पुर। राजनितिक दलो के द्वारा झारखंड के बांग्ला भाषी लोग अपने उपेक्षा से नाराज होकर अंदोलन का लेकर एक मंच आ गए है। झारखंड में बांग्ला भाषा एवं भाषियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। राज्य में 42 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद 24 वर्ष से समाज की उपेक्षा की जा रही है। ये आरोप झारखंड बांग्ला भाषी उन्नयन समिति के तापस चटर्जी एवं देवीशंकर दत्ता ने लगाए।
ये है मांगें
■ बांग्ला भाषी शिक्षक की नियुक्ति की जाए, बांग्ला पुस्तकों की छपाई का काम शुरू किया जाए।
∎ बांग्ला अकादमी का गठन हो।
■ बांग्ला को द्वितीय राजभाषा बनाएं।
■ स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई शुरू की जाए।
अल्पसंख्यक आयोग में एक उपाध्यक्ष और दो सदस्यों की नियुक्ति की जाए।
■ बांग्ला बहुल इलाकों के रेलवे स्टेशनों के नाम बांग्ला में लिखें।
■ चैतन्य महाप्रभु के नाम पर एनएच-33 का नामकरण हो।
प्रेस वार्ता के दौरान शनिवार को उन्होंने कहा कि अब समाज चुप नहीं रहेगा। अपने हक एवं अधिकार के लिए आंदोलन का रास्ता अख्तियार करेगा। इसकी शुरुआत 10 सितंबर को उपायुक्त कार्यालय पर विशाल धरना से होगी। उस दिन झारखंड बांग्ला भाषी उन्नयन समिति के बैनर तले कोल्हान के तीनों जिलों के अलग-अलग प्रखंड से समाज के लोग पदयात्रा करते हुए साकची सुभाष मैदान पहुंचेंगे। वहां से सभी उपायुक्त कार्यालय जाएंगे और धरना में शामिल होंगे। उसी दिन उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के धनबाद जिले के रणधीर वर्मा चौक पर समाज की ओर से महाधरना होगा। अंशुमान चौधरी ने बताया कि बांग्ला एवं बंगाली संस्कृति को सभी सरकारों ने हाशिए पर डालने का काम किया। 11 दिसंबर को रांची में विशाल रैली का अयोजन किया जाएगा। रैली के बाद राज्यपाल को मांग पत्र सौंपा जाएगा। प्रेस वार्ता में विश्वनाथ घोष, बनमाली बनर्जी, करूणामय मंडल, विश्वनाथ राय, सुबोध गोराई व अन्य मौजूद रहे।
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