बोकारो।
बोकारो के पूर्व विधायक एवं झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री समरेश सिंह (दादा) की जीवनसंगिनी श्रीमती भारती सिंह ने रविवार को इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिये विदा ले लिया। देर शाम लगभग साढ़े आठ बजे यहां सेक्टर-4 सिटी सेन्टर स्थित आवास में उनका निधन हो गया। विगत लंबे समय से वह बीमार चल रही थीं। हृदयाघात और गिरने से बुरी तरह चोटिल होने के कारण उनका इलाज चल रहा था। जीवन-रक्षक प्रणाली पर उनकी सांसें चल रही थीं। जिंदगी और मौत से जूझते-जूझते अंततः उन्होंने दम तोड़ दिया। उनके निधन पुत्र सिद्धार्थ सिंह माना ने अपने फेसबुक पोस्ट पर इसकी पुष्टि की। इससे पूर्व स्थिति नाजुक होने का पोस्ट भी उन्होंने शाम लगभग आठ बजे डाला था। श्रीमती भारती के निधन की खबर देखते ही देखते बोकारो सहित पूरे इलाके में जंगल में आग की तरह फैल गयी और चौतरफा शोक की भारी लहर फैल गयी। दादा के घर शोक संवेदना जताने वालों का तांता लग गया है। अपनी सहधर्मिणी को खोने वाले समरेश सिंह सहित उनके परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है। दादा के समर्थक भी खुद के आंसू रोक नहीं पा रहे, क्योंकि वह सबकी चहेती थीं। सबके प्रति उनकी ममता मां की तरह ही हमेशा ही लुटती रही। एेसे में स्वाभाविकतः लोगों का शोकाकुल होना लाजमी है। झारखंड सरकार के मंत्री अमर कुमार बाउरी, चैम्बर प्रतिनिधि सहित तमाम राजनीतिक, सामाजिक लोगों के साथ-साथ इष्टमित्र व शुभेच्छुओं का दादा के घर पहुंचना लगा है।
ताकत बन दादा को बनाया कद्दावर नेता
नारी असल में किस प्रकार से एक पुरुष की शक्ति बन ताउम्र उसका साथ निभाती है, उसका जीवंत उदाहरण भारती सिंह ने आजीवन प्रस्तुत किया। अपने-आप में दादा को कद्दावर नेता बनाने में दादा से कहीं अधिक श्रीमती भारती का योगदान रहा। न केवल घर-परिवार, बल्कि राजनीतिक-जीवन में भी श्रीमती सिंह ने दादा का हर कदम, हर सांस पर साथ निभाया। दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीजी ही दादा की असल ताकत रही हैं। बोकारो का सबसे पहला विधायक बनाने से लेकर दादा की हर चुनावी व सियासी रणनीति में श्रीमती सिंह सदा केन्द्रीय भूमिका में रहीं। अधिकांश सार्वजनिक कार्यक्रमों, सभा आदि से लेकर धरना-प्रदर्शन तक में भी श्रीमती सिंह ने दादा का साथ निभाया। नारीशक्ति को दादा के समर्थन में गोलबंद करने में असल भूमिका किसी ने निभायी तो वह उनकी सहधर्मिणी श्रीमती सिंह ही थीं। लगभग 70 वर्षीय श्रीमती सिंह जितनी शिद्दत के साथ अपने पति की आइडियल लाइफ पार्टनर रहीं, उसी तन्मयता के साथ एक मां, सास सहित अन्य रिश्तों को भी निभाया। अपनी पुत्रवधू को भी राजनीतिक मैदान में उतारने में उनका भरपूर समर्थन व आशीर्वाद रहा। अत्यंत ही दयालु व दानी प्रवृत्ति की रहीं श्रीमती सिंह को फूलों व बगीचों से भी काफी लगाव था। फूलों को बड़े ही प्यार से वह सहेजकर रखती थीं, ठीक उसी तरह जिस प्रकार अपने पूरे परिवार को सहेजकर रखा। यहां रह रहे उनके पुत्रों सिद्धार्थ सिंह माना और संग्राम सिंह के फेसबुक टाइमलाइन पर मां-बेटों का प्यार और पूरे परिवार की खुशियों के अनेक क्षण भरे पड़े हैं। उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पूर्व ही दादा ने अपनी शादी की स्वर्ण-जयंती बड़े ही धूमधाम के साथ मना
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