जमशेदपुर-टाटा स्टील ने सर दोराबजी टाटा की 158 वीं जयंती मनाई

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जमशेदपुर 27 अगस्त।

टाटा स्टील ने रविवार को सर दोराबजी टाटा पार्क, जमशेदपुर में सर दोराबजी टाटा की 158वीं जयंती मनायी। मुख्य अतिथि टाटा स्टील के एम डी  टी वी नरेंद्रन और विशिष्ट अतिथि टाटा वर्कस यूनियन के अध्यक्ष  आर रवि प्रसाद पुष्प अर्पित उन्हें श्रद्धांजलि दी।

अपने संबोधन में श्री नरेंद्रन ने कहा, ‘‘हम अपने चारों ओर श्री जे एन टाटा के जो विजन और विजडम देखते हैं, उन्हें सर दोराबजी टाटा ने मूर्त रूप दिया। सौ वर्ष पहले यहां स्टील प्लांट स्थापित करते समय जो चुनौतियां थीं, वह वर्तमान कलिंगानगर स्टील प्लांट की स्थापना के समय की चुनौतियों से कई गुण बड़ी थीं। उन दिनों दुनिया भर के विभिन्न हिस्सों से कर्मचारी यहां आये, यहां रहे और स्टील प्लांट और शहर का निर्माण किया।“

उन्होंने आगे कहा कि मार्गदर्शी जज्बा, अवसरों को स्वीकार करने की तत्परता और अन्य विचार, जिन्हें हमारे संस्थापकों ने साकार किया, ने टाटा स्टील की मूल्य प्रणाली की नींव रखी है।

इस अवसर पर श्री रवि प्रसाद ने कहा, “जे एन टाटा के सपनों को सर दोराब टाटा ने पूरा किया। उन्होंने बिलकुल आरंभ में ही कर्मचारियों के कल्याण के लिए कार्य किया और भविष्य निधि, चिकित्सा सहायता, मातृत्व अवकाश, ग्रैच्युटी इत्यादि जैसी योजनाओं को लागू किया। हम उस कंपनी का एक हिस्सा होने पर गर्व महसूस करते हैं, जिसने कर्मचारियों के लिए इतनी सारी लाभकारी योजनाएं आरंभ की, जिन्हें बाद में सरकार ने अनिवार्य किया।’’

कार्यक्रम में टाटा स्टील के कॉरपॉरेट सर्विसेज के वीपी सुनील भास्करन और स्टील मैन्युफैक्चरिंग के वी पी सुधांशु पाठक, वीपी, शेयर्ड सर्विसेज (नामित) के वीपी अवनीश गुप्ता समेत टाटा ग्रुप कंपनियों के हेड, वरिष्ठ नागरिकों, कर्मचारियों और टाटा वर्कर्स यूनियन के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

सर दोराबजी टाटा के बारे में :

दोराबजी जे एन टाटा के ज्येष्ठ पुत्र थे। विश्व युद्ध के बाद जब स्टील की कीमतेें गिर गयी और टाटा स्टील अपने कर्मचारियों को वेतन भुगतान करने की स्थिति में नहीं थी, तब उन्होंने अपनी पत्नी के गहनों को गिरवी रख कर ऋण लिया और कर्मचारियों को वेतन बांटा।

बचपन से ही खेलों के प्रति सर दोराबजी का जबरदस्त लगाव था। वे एक बेहतरीन टेनिस खिलाड़ी तो थे ही, कैम्ब्रिज में उन्होंने अपने काॅलेज के लिए फुटबाॅल और क्रिकेट भी खेला। 1920 में एंटवर्प के ओलंपिक खेल में चार एथलीटों और दो पहलवानों को चुन कर और वित्तीय सहायता प्रदान कर अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में भारत का पदार्पण कराया। उस समय भारत में कोई ओलंपिक संगठन भी नहीं था। इंटरनेशनल ओलंपिक एसोसिएशन के सदस्य के रूप में चुने जाने के बाद 1924 के पेरिस ओलंपियाड में भारत की भागीदार सुनिश्चित की। 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में भारत ने पहली बार स्वर्ण पदक जीता।

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