मजदूर दिवस स्पेशल: जानिए JAMSHEDPUR शहर के मजदूरों का इस आवाज से खास है रिश्ता,इसके आवाज से ही काम के लिए होने लगते है तैयार

1,753

 

रवि झा

जमशेदपुर।

स्टील सिटी, ग्रीन सिटी ,स्पोर्टस सिटी , कॉरपोरेट सिटी के साथ साथ मजदूरों के शहर के नाम से भी जमशेदपुर जाना जाता है। वैसे आम तौर पर बोल चाल की भाषा में इस शहर को टाटा भी कहते हैं क्योंकि विश्व स्तरीय टाटा स्टील का प्लांट इसी शहर में है।जाहिर है प्लांट होंगे तो काम करने वाले लोग भी यहां रहेंगे। जमशेदपुर में खासकर टाटा स्टील या इससे जुडी इकाईयों से जुड़े लोग/कर्मचारी पोंगा , पगार और पकौड़ी को जरुर जानते हैं। यह तीनों शब्द एक दुसरे से जुड़े हैं।

इसे भी पढ़ें : –Sunday Positive: खड़गपुर -आदित्यपुर तीसरी लाइन का 90 प्रतिशत पुरा ,रेल मंत्रालय ने जानकारी

पोंगा

पोंगा का अर्थ सायरन से है। जानकारी के अनुसार जब टाटा कंपनी (टिस्को) की शुरुआत हुई,उस समय सभी के पास घड़ियां नहीं होती थी, जिस कारण कंपनी में कब उन्हें आना है और जाना है इसकी जानकारी उन लोगों को नहीं हो पाती थी। कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी समय पर आए उसे देखते हुए कंपनी ने एक सायरन लगाया और उस सायरन(पोंगा) का समय निश्चित किया गया। निश्चित समय के अनुसार पोंगा बजता था जिसे सुनकर कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी आना जाना करते थे। यह पोंगा आज भी आज भी पूर्व की तरह बजता है.ये अलग बात है कि शहर में बढते ट्रैफिक के शोर और अन्य वजहों से पोंगे की आवाज उतने जोर से सुनाई नहीं देती है जितनी पहले देती थी.पहले यह दिन में कई बार बजता था अब यह दिि में सिर्फ तीन बार बजता है.उसके अलावा विशेष अवसरों पर भी बजता है.

इसे भी पढ़ें : –Jamshedpur News :मजदूरों पर रिलीज हुई एलबम ‘द पावर आफ इंडिया’

पहले पोंगा का समय

पोंगा का समय कर्मचारी के काम के हिसाब से तय किया गया था। सबसे पहले पोंगा सुबह चार बजे बजता था। इसका मतलब ए शिफ्ट वाले कर्मचारी कर्मचारी उठ कर तैयार होना शुरु कर दें। उसके बाद पांच बजे पोंगा बजता था इसका मतलब घर से निकल जाएं। 6 बजें पोंगा बजने का मतलब रात डयूटी वाले कर्मचारी की छुट्टी और ए शिफ्ट वाले कर्मचारी काम पर लग जाएं।उसके बाद सुबह सात बजे पोंगा बजता था। इसका मतलब जनरल शिफ्ट वाले कर्मचारी अपने काम के लिए निकल जाएं। उसके बाद पोंगा साढ़े ग्यारह बजे बजता था ।इसका मतलब बी शिफ्ट वाले कर्मचारी तैयार होना शुरु कर दें। उसके बाद यह पोंगा साढ़े बारह बजे बजता था इसका मतलब बी शिफ्ट वाले घर से निकल जाएं। उसके बाद दो बजे पोंगा बजता था।यानि ए शिफ्ट वाले की छुट्टी और बी शिफ्ट वाले काम पर लग जाएं। फिर शाम के चार बजे पोंगा बजने पर जेनरल शिफ्ट वाले की छुट्टी हो जाती । उसके बाद रात के नौ बजे पोंगा बजता है इसका मतलब रात शिफ्ट वाले तैयार हो कर घर से निकल जाएं। उसके बाद दस बजे पोंगा बजता हैं। इसका मतलब बी शिफ्ट वाले की छुट्टी और रात ड्यूटी वाले काम पर लग जाएं।

इसे भी पढ़ें : –बेबाक रविवार : कदमा शास्त्रीनगर उपद्रव मामला–एकपक्षीय कार्रवाई का आरोप निराधार –खुद घायल होकर शहर को जलने से बचाया—-एसएसपी

 

पोंगा का दायरा पांच किलोमीटर तक

 

इस पोंगा का दायरा करीब पांच किलोमीटर का है। यह इतना जोर बजता था कि शहर के पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों तक इसकी आवाज की सुनाई पड़ती थी। यही नही इसी पोंगा के आवाज से ही कई स्कूल की घंटिया बजती थी।

इसे भी पढ़ें : –Jamshedpur News :टाटा स्टील ने जमशेदपुर प्लांट से टाटा फेरोशॉट्स की पहली खेप को हरी झंडी दिखाई

प्लांट के अंदर दो जगह हैं पोंगा

यह पोंगा 1920 में टाटा स्टील के प्लांट के अंदर दो जगह लगाया गया था. एक पोंगा ब्लोअर हाउस-3 और दूसरा ब्लोअर हाउस-4 में लगाया गया है। इसका हाईट करीब 15 मीटर रखा गया है।

दो मिनट तक बजता है पोंगा

जानकारी अनुसार यह पोंगा अभी तीन समय पर बजता है। पहला सुबह 6 बजे, दोपहर दो बजे और फिर रात के दस बजे बजता हैं। इसकी आवाज करीब दो मिनट तक सुनाई देती है।

विशेष दिन में भी बजता है पोंगा

इसके अलावा साल भर में टाटा स्टील प्रबंधन के निर्देश पर अलग से 6 बार पोंगा बजाया जाता है। विशेष त्योहारों में पोंगा बजाया जाता है। गणतंत्र दिवस पर यानि 26 जनवरी को सुबह 6 बजकर पांच मिनट तक और शहीद दिवस यानि 30 जनवरी को दिन के 11 बजे एक मिनट तक के लिए पोंगा बजता है। 30 जनवरी की शाम के 5.28 मिनट पर दो मिनट तक (गांधीजी की पुण्यतिथि), संस्थापक दिवस 3 मार्च को सुबह 6 बजे पांच मिनट तक , मजदूर नेता प्रो. अब्दुल बारी की पुण्यतिथि 28 मार्च को सुबह 6.29 मिनट पर दो मिनट तक और स्वतंत्रता दिवस के दिन यानि 15 अगस्त को दिन के 12 बजे 5 मिनट तक के लिए पोंगा बजाने की परंपरा है।

पगार

पुरे माह काम करने के बाद कर्मचारियों दिया जाने वाले वेतन को पगार कहा जाता था। कर्मचारियों को जब पगार मिलता था तो कर्मचारियों में काफी खुशी होती थी। उस दिन घर में कंपनी से लड्डू खरीद कर जरूर ले जाते थे।

पकौड़ी

काम के दौरान जब छुट्टी होती तो कर्मचारी कंपनी के बाहर कई दुकानें होती जहां चाय के साथ पकौड़ी नाश्ता करते थे। इसलिए जमशेदपुर में कई चौक चौराहों में आज भी पकौड़े के कई दुकानें हैं। लोग बड़े चाव से पकौड़े खाते हैं।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More