संवाददाता,जमशेदपुर,12 अक्टूबर


जमशेदपुर के साकची स्थित बारी मैदान में आयोजित आनन्दमार्ग का दो दिवसीय धर्ममहासम्मेलन के दूसरे दिन प्रातः काल में आगन्तुक साधकों ने पांचजन्य, मिलित साधना किया। आज साधकों के बीच आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के केन्द्रीय कार्यकारिणी के पदाधिकारीगण एक-एक कर साधकों से संस्थागत कार्यो, योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा की तथा उचित दिशा-निर्देस दिया। केन्द्रीय कार्यकारिणी के इस सभा के अध्यक्ष संध के जेनरल सेक्रेटरी आचार्य चितस्वरूपानन्द अवधूत ने कहा कि संघटन को मजबूत बनाने के लिए ’’बाबा’’ के बताये गये रास्ते पर चलना होगा।
दोपहर कालीन एवं रात्रि समापन प्रवचन में साधकों को सम्बोधित करते हुए ’ध्यान’ के उपर विस्तार चर्चा की। उन्होंने कहा कि केवल ब्रह्य ही गुरू हैं और दूसरा कोई भी नहीं गुरू परवाच्य है। कुलार्णव तंत्र का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि साधक शिष्य़ को चाहिए कि वह केवल सदगुरू का चिन्तन करें, उनके द्वारा निसृत आप्तवाध्य का चिन्तन मनन करते हुए उन्हीं के दिशा निर्देश के मुताबित सांसारिक जीवन में आचरण करें, यही उसके लिए स्वाभाविक होगा।
उन्होंने कहा कि ध्यान गुरूकृपा का प्रसाद है, यह एक स्वाभाविक निःसृत कृपाधारा है, यह स्वाभाविक मन की चिन्तनशीलता है सद्गुरू के लिये, उन्हीं के तरफ। उन्हीं की अवधारणा करते हुए जब साधक उनकी कृपा से उनकी ओर आगे बढ़ता है तो परस्पर आकर्शण की तीव्रता के कारण साधक उनमें ही विलीन हो जाता है, उनके आनन्दमय स्वरूप के साथ एकाकार हो जाता है। उन्होंने कहा कि तब साधक की अवस्था ऐसी हो जाती है कि साधक और साध्य का भेद खत्म हो जाता है और दोनों एक हो जाते हैं।
एक प्रभात संगीत का उदाहरण देते हुए उन्होंने ध्यान में साधक की मनोदशा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि परमपुरूश लीलामय है। वे अपने भक्तों के साथ क्रीड़ा करते हैं। यह लूका-छीपी के खेल जैसा होता है। ध्यान में कभी साधक के मानस पटल पर वे आ जाते हैं तो कभी दूर चले जाते हंै कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष। सब मिलाकर साधकमन परमात्मा को पकड़ने के मिषन (लक्ष्य) पर दौड़ता ही रहता है तभी वह अन्ततः उनसे साक्षात्कार कर पाता है।
इन्होंने कहा कि एक साधक के लिये सद्गुरू जीवन का सरात्सार होते हैं। इसलिए वह अपने आराध्य का पीछे करता रहता है उन्हें पकड़ लेने के लिये वह कहता है कि यह मेरा जीवन तुम्हारे लिये हैं। तुम्हीं मेरे अपने हो। फिर मुझसे दूर क्यों भागते हो ? मुझे क्यों अपने से दूर करके रूलाते हो, वह कहता है कि यदि मुझे रूलाने में ही खुषी होती है तो ऐसा ही सही किन्तु मैं तुम्हें छोडूँगा नहीं। इस प्रकार अनुध्यान के माध्यम से भक्त उनका पीछा करता है।
शाम को संदीप बोस एण्ड टीम एवं राँची रावा के कलाकारों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। जिसमें प्रभात संगीत गायन तथा उसपर आधारित नृत्य प्रस्तुत किया गया। नैतिक तथा आध्यात्मिक भावधारा से ओत-प्रोत एक लधु नाटिका भी प्रस्तुत किया गया। जिसकी अवधारणा तथा प्रस्तुति मृणाल पाठक ने किया है।