संतोष कुमार।
जमशेदपुर।
पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से महज 17 किमी की दूरी पर स्थित बोड़ाम थानान्तर्गत पगदा गांव एवं उसके आस- पास के गांवो के लोग 21वीं शताब्दी में भी प्रकृति द्वारा प्रदत्त झरने का पानी पीने को विवश हैं. आजादी के 69 वर्षो के बाद भी इन गांवों के लोगों को पीने का शुद्ध पानी मयस्सर नहीं है. हद तो ये है कि जिन सुविधाओं के नाम पर आलग झारखंड राज्य की मांग पूरी की गई उससे आज भी राज्य की एक बड़ी आबादी कोसों दूर है. हम जिस गांव की बातें कर रहे हैं वहां सरकारी स्कूल, बिजली पानी के लिए नलकूप, कुएं इत्यादी हैं, मगर पीने के लिए स्वच्छ पानी का घोर किल्लत देखा गया. इन गांवों की लगभग चार हजार की आबादी पीने के लिए पहाड़ से निकलनेवाले झरने के पानी का ही प्रयोग करते हैं. हमने जानना चाहा कि आखिर क्यों गांव के लोग पीने के लिए झरने के पानी पर ही आश्रित हैं तो ग्रामीणों का जवाब बेहद ही सरल शब्दों में मिला कि हमारे पूर्वजों ने ही जब इस झरने के पानी को पीकर अपना पूरा जीवन बिता दिया तो हम भी उन्ही के पदचिन्हों पर चल रहे हैं. जब उनसे पानी की शुद्धता के संबंध में बातें की तो उन्होंने कहा कि हमारे लिए झरने का पानी किसी मिनरल वाटर से कम नहीं है.
क्या कहते हैं ग्रामीण
सरकार कोई वैकल्पित व्यवस्था दे तभी तो कुछ किया जाएः मुखिया
इस संबंध में पगदा गांव के मुखिया ने पूरण चंद्र सिंह मुंडा ने बताया कि सदियों से क्षेत्र के लोग इसी झरने का पानी पीते आ रहे हैं. सरकारें चाहे कोई भी हो किसी ने इन गांवों के लिए पीने के पानी का कोई सार्थक पहल नहीं किया. उन्होंने बताया कि वे जनप्रतिनिधि हैं लेकिन सरकार की ओर से कोई फंड मिले तभी तो इस दिशा में कोई पहल की जा सकेगी. उन्होंने बