सुपौल ( छातापुर)सोनू कुमार भगत |
रंग बिरंगें कृतिम रंगो से खेले जाने वाले होली भले ही फैशन बनते जा रहाहै । लेकिन इस रंगो से होली खेल रहे हो तो सावधान हो जाईए। क्योकि यहरग केवल आपका स्कीन व कपड़े को हीं नहीं रंगाता है बल्कि ऐसे रंग आपकेजिन्दगी को नरक में बदल भी सकता है।कृत्रिम तरीके से बनाये जा रहे आर्कषक तरीके के रंग और गुलाल की । बहते बयार के साथ फैशन के तौर और तरीके में डुब रहे लोगो की बात करे तो हर साल होली को नये तरीके से मनाने का मन बना लेते है और जोश व उमंग ,उत्साह के रंगो में डुब कर होली को शराब के फैशन के साथ बकरा एवं बकड़ी की बली देकर होली के संग मीट और शराब के दिवाने अधिक देखने को मिलता है। एक तरह खुशी व भारतीय संस्कति से जुड़ी होली को प्राकृतिक रंग व अबीर से होली खेलने की परंपरा थी वो आज दिनो दिन लुप्त होते चले जा रहे है ।जहां होली को लेकर कई धर्म ग्रंथो में वृद्वावन के लठमार होली से लेकर गुलाल व पानी की होली को खेलने की परंमरा आज भी हमें झकझोरता है। लेकिन उत्तर भारत में होली का मतलब केवल हुरदंग ही सामने रह गयी है।होली के सुबह होते ही जोगिरा सर्र र्र सर्र र्र और होली झुमरा गाने वाले की संख्या में कमी आ गयी है।
क्या कहते है छातापुर के लोग :
रवि रौशन बताते है कि फैशन के युग मे चीन की कृतिम रंगो से होली खेलने की प्रचलन बढ़ी है जिसे लोगो को समझ बूझ कर प्रयोग करना जरूरी है । वही पप्पू प्रकाश का कहना है कि होली में रंग के जगह गुलाल से होली खेलना अधिक सेप्टी है । राहुल भगत का कहना है कि होली में हुरदंगियों से हमेशा परहेज कर होली खेलना अच्छा है। मो0 ईरशाद बताते है कि रंगो के त्योहार में नेचुरल रंग का यदि प्रयोग करते है ठीक है चायनीज रंगो का प्रयोग बिल्कुल न करे तो अच्छा है। कुक्कू कुमार ,राहुल कुमार ,अक्षय कुमार ,हर्ष कुमार ,सोनू कुमार आदि युवा वर्ग का कहना है कि डीजे के संग होली का आनंद कुछ अलग है । लेकिन पुराने तौर तरीका में होली के ढ़ोल का बजना आज भी एक अलग महत्व है।
क्या कहते है चिकत्सक :
चिकित्सा पदाधिकारी बताते है कि
बनावटी रंगो के प्रयोग से एक तो स्कीन खराब होती है तो दूसरा आंख में रंग
पड़ने पर जिन्दगी का नर्क में जाने की अधिक संभावना बनी रहती है। इससे बचने के लिये नेचुरल रंगो व गुलाल का प्रयोग करे।
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