World Water Day : जल संकट से कृषि समृद्धि तक – झारखंड में बदलाव की नई लहर

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जमशेदपुर।

पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड के बुकामडीह गांव में एक अनोखी कृषि क्रांति आकार ले रही है। यहां 10 किसानों का एक समर्पित समूह एकजुट होकर जल प्रबंधन की दिशा में बड़ा कदम उठा रहा है। उन्होंने एक समिति बनाई है, जो मेसनरी चेक डैम (MCD) और सोलर लिफ्ट सिंचाई प्रणाली के निर्माण और रखरखाव में जुटी है। यह पहल न केवल किसानों की आजीविका को संवार रही है, बल्कि जल संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन को भी नया आयाम दे रही है।

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कभी अनियमित वर्षा और जल संकट के कारण बंजर पड़ी या कम उपज देने वाली भूमि अब कृषि उत्पादकता और सस्टेनेबिलिटी का एक आदर्श मॉडल बन गई है। पहले, पारंपरिक सिंचाई प्रणालियाँ पानी की किल्लत से जूझती थीं, जिससे फसलें प्रभावित होती थीं, ऊर्जा की अधिक खपत होती थी, और स्थायी आय के अभाव में कई परिवारों को मौसमी पलायन करना पड़ता था।

टाटा स्टील फाउंडेशन की पहल से स्थापित मेसनरी चेक डैम और सोलर लिफ्ट सिंचाई प्रणाली ने इस स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है। अब न केवल कृषि और पशुपालन लगातार फल-फूल रहे हैं, बल्कि ऊर्जा की खपत में 60% तक की कमी आई है, और जलवायु-अनुकूल खेती को बढ़ावा मिल रहा है। लगभग 20 एकड़ भूमि को अब सुनिश्चित सिंचाई मिल रही है, जिससे किसान एकीकृत खेती अपनाकर अपनी आय के नए स्रोत विकसित कर रहे हैं। इस बदलाव का प्रभाव इतना गहरा है कि 50% से अधिक परिवारों ने अपने जीवन स्तर में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किया है।

पिछले कुछ वर्षों में, वाटरशेड प्रबंधन प्रणाली ने किसानों को अपनी आय के विविधीकरण का अवसर दिया है। टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा दी जाने वाली नियमित प्रशिक्षण और बीज सहायता की बदौलत कई किसान अब सिर्फ एक एकड़ भूमि से भी स्थायी आय अर्जित कर रहे हैं। जैसे कि पोटका प्रखंड के पोड़ाडीहा गांव की सुमित्रा पुराण, जो सिर्फ एक एकड़ भूमि पर धान की खेती से लगभग ₹50,000 कमा रही हैं। वहीं, उपरदेवली गांव के खुदीराम सरदार ने अपनी एक एकड़ जमीन पर सब्जी और फल उगाकर करीब ₹55,000 की आय हासिल की है।

टाटा स्टील फाउंडेशन सतत आजीविका को मजबूत करने के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वर्तमान में, यह झारखंड के करीब 8,000 किसानों के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि कृषि को अधिक लाभदायक और पर्यावरण अनुकूल बनाया जा सके।

यहां कुछ प्रेरणादायक कहानियाँ हैं, जहां किसान स्थायी कृषि अर्थव्यवस्था की दिशा में बदलाव ला रहे हैं…

