मधुबनी।
अविनाश चंद्र मिश्र द्वारा रचित नाटक “मुक्तिपर्व” नाटक ही नहीं असल में अभिव्यक्ति की एक मुक्तियात्रा है । इसके अतिरिक्त त्याग, प्रेम, घृणा, अधिकार और तपस्या है । अनादिकाल से ही यह परंपरा चली आ रही है की “महिला” पुरुष अर्थात पुरुषवादी समाज के अधिपत्य हैं । उनके मौलिक स्वरूप को न अपना कर, उनकी पुरुष अधिपत्य के अनुरूप अस्तित्व का आकलन किया जाता है एवं उसी के अनुरूप उनके अधिकार का भी सीमा तय होती है । उनकी चंचलता कब चरित्रहीनता का कारण बन जाएगी, यह भी पुरुषवादी समाज ही तय करता है । सामा के गीत तो आप सबों ने सुना ही होगा, जिसे द्वापद युग से ही हमारी समाज की महिलाओं ने सहेज कर रखा है । साथ ही साथ ढेर सारा प्रश्न भी खड़ा होता है कि आखिर क्यों गाती है लड़कियां सामा का गीत ? कौन थी सामा? क्यों लगा वृंदावन में आग ? क्यों लगाते हैं चुगला के मुंह में आग ? और यह मुक्तियात्रा कैसे बना मुक्तिपर्व जिसे सभी हर्षोल्लास से हर साल मनाते हैं । इन सभी प्रश्नों का जवाब देगा हमारा नाटक मुक्तिपर्व जो आगामी 15 सितंबर को गिरधारी नगर भवन में होने जा रही है । इस नाटक के लेखक अविनाश चंद्र मिश्र है एवं निर्देशक इंद्र भूषण रमण ‘बमबम’ है।
पात्र-परिचय
सूत्रधार :- प्रभात रंजन
विपटा :- पंचम प्रकाश
कथावाचक/शंकर :- रंजीत रॉय
नारद :- मिथिलेश मैथिल
कृष्ण :- श्रीप्रसाद दास
विष्णु/अभिनेता 5 :- अभिमन्यु कुमार
चुड़क :- अर्जुन राय
साम्ब :- अभिषेक आकाश
चारुवक्त्र/चकवा :- रौशन कुमार
अभिनेता 1 :- रमण कुमार
अभिनेता 2 :- प्रियांशु प्रणव
अभिनेता 3 :- रमेश कुमार
अभिनेता 4 :- अहमद
सामा :- कुमारी प्रेमलता
रुक्मिणी :- स्नेहलता
अभिनेत्री 1 :- पूजा कुमारी
अभिनेत्री 2 :- काजल कुमारी
अभिनेत्री 3 :- गुड़िया कुमारी
अभिनेत्री 4 :- स्वीकृति नंदा
अभिनेत्री 5 :- चंदा कुमारी
अभिनेत्री 6 :- सरस्वती कुमारी
अभिनेत्री 7 :- पूजा
अभिनेत्री 8 :- खुशबू झा
संगीत (गायन मंडली) :- विष्णुदेव दास, अवधेश पासवान, सचिन, रूपेश, मणिकांत सिंह, नीरज कुमार सिंह, साधना सांडिल्य, कुमारी मालविका
प्रकाश परिकल्पना :- मोहित, खुशी, चिंटू
ध्वनि परिकल्पना :- राजनीति, संजय, उमेश
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