रवि कुमार झा,
जमशेदपुर।

एक पुजारी ने ऐसी परिकल्पना की आज पूरा देश नही बल्की पुरा विश्व उसके परिकल्पना के कायल है। उसी परिकल्पना का परिणाम है टाटा कंपनी। उस प्रतिभा की घनी व्यक्ति का नाम है जमशेत जी नसेरवान । जिनके कारण आज लाखो परिवार का घर चल रहा है। और आज तीन मार्च को उनका जन्मदिवस है। इस जन्मदिवस के अवसर पर जमशेदपुर (टाटानगर) शहर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
अग्रगामी, दूरदर्शी, भविष्यद्रष्टा एवं असाधारण क्षमता और व्यक्तित्व के धनी जमशेतजी नसेरवानजी टाटा ने विश्व के औद्योगिकृत देशों के मानचित्र पर भारत को भी एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उन्होंने प्रतिभा एवं सृजनशीलता का इस्तेमाल अपने देश के विकास एवं मानवता के प्रति अपने तीव्र प्रेम से उत्पन्न सपनों को साकार करने में किया। उनकी लगन, आदर्शों और विजन ने एक उत्कृष्ट व्यावसायिक संगठन को ठोस आकार दिया और तब से उस संगठन को लगातार ऊर्जा और प्रोत्साहन मिलता रहा ताकि उस एक व्यक्ति द्वारा एक सदी से भी ज्यादा अरसे पूर्व देखे गये उस सपने को साकार किया जा सके।
बड़ी कल्पना करने की यह प्रवृत्ति जमशेतजी नसेरवान में काफी कम उम्र में ही दिखने लगी थी। 3 मार्च 1839 को गुजरात के एक छोटे से शहर नवसारी में जन्मे वे पारसी पुजारियों के परिवार के मुखिया नसेरवानजी टाटा के पहले पुत्र थे। यह स्वाभाविक ही था कि नसरवानजी भी परिवार में पुजारी के रूप में काम करना जारी रखते, लेकिन उस उद्यमी युवा ने परंपराएँ तोड़ते हुए व्यवसाय के क्षेत्र में प्रवेश किया और ऐसा करनेवाले वे परिवार के पहले व्यक्ति थे।
जमशेदजी की उद्यमशीलता व कुशाग्र बुद्धि के साथ उनके राष्ट्रवादी दृष्टिकोण ने उन्हें इस निष्कर्ष तक पहुँचाया कि उनकी व्यावसायिक सफलता का लाभ पूरे देश को मिलेगा और यही वह विशेषता है जो उन्हें दूसरों से अलग करती है। जमशेदजी की दृष्टि की महानता उनकी उद्यमशीलता की गुणवत्ता में स्पष्ट परिलक्षित होती है। इस्पात संयंत्र की स्थापना से काफी पहले ही जमशेतजी ने अपने कर्मचारियों के कल्याण के बारे में विचार कर लिया था। वे अपने कामगारों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील थे, और उनके लिए अनुकूल कार्यस्थल, काम के सीमित घंटे और भविष्य निधि और ग्रेच्युटी जैसै कर्मचारियों के लाभों को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने विस्तृत योजनाएँ तैयार की थीं, पूरी दुनिया में कार्यस्थलों पर इन्हें वैधानिक अनिवार्यता बनाये जाने से काफी पहले। उन्होंने न केवल एक संतुष्ट एवं उत्पादक कार्य बल की कल्पना की थी, बल्कि चारों ओर हरियाली से परिपूर्ण एक नियोजित शहर की कल्पना भी की थी। उनके विजन से बाद के वर्षों में जन्मा यह शहर बाद में सर दोराबजी टाटा के संरक्षण में जमशेदपुर के नाम से जाना जाने लगा। उस महान उद्योगपति के भीतर मौजूद सच्चे भारतीय में एक ऐसा जुनून और प्रतिबद्धता थी जिसने उन्हें व्यक्तिगत एवं पेशेवर जिंदगी में सफलता की राह पर तेजी से अग्रसर किया।