बिहार की बाढ़ पीडि़त आबादी प्रशासनिक बदइंतजामी झेल रही है। कई जगह उन्हें जीवन रक्षा के भी मूलभूत संसाधन भी उपलब्ध नहीं। इससे लड़ने के लिए लोगों ने अजग-गजब जुगाड़ का सहारा लिया है। बाढ़ पीडि़तों द्वारा दो ट्यूब जोड़कर ‘वाटर एंबुलेंस’ बनाना या टीन की चादर से नाव बनाना ऐसे ही उदाहरण हैं।
ट्यूब से बनाई वाटर एंबुलेंस
कभी-कभी कठिन परिस्थितियां सृजन का आधार बनती हैं। ऐसा ही किया है बिहार के भागलपुर जिले के नवगछिया अनुमंडल स्थित इस्माइलपुर पंचायत के ग्रामीणों ने। दुनिया से कटी यहां की बाढ़ग्रस्त आबादी ने मरीजों को अस्पताल तक ले जाने के लिए अनोखा ‘वाटर एंबुलेंस’ तैयार किया है। मेडिकल मानकों पर यह भले ही खरा नहीं उतरे, लेकिन जीवन की रक्षा करने में सहायक जरूर बना है।
इस्माइलपुर को सांसद बुलो मंडल ने प्रधानमंत्री आदर्श पंचायत योजना में चुना। इसके बाद ग्रामीणों में विकास की आस जगी। लेकिन, न तो सांसद और न ही जिला प्रशासन की ओर से उनकी सुधि लेने की कोई पहल शुरू की गई। हालत यह है कि हर साल की तरह इस साल भी यह पंचायत बाढ़ के पानी से तबाह हो गई है।
बाढ़ के साथ बीमारियां भी आईं, लेकिन पानी ने इस इलाके को दुनिया से काट दिया। अब बीमार को अस्पताल पहुंचाना मुश्किल हो गया। लेकिन, लोगों ने हिम्मत नहीं हारी। बीते दिनों जब एक महिला व एक वृद्ध की तबियत अचानक ख़राब हो गई, तब ग्रामीणों ने दानों मरीजों को खाट पर लिटाया, फिर ट्यूब का सहारा लेकर नावनुमा आकार बनाया और उसके ऊपर खाट रखकर मरीज को लेकर नवगछिया अस्पताल निकल पड़े।
ग्रामीण बताते हैं कि जुगाड़ का यह आइडिया काम कर गया। इसके बाद तो यह वाटर एंबुलेंस कइयों का जीवन बचाने में सहायत बन चुका है। इलाके में इसकी चर्चा है।
टीन की चादर से बनाया नाव
भागलपुर के दर्जनों गांवों में गंगा का पानी घुस गया है। प्रशासन ने नाव मुहैया कराई है, लेकिन वे नाकाफी हैं। लेकिन, जिंदगी तो नहीं रूकती। जब बाढ़ से घिरी आबादी की जान पर बन आई तो उसने जुगाड़ का सहारा लिया। वहां के लोगों ने टीन की चादर से नाव बना लिया। यह खतरनाक तो है, लेकिन डूबते को तिनके का सहारा तो यही है।
इसी तरह पटना, भागलुपर व भोजपुर के दियारा इलाकों में लोगों ने आवागमन के लिए चचरी पुल बनाया है। तेज पानी में इनपर चलना खतरनाक है, लेकिन कोई अन्य साधन भी तो नहीं।
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