जमशेदपुर-देश के लोग मिलकर देश को चलाते हैं केवल सरकार ही देश को नहीं चलाती-मोहन भागवत

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जमशेदपुर।

देश के लोग मिलकर देश को चलाते हैं केवल सरकार ही देश को नहीं चलाती और प्रजातंत्र में सरकार तो ऐसे ही चलती है जैसे समाज चलना चाहता है उक्त बाते आर एस एस के प्रमुख मोहन भागवत ने जमशेदपुर के गुजराती सनातन समाज मे झडोतोंलन के दौरान कही। उन्होने कहा कि समाज जैसे चलना चाहता है उसके खिलाफ चल कर सरकार नहीं चल सकती है एक गणराज्य के नाते भारत अपने कर्तव्य का निर्वाह करेगा ही इसका मतलब है की गणराज्य के लिए जो पात्रता होनी चाहिए उस पात्रता को लेकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने वाला समाज बने अब वह समाज है इसलिए हमको सोचना है।

 

प्रति वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी मोदी ने श्याम सपने इस तिरंगे सर्च को खैर आते हैं आते हैं और कार्यक्रम संपन्न करते हैं  इतना भर करके अगर हम रुक गए कोई हमारे लोग हम हम लोगों के लिए जो पढ़े लिखे जानकारी रखते हैं उनके लिए ठीक नहीं होगा क्योंकि ऐसी जो उत्सव समाज में प्रचलित करते हैं उनके पीछे भी है प्रबोधन का भाव है और स्वयं को उस विषय मे प्रभुत्व बनाने के लिए उन उत्सव को संपन्न करना आचरण करना इसलिए उसकी परंपरा राज्य है आज का दिन स्वतंत्रता के बाद हम गनराज्य बने इसको स्मरण करने का दिवस है भारत स्वतंत्र क्यों हुआ भारत को स्वतंत्र क्यों होना था तो कोई भी राइटर को स्वतंत्र होना ही चाहिए यह तो बात है जैसे आदमी कहने के बाद अपने सामने स्वस्थ आदमी आता है बीमार आदमी भी होते हैं कोमा में पड़े भी होते हैं पर जब हम कहते हैं आदमी हमारे सामने बीमार आदमी नहीं स्वस्थ आदमी आता है वैसे किसी भी देश का राष्ट्र का नाम लेते हैं राष्ट्रीय आने स्वतंत्र राष्ट्र हम प्रजातंत्र स्वतंत्र हो गए हैं फिर भी यह बात यहीं समाप्त नहीं हुई स्वतंत्र भारत के उस समय के नेताओं ने विचार पूर्वक स्वतंत्र भारत आगे कैसे चलेगा किस लिए चलेगा को ध्यान में रखते हुए संविधान का निर्माण किया और उसके तहत अपने आप को एक गणराज्य घोषित किया । झंडोतोलन हम करते हैं झंडो को भी सोच समझ कर बनाया गया है स्वतंत्र भारत के संप्रभु सत्ता का प्रतिक है और तीन रंग का बना है बीच में एक चक्र है सबसे ऊपर अपना परंपरा के चिरपरिचित केसरिया रंग है वह त्याग का प्रतीक है क्योंकि देश स्वतंत्र होने के बाद अपने आप संपन्न नहीं बनता नहीं बनता विश्व के जीवन में किसी देश के योगदान होने के लिए स्वतंत्र होकर प्रयास करना पड़ता है मात्र स्वतंत्र होने से नहीं होता है
स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अनेक वीरों ने अपना बलिदान दिए प्राणों का अर्पण कियाl अब वैसा हर दिन कोई ना कोई बलिदान हो उसकी आवश्यकता नहीं है अब लेकिन हर दिन हर पल लोक प्राणार्पण नहीं करते वह तो भी अपना जीवन यापन अपने देश को बढ़ावा करें जिसके लिए आवश्यकता है हंसते-हंसते वह फांसी चढ़ गए अपने जीवन को अर्पित कर दी है उनके पुण्य के कारण स्वतंत्र हुए आज के हम लोगों को अपने जीवन के पल पल को ऐसे जीना है यह उनका बलिदान सार्थक हो उन्होंने अपना बलिदान अमर जिंदगी जी उस जिंदगी कम को ऐसे बनाना है उनके बलिदान की सार्थकता सिद्ध हो जाए और ऐसा जीवन हो जीना है तो हमें त्याग करना होगा समर्पण करना होगा उसने ज्ञान का प्रकाश चाहिए और सक्रियता चाहिए इंसाफ बातों का प्रतीक केसरिया रंग है ऐसा जीवन जीने का संकल्प जब हम लेते हैं तो ऐसे संकल्प मत व्यक्ति का जीवन पवित्र वन जाता है अंतर्वास सुचिता पूर्ण