
अजीत कुमार

जामताड़ा-
जब देश की एकता व अखंडता को बनाए रखने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान देने की शपथ ले रहे थे तो कोई नहीं जानता था कि चंद घड़ियों के बाद वह अपनी इस शपथ को अपने प्राणों की आहुति देकर पूरा करेंगे। स्वतंत्रता दिवस की सुबह ग्रीष्मकालीन राजधानी के नौहट्टा में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए कमांडेंट प्रमोद कुमार की शहादत किसी शौर्यगाथा से कम नहीं है। 15 अगस्त सुबह साढ़े आठ बजे डीआइजी कार्यालय कर्णनगर में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। 1इस अवसर पर उन्होंने अधिकारियों व जवानों को देश की एकता व अखंडता के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित किया। जिस समय वह जवानों को संबोधित कर रहे थे, उसी दौरान नौहट्टा में जामिया मस्जिद के पास आतंकी हमला हो गया था। समारोह के संपन्न होते ही जैसे ही उन्हें हमले का पता चला तो वे तुरंत मौके पर पहुंच गए। उन्होंने वहां एक इमारत में छिपे आतंकियों को मार गिराने के लिए खुद अपने जवानों की अगुआई की। इस दौरान एक आतंकी को आमने-सामने की लड़ाई में मार गिराते हुए वह गंभीर रूप से जख्मी हो गए। उनकी गर्दन में गोली लगी थी। कमांडेंट प्रमोद कुमार को उसी समय सेना के 92बेस अस्पताल ले जाया गया, जहां करीब दो घंटे बाद उन्होंने दम तोड़ दिया। 1आइजी सीआरपीएफ कश्मीर अतुल करवाल ने शहीद कमांडेंट प्रमोद कुमार को श्रद्घांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वह तो डायनामिक था। उसने सर्वस्व बलिदान देकर त्याग, निष्ठा और बलिदान की सीआरपीएफ की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाया है। झारखंड के जामताड़ा के रहने वाले शहीद प्रमोद कुमार के परिवार में उनकी पत्नी, बेटी और पिता हैं। वह गत 12 जुलाई को ही कमांडेंट के पद पर पदोन्नत हुए थे और उन्हें सीआरपीएफ की 49वीं वाहिनी की कमान सौंपी गई थी
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