JAMSHEDPUR NEWS :भस्म रुद्राक्षधारी मनुष्य को देखकर भाग जाते हैं भूत प्रेत- वृजनंदन शास्त्री

जहां-जहां शिव के आंसू गिरे वहां रुद्राक्ष वृक्ष उत्पन्न हुए- कथावाचक

16

मानगो वसुन्धरा एस्टेट में शिव महापुराण कथा का प्रथम दिन

जमशेदपुर। मानगो एनएच 33 स्थित वसुन्धरा स्टेट (नियर इरीगेशन कॉलोनी) में श्री शिव महापुराण कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के प्रथम दिन गुरूवार को वृन्दावन से पधारे स्वामी वृजनंदन शास्त्री महाराज ने व्यास पीठ से शिव महापुराण, शोभायात्रा, महात्म, रूद्राक्ष, भस्म महिमा वर्णन के प्रसंग का सुंदर व्याख्यान किया। कथा के दौरान प्रसंग के आधार पर कलाकारों ने जीवंत झांकी भी प्रस्तुत की। उन्होंने शिव कथा के विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि भस्म, रुद्राक्ष धारण करके नमः शिवाय मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। भस्म रुद्राक्षधारी मनुष्य को देखकर भूत प्रेत भाग जाते हैं। देवता पास में दौड़ आते हैं। उसके यहां लक्ष्मी और सरस्वती दोनों स्थायी निवास करती हैं, विष्णु आदि सब देवता प्रसन्न होते हैं। महाराज ने आगे कहा कि जब भगवान शिव ने मानव जाति के कष्ट और पुनर्जन्म के चक्र को देखा, तो उनका हृदय करुणा से भर गया। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, और जहां-जहां ये आंसू गिरे, वहां रुद्राक्ष वृक्ष उत्पन्न हुए। शिवजी सदैव मृगचर्म (हिरण की खाल) धारण किए रहते हैं और शरीर पर भस्म (राख) लगाए रहते हैं। शिवजी का प्रमुख वस्त्र भस्म यानी राख है, क्योंकि उनका पूरा शरीर भस्म से ढंका रहता है। शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है, एक दिन संपूर्ण सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित हो जानी है। कथावाचक ने बताया कि शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं। दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं। आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर है, उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा-समझा जा सकता है। यह बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है। महाराज ने प्रदोष व्रत का वर्णन विस्तार से करते हुए आगे कहा कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना का काफी महत्व है। शास्त्रों में प्रदोष के व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से जो भक्त करता है उसको जन्म-जन्मांतर के पापकर्मों से छुटकारा मिल जाता है। महीने में दो बार आने वाले प्रदोष व्रत भगवान भोलेनाथ को समर्पित है और इस दिन संध्याकाल में इनकी आराधना करने से शिव प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। इसका आयोजन यजमान किरण-उमाशंकर शर्मा द्धारा किया गया हैं। महाराज जी दूसरे दिन शुक्रवार को गुण निघि का पूर्व जन्म, कुबेर पद की प्राप्ति एवं शिवालय महिमा का प्रसंग सुनायेंगे। आज प्रथम दिन समाजसेवी मनमोहन खंडेलवाल, अजय श्रीवास्तव, सुनील सेठ, शशांक श्रीवास्तव धीर दत्ता, सत्यप्रकाश, उमाशंकर सिंह आदि कथा में शामिल होकर महाराज श्री से आर्शीवाद लिया। आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रमुख रूप से कृपाशंकर शर्मा, रामाशंकर शर्मा, गिरजाशंकर शर्मा, भाजपा जिला कोषाध्यक्ष कृष्णा शर्मा उर्फ काली शर्मा, संतोष शर्मा समेत सैकड़ों की संख्या में भक्तगण शामिल थे, जिसमें महिलाओं की संख्या अधिक थी।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More