पशुपति पुराण – खेती से समृद्ध भविष्य

65 वर्षीय पशुपति पुराण, जिनके पास सात एकड़ भूमि है, अब एकीकृत कृषि प्रणाली के माध्यम से समृद्धि की फसल काट रहे हैं। पोटका प्रखंड के पोड़ाडिया गांव में रहने वाले पशुपति ने 100×100 फीट का तालाब बनाकर मत्स्य पालन को बढ़ावा दिया है और उसके किनारों को उपजाऊ भूमि के रूप में विकसित किया है, जिससे वहां विविध फसलें लहलहा रही हैं। उन्होंने कम्पोस्ट पिट्स तैयार किए हैं, जिससे प्राकृतिक खाद की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होती है और पर्यावरण संतुलन बना रहता है। उनकी जमीन पर अब अरहर, अमरूद, आम, नींबू जैसी उच्च गुणवत्ता वाली फसलें उगाई जा रही हैं। मत्स्य पालन से उन्हें 70,000 रुपये, पशुपालन और फसलों से 70,000 रुपये, फलों से 32,000 रुपये और अरहर की खेती से 20,000 रुपये की वार्षिक आय हो रही है, जिससे उनकी कुल वार्षिक आय करीब 2,00,000 रुपये तक पहुंच गई है। पशुपति ने एकीकृत कृषि के माध्यम से न केवल अपनी आजीविका को सशक्त बनाया, बल्कि यह भी साबित किया कि सही संसाधन और सोच से कृषि एक स्थायी और लाभदायक व्यवसाय बन सकती है।

जगन्नाथ महतो – समृद्धि की नई राह 

पटमदा प्रखंड के दिग्घी गांव में रहने वाले 46 वर्षीय जगन्नाथ महतो अपनी छह एकड़ जमीन पर खेती कर आजीविका चला रहे हैं। लेकिन पारंपरिक कृषि पद्धतियों के चलते उनकी वार्षिक आय मात्र 60,000 रुपये थी। 2024 में, उन्होंने अपनी भूमि में 75×75 फीट का तालाब बनवाया, जिससे न केवल जल संकट का समाधान हुआ बल्कि मत्स्य पालन के जरिए आय के नए स्रोत भी खुल गए। अब उनकी वार्षिक आय लगभग 2,70,000 रुपये तक पहुंच गई है, जिसमें 1,30,000 रुपये सब्जी उत्पादन से, 50,000 रुपये मत्स्य पालन से, और 90,000 रुपये पशुपालन से आ रहे हैं। अपने कृषि तरीकों में यह छोटा सा बदलाव लाकर जगन्नाथ ने 70% की आय वृद्धि दर्ज की है।

मलाई पाल – सतत सफलता की नई इबारत

 

घाटशिला के बराजुड़ी ब्लॉक के हरे-भरे खेतों में मलाई पाल की सफलता की कहानी दृढ़ संकल्प, नवाचार और सतत विकास का उदाहरण है। एक इलेक्ट्रिकल दुकान के सफल संचालन के साथ-साथ, वह अपनी कृषि भूमि का भी पूरा उपयोग कर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। मलाई ने तालाब के किनारों पर मौसमी फसलों की खेती को अपनाया है और अपनी शेष भूमि पर भिंडी, बैंगन, करेला, लौकी जैसी सब्जियां उगा रहे हैं। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज उनकी सालाना आय करीब 2,06,000 रुपये हो चुकी है, जिसमें 96,000 रुपये नर्सरी से, 40,000 रुपये सब्जी उत्पादन से, 10,000 रुपये बतख पालन से और 60,000 रुपये मत्स्य पालन से शामिल हैं। मलाई अपने इस मुनाफे का एक हिस्सा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे अपने बेटे की शिक्षा में लगाना चाहते हैं। इसके अलावा, वह किसानों के लिए एक ऐसा केंद्र स्थापित करने का सपना देख रहे हैं, जहां वे आधुनिक खेती और उच्च उत्पादन तकनीकों पर चर्चा कर सकें। भविष्य में वह बतख पालन, बकरी पालन और एक पोल्ट्री शेड स्थापित कर अपनी आय के स्रोतों को और विस्तृत करना चाहते हैं।