बन जाता है हमारे करने से अपने समाज में  स्वच्छता आए सुचिता आए बाहर से देश में आने वाले और घूमने वाले लोगों को भी देश में स्वच्छता दिखे और देश के प्रत्येक व्यक्ति का सामान आचरण भी ऐसा ही स्वच्छ हो इसकी याद कराने वाला हुआ शुभ रंग उसके बाद आता है और ऐसा जीवन जब कोई समाज देश के लिए जीता है तो उसका स्वभाविक परिणाम के रूप में देश में समृद्धि आती है उस देश काकारण दुनिया की इस स्मृद्धि बढ़ोतरी होती है इस विधि का प्रतीक लक्ष्मी जी हैं और लक्ष्मी जी का प्रतीक हरा रंग है तीनों रंगों का हम अगर क्रम से देखेंगे तो अर्थ होता है अपने कर्ममय त्यागमय समर्पण युक्त जीवन से संपूर्ण समाज का जीवन सूचितयुक्त बनाकर हम जो उद्यम करेंगे उससे लक्ष्मी बनेगी लक्ष्मी का मतलब केवल पैसा नहीं है प्राकृतिक संसाधन हमारा वैभव है प्राकृतिक का परिचायक हरा रंग ही है और मन भी अमीर हो मन की गरीबी ना आए उसको भी अपने यहां लक्ष्मी कहते हैं दीपावली में हम लक्ष्मी पूजा करते हैं और कई जगह प्राचीन वेदों का श्लोक गाते हैं लक्ष्मी लक्ष्मी सुक्त लोग कहते हैं उसमें लक्ष्मी माहि हैं भगवान उसमें वैसे एक कहां है हमारे खेतों में  पर्याप्त कीचड हो कीचड़ का अर्थ कीचड़ नहीं कृषि शास्त्र में जिसे आद्रता कहते हैं आद्रता और जमीन के पोषक तत्वों का जो मिश्रण खेतों में बनता है। इस लक्ष्मी के साथ मन की लक्ष्मी भी मिले लोभ न हो अशूभ मति न हो ऐसी प्रार्थना है हमारी उस मन को लेकर तन तक सबको समृद्धि का लाभ हो इसके लिए  हीअंतवार्य है सुक्ष्म पूर्ण जीवन जीने वाले समाज निर्माण करने का उद्योम हम अपने त्याग से करेंगे ऐसा संकल्प हमें लेना है और बीच में नीले रंग का जो चक्र है वह धर्म चक्र है धर्म का मतलब पूजा नहीं होता है धर्म का मतलब सारे जीवन की जिससे धारणा होती है जो संपूर्ण सृष्टि को जोर कर रखता है बिखरने नहीं देता है और जीवन सहित सृष्टि की जो उन्नति करता है उसे धर्म कहते हैं धारणा धर्म धर्मो धार्यते प्रजा स्वामी विवेकानंद ने कहा जब तक भारत में धर्म जीवित है भारत को बिगाड़ने की ताकत दुनिया में किसी के पास नहीं है और दुर्भाग्य से अनहोनी भारत में हो गई और भारत में धर्म लोप हो गया भारत को पचाने की ताकत  दुनिया में किसी के पास नहीं है।: इस अपने प्राकृतिक भाग्य रचते हुए अपने संविधान निर्माताओं ने यह धर्मचक्र युक्त तिरंगा ध्वज अपने सार्वभौम प्रभुसत्ता का प्रतीक इस नाते हमारे सामने रखा है उसका हमें यहां पर उत्तोलन किया है उसके सामने अपना राष्ट्रगान गाया है भारत भाग्य विधाता जन गण मन का अधिनायक परमपिता परमेश्वर को प्रार्थना करते हैं अपने देश के गुरुओ का स्मरण करते हैं और इस देश के लिए उस ध्वज का जो संकल्प है उसके अनुसार अपने जीवन बनाने का संकल्प करते हैं और संकल्प के योग जीवन अपना बने ऐसा प्रयास फिर एक बार आज से प्रारंभ करते हैं तो अपना झंडा वंदन वास्तव में झंडा वंदन होगा प्रतिवर्ष इसको करते-करते इसके पीछे का विचार कभी-कभी निकल जाने की भी संभावना रहती है
आदत से आदत से खुशी होती है तो सोचना बंद हो जाता है तो सोचना बंद हो इसलिए अपने राष्ट्रीय ध्वज का प्रतीकात्मक अर्थ आपके सामने कहा आज हमने झंडोतोलन किया है आज के दिन हम फिर  एक बार पीछे मुड़कर अपने जीवन का निरीक्षण करें अपने जीवन में इस दृष्टि से क्या क्या योगिता है और क्या-क्या आना बाकी है इसका हिसाब किताब करें आज के संदेश के आधार पर अपने जीवन को इस देश के योग बनाने का प्रयास अगले बरस कैसा हो इसकी योजना करके इस योजना को कार्य रूपी लाने का प्रारंभ अभी से कर दे

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