जमशेदपुर।
टाटा मेन हॉस्पीटल ने माइक्रोप्लास्टी तकनीक का प्रयोग कर सरला राव नामक 70 वर्षीय महिला के घुटने की सफलतापूर्वक ‘पार्शियल नी रि-सर्फेसिंग’’ सर्जरी की। इस ऑपरेशन में डॉ. वरूण चंद्रा, सीनियर स्पेशलिस्ट व एचओडी, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट के नेतृत्व में सर्जीकल टीम ने उनके दोनों घुटने को प्रतिस्थापित किया। डॉ. राज कुमार सिंह, डॉ. अभय हर्ष और डॉ. जे के लाइक इस टीम के अन्य डॉक्टर थे।
ऑपरेशन के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. वरूण ने बताया कि पूर्वी क्षेत्र में माइक्रोप्लास्टी तकनीक के साथ की गयी यह पहली सर्जरी है। डॉ. वरूण के अनुसार, त्वरित और बेहतर सुधार के लिए ‘टोटल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी’ कराने वाले सभी मरीजों में से 40 प्रतिशत मरीज का का उपचार ‘पार्शियल नी रि-सर्फेसिंग’ द्वारा किया जा सकता है।
घुटनों के पुनःनिर्माण की परंपरागत सोच पूरे घुटने को फिर से बदलने की रही है, जिसमें इसके तीनों कम्पार्टमेंट (आंतरिक, बाहरी और नी कैप एवं जांघ की हड्डी के बीच वाला हिस्सा) को बदला जाता है। लेकिन हर मरीज को ‘टोटल नी रिप्लेसमेंट’ की आवश्यकता नहीं भी हो सकती है। ओस्टियोअर्थ्राइटिस प्रायः घुटने के केवल एक कम्पार्टमेंट में होती है, जबकि अन्य दो कम्पार्टमेंट अपेक्षाकृत स्वस्थ होते हैं। नतीजों से पता चला है कि ‘पार्शियल नी रि-सर्फेसिंग सर्जरी‘ के बाद 91 प्रतिशत मरीजों के घुटने 20 वर्षों तक सही तरीके से कार्य करते हैं।
इसमें एक यूनीकॉन्डायलर नी रिप्लेसमेंट के साथ ज्वाइंट सर्फेस का केवल एक हिस्सा प्रतिस्थापित किया जाता है, जबकि एक ‘टोटल नी रिप्लेसमेंट’ में पूरे घुटने की रि-सर्फेसिंग की जाती है। घुटने के इस ‘पार्शियल रि-सर्फेसिंग’ में लिगामेंट्स और सपोर्ट स्ट्रक्चर्स को बचा कर ऑपरेशन किया जाता है, जिससे
मरीज अधिक सहज महसूस करता है और इससे घुटने के जोड़ को मूवमेंट के लिए ‘टोटल नी रिप्लेसमेंट‘ के बनिस्पत अधिक दायरा मिलता है। ऑपरेशन बड़ी सटीकता के साथ छोटा-सा चीरा लगा कर किया जा सकता है। इस प्रकार, इस जोड़ों को सुरक्षित रखने वाला यह घुटना प्रतिस्थापन निश्चित रूप से बेहतर है।
