बीजेएनएऩ ब्यूरों ,नई दिल्र्ली.18 मार्च
1952 में जब पहली लोकसभा का गठन हुआ था तो उसमें 37 निर्दलीय थे जो सदन की कुल सदस्य संख्या का करीब सात फीसदी थे। हालांकि उनकी तादाद धीरे-धीरे घटने लगी और 15वीं लोकसभा तक आते आते महज 9 निर्दलीय सदस्यों तक सिमट गई। सन 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में 1874 उम्मीदवारों में से 533 (करीब 28 प्रतिशत) निर्दलीय थे। उनके प्रदर्शन से उत्साहित होकर अगले आम चुनावों (1957) में उनकी भागीदारी बढ़कर 31 प्रतिशत हो गई। सफल होने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या भी 37 से बढ़कर 42 हो गई।
हालांकि 1962 में हुए तीसरे लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहा। उनकी संख्या घटकर (पिछली लोकसभा में 42 से घटकर) 20 रह गई, यह गिरावट 50 प्रतिशत से भी ज्यादा थी। हालांकि चौथी लोकसभा में कामयाब होने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में काफी वृद्धि हुर्इ और यह 35 तक पहुंच गई। संभवत: इसी से उत्साहित होकर 1971 में हुए 5वीं लोकसभा के चुनावों में और ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे। 5वीं लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले कुल उम्मीदवारों में से करीब 40 फीसदी निर्दलीय उम्मीदवार थे। हालांकि महज 14 ही चुनाव जीत सके और पर्याप्त मत ना मिलने की वजह से कुल निर्दलीय उम्मीदवारों में से 94 प्रतिशत की जमानत जब्त हो गई।
पांचवे आम चुनाव के खराब प्रदर्शन के बावजूद बाद के आम चुनावों में हिस्सा लेने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई। मिसाल के तौर पर छठें आम चुनाव में 50 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवारों ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा। सातवें आम चुनाव में इनकी संख्या बढ़कर 61 प्रतिशत हो गई। आठवें आम चुनाव में इसमें और ज्यादा वृद्धि हुर्इ तथा 71 उम्मीदवारों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। 11वें आम चुनावों में हिस्सा लेने वाले उम्मीदवारों में से 76 प्रतिशत निर्दलीय थे।
1998 में जमानत राशि में वृद्धि होने के बाद 12वें आम चुनाव में हिस्सा लेने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या घटकर करीब 40 प्रतिशत रह गई।

