रहा . दरअसल,अस्पताल में जहां इंदिरा गांधी थी,वहां किसी को जाने नहीं दिया जा रहा था . कोई मेडिकल बुलेटिन भी नहीं जारी किया जा रहा था . परिवार के अलावा अस्पताल में इंदिरा गांधी के पास अस्पताल में जाने को सबसे पहले किसी को अनुमति मिली,तो वे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी थे . धीरेन्द्र ब्रह्मचारी इंदिरा गांधी के योग गुरु थे . और भी बहुत कुछ कहा जाता था . पर इतना तो तय था कि इंदिरा गांधी की नजदीकियों केे कारण वे तब देश के सबसे ताकतवर लोगों में थे . देश भर में अपार संपत्ति जुटाई थी . सबसे अधिक जम्मू-कश्मीर में . अपना गन फैक्ट्री भी .
हां,अब जानना जरुरी है कि धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बिहार के ही मधुबनी जिले के बेनीपट्टी के चानपुरा गांव के रहने वाले थे . पिता का नाम बमभोल चौधरी था . अस्पताल के भीतर जाकर धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने इंदिरा गांधी के नब्ज टटोले . फिर रोने लगे . बाहर निकले तो पत्रकारों ने घेर लिया . इसके बाद धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने ही सबसे पहले बताया कि इंदिरा गांधी की सांसें बंद हो चुकी है . अब कोई भी उम्मीद नहीं रही . इसके बाद देश ने जानना शुरु किया कि इंदिरा गांधी नहीं रहीं . लेकिन आधिकारिक बयान अब भी जारी नहीं हुआ था . प्रिंट मीडिया को थोड़ा धैर्य रखने को कहा गया . रेडियो और टेलीविजन को भी अभी ठहरने को कहा गया . दरअसल,देश के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह बाहर थे . उनके आने की प्रतीक्षा की गई . जब वे दिल्ली पहुंचे,तभी मौत की आधिकारिक सूचना जारी की गई . देश का सदमा और बढ़ गया .
अब मधुबनी वाले धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के बारे में कुछ और बातें . धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की पूरी जिंदगी ही मिस्ट्री है . 1994 में प्लेन क्रैश में मौत भी अब तक की बड़ी मिस्ट्री स्टोरी है . मधुबनी के बेनीपट्टी के चानपुरा गांव में बमभोल चौधरी के घर में जन्मे ब्रह्मचारी का असली नाम धीरचंद्र चौधरी था . वे 14-15 साल की उम्र में ही घर छोड़कर भाग गये . लंबे अर्से तक वापस नहीं आने पर घरवालों ने भी अपशकुन मान लिया . वापसी की कोई उम्मीद नहीं रखी . पर कई साल बाद यह धीरचंद्र दिल्ली रेलवे स्टेशन पर दानापुर के बीएस कालेज के प्राध्यापक परमाकांत चौधरी को दिख गया . वेश बदला था . फिर भी प्रो. चौधरी की तराशी आंखों ने उन्हें पहचान लिया . पुख्ता पहचान बदले धीरचंद्र के बार-बार इंकार के बाद भी बचपन के दोस्त सदाशिव चौधरी ने की .
गांव से भागे धीरचंद्र चौधरी अब धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बन चुके थे . योग गुरु की बड़ी पहचान बन रही थी . देश-दुनिया के लोग उनके संपर्क में थे . गीता पर ब्रह्मचारी का ज्ञान प्रकांड हो चुका था . वे कार्तिकेय के शिष्य कहलाने लगे थे . कहने वाले कहते हैं कि धीरेन्द्र ने योग और अध्यात्म का ज्ञान बनारस में प्राप्त किया था . दावे तो यहां तक हैं कि इंदिरा गांधी के संपर्क में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को पंडित नेहरु ने ही लाया था . यह वाकया पंडित नेहरु के सोवियत रुस से वापसी के तत्काल बाद का बताया जाता है .
इंदिरा गांधी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के योग ज्ञान से अंत तक प्रभावित रहीं . इस दरम्यान ब्रह्मचारी बहुत ताकतवर होते गये . आज के बाबा रामदेव को तो पॉपुलर हाेेने के लिए निजी चैनल आस्था टीवी के प्रसारण का सहारा लेना पड़ा,पर इंदिरा गांधी के कार्यकाल में तब देश के इकलौते चैनल दूरदर्शन पर धीरेन्द्र ब्रह्मचारी योग शिक्षण कार्यक्रम का प्रसारण होता था,जो बहुत पॉपुलर हो गया था . ब्रह्मचारी ने अपना एयरक्राफ्ट ले लिया था,जिसके कारण देश उन्हें फ्लाइंग बाबा भी कहने लगा था . जम्मू में तब उनकी सात मंजिली इमारत थी . अपना हेलीपैड था . देश भर में हजारों एकड़ भू-खंड के स्वामी थे . आज माता वैष्णो देवी के बेस टाउन कटरा में जहां सीआरपीएफ का केन्द्र है,वह बड़ा कैंपस भी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का ही था . 1994 में ब्रह्मचारी की मौत के बाद संपत्ति की दावेदारी को लेकर बड़ा बखेड़ा पैदा हुआ . विवादों के बीच बहुत संपत्ति सरकार ने टेकओवर कर ली .
लेकिन,एक बात और जिंदगी के अंतिम वर्षों में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी फिर से मधुबनी के अपने गांव चानपुरा से कनेक्ट होने लगे थे . विलेज लव उनके भीतर जग गया था . वे चाहते थे कि चानपुरा के दोनों टोलों को घेरते हुए एक रिंग बांध बनवा दें . अपने गाँव में जब उनकी रुचि बढ़ी तो सुनने में आया कि उन्होंने दिल्ली के गोल मार्केट जैसा एक बाजार, सौ शैय्या वाला अस्पताल, एक हेलीपैड और हवाई जहाजों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल का एक पेट्रोल टैंक भी गाँव में बनाना चाहा . पेट्रोल टैंक के लिए तो जरूरी साज-सामान भी गाँव में आ भी गया था जिसके अवशेष अभी भी दिखाई पड़ते हैं . मरते-मरते अपने गाँव को उन्नत करने का उनका एक दीर्घकालीन सपना था, जो अकस्मात् मौत कारण पूरा न हो सका