तटबंध के अंदर यातायात का एक मात्र साधन नाव व पैदल
राजा टोडरमल के जमाने से ही कोशी दियारा का फरकिया ईलाका मुलभूत समस्याओं से उपेक्षित रहा हैं। इस ईलाके में रहने वाले लोग सीधे व शांत स्वभाव के रहें है। सन 1988 ई में एक नील गाय से उपजा वर्चस्व की गाथा आज तक विभिन्न कारणों से जारी है।फरकिया क्षेत्र के संबंध में जानकारों की माने तो सन 88 में एक नील गाय भटक कर दियारा के फरकिया ईलाके में आ गया था खगड़िया-सहरसा जिले के सीमा पर अवस्थित बरियाही(रामानंद यादव का पैतृक घर) के ग्रामीणों ने उस नील गाय को पकड़ने के लिये प्रयास किया लेकिन नील गाय भाग कर चिड़ैया बहियार एक पानी के दलदल में फंस गई,चिड़ैया के ग्रामीणों ने उस नील गाय को निकाल चिड़ैया विधालय पर ले आये(वर्तमान में उसी विधालय के पुराने भवन में चिड़ैया पुलिस शिविर संचालित है) यहीं से बहियार के सामुहिक ग्रामीणों व चिड़ैया के सामुहिक ग्रामीणों के बीच अपने अपने वर्चस्व को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया जो समय के साथ बढ़ते हुये जल,जलकर व जमीन पर आ कर विभिन्न अपराधी गिरोह के बीच हो कर रह गई।इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि 21वीं सदी में भी कोसी दियारा-फरकिया के इलाकों में यातायात की समस्या गंभीर बना हुआ है. जिले के पिछड़ा व बाढ़ प्रभावित माने जाने वाला सलखुआ एवं सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर बसे एक घनी आबादी दियारा-फरकिया के इलाकों से अभी भी लोगों को बाजार व प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचने के लिए नावों का ही सहारा लेना पड़ता है। सलखुआ प्रखंड के पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर बसे दर्जनों गांवों की है. प्रखंड के चार पंचायत कबीरा, चानन, अलानी एवं साम्हरखुर्द एवं सिमरीबख्तियारपुर प्रखंड के चार पंचायत धनुपरा, कठडूम्मर, घोघसम एवं बेलवाड़ा पंचायत के दर्जनों गांव के लाखों की आबादी सरकार के विकास की पोल खोल रहा है.इन क्षेत्रों के लोगों के लिए नाव ही नदी पार करने का एक मात्र साधन है.लोग पुल सहित पक्की सड़कों की मांग वर्षों से करते आ रहे हैं.कोसी दियारा-फरकिया वासियों की मांगे आज तक पूरी नहीं हो सकी है. नदी पार करने की परेशानी से लोग अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा नहीं दिला पाते हैं. तटबंध के भीतर दुरूह आगमन व नदी के खौप से ग्रामवासी चाहकर भी प्रतिदिन प्रखंड मुख्यालय आने से कतराते है.इस स्थिति में फरकिया इलाके में स्वास्थ्य, शिक्षा, शुद्ध पेयजल, बिजली, पक्की सड़क एवं कोसी नदी में पुल की परिकल्पना बेमानी साबित हो रही है.इतना ही नहीं तटबंध के भीतर बसे दोनों प्रखंड के दर्जन से अधिक गांव ऐसे हैं जहां जाने के लिए नाव ही एक मात्र सहारा है।
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