घनिराम मरांडी – सामुदायिक मॉडल की स्थापना

घुराबांधा प्रखंड के तारासपुर गांव में रहने वाले घनिराम मरांडी ने एक सतत कृषि मॉडल विकसित किया है, जो न केवल उनकी आय बढ़ा रहा है, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी एक सामुदायिक उदाहरण बन गया है। उन्होंने अपनी जमीन के बीचों-बीच 70×70 आकार का तालाब बनाया है, जो मत्स्य पालन, पशुपालन और उच्च मूल्य वाली फसलों की खेती का समर्थन करता है। घनिराम की वार्षिक आय मत्स्य पालन से 54,000 ₹, पोल्ट्री से 22,000 ₹, सब्जी खेती से 36,000 ₹ है, जिससे उनकी कुल वार्षिक आय 3,00,000 ₹ हो जाती है। अब घनिराम अपने लाभ को अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा, सौर ऊर्जा के उपयोग से उत्पादकता बढ़ाने, पशुपालन का विस्तार करने और जैविक खेती अपनाने में निवेश करने की योजना बना रहे हैं, ताकि अधिक गुणवत्ता वाली फसलें उगाई जा सकें। घनिराम केवल अपनी तरक्की तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे अपनी सफलता की कहानियां अपने पड़ोसियों और स्थानीय किसानों के साथ साझा कर रहे हैं, ताकि वे भी इस मॉडल को अपनाकर समृद्धि की ओर बढ़ सकें।

अमित महतो – कृषि और संबद्ध गतिविधियों से समृद्धि की ओर

जमशेदपुर प्रखंड के चोलागोड़ा गांव के अमित महतो ने 2021 में फाउंडेशन की टीम से परामर्श लेने के बाद एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाया। 2018 में, उन्होंने अपने परिवार की प्रोटीन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक छोटा तालाब बनाया था, जिसे बाद में उन्होंने मत्स्य पालन, मेंड़ खेती और अन्य विविध कृषि गतिविधियों को शामिल करते हुए विस्तारित किया। पहले, अमित केवल 20,000 – 50,000 रु वार्षिक कमाते थे, जो मुख्य रूप से धान की खेती से आता था। लेकिन एकीकृत कृषि अपनाने के बाद, अब वे केवल मत्स्य पालन से ही 70,000 – 80,000 रु कमाते हैं, इसके अलावा सब्जी, पोल्ट्री और पशुपालन से उनकी आय और भी बढ़ जाती है।  आज अमित 2,00,000 रु  से अधिक वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं, जिससे वे अपने परिवार की खुशहाली सुनिश्चित कर रहे हैं, सूअर और मुर्गी पालन का विस्तार कर रहे हैं और उच्च मूल्य वाली फसलों के माध्यम से अपनी आय को और बढ़ा रहे हैं। उनकी इस असाधारण यात्रा ने कई किसानों को प्रेरित किया है। जलग्रहण प्रबंधन तकनीकों को अपनाने के बाद, अमित अब अपनी संबद्ध कृषि गतिविधियों के लिए चार गुना कम पानी का उपयोग कर रहे हैं। उनके मेहनती प्रयासों को झारखंड के राज्यपाल द्वारा भी सराहा गया है।

चंचला बेसरा – खुशहाल जीवन की कुंजी है स्वस्थ खेती

पारंपरिक धान की खेती और मत्स्य पालन से आगे बढ़ते हुए, चंचला बेसरा ने मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के साथ एकीकृत कृषि मॉडल को अपनाया, जिससे उनकी वार्षिक आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उनके खेत में टमाटर, बैंगन, पालक जैसी सब्जियों की खेती होती है, जो पशुपालन के साथ संतुलित रूप से फली-फूल रही हैं और उनके कृषि तंत्र को सतत और लाभकारी बना रही हैं।

आज, चंचला ने अपनी आय दोगुनी कर ली है—वह 30,000 रु मत्स्य पालन से, 60,000 रु सब्जियों से, और 40,000 रु बतख एवं पशुपालन से कमा रही हैं, जिससे उनकी वार्षिक आय लगभग 5,00,000 रु तक पहुंच गई है। अपनी कमाई का एक हिस्सा उन्होंने अपने परिवार की जीवन गुणवत्ता सुधारने में लगाया, जबकि शेष को भविष्य की आर्थिक स्थिरता और कृषि विस्तार में निवेश किया।

चंचला आज अपने गांव की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं, जो उनकी सफलता से सीखते हुए जलग्रहण आधारित कृषि में निवेश कर रही हैं।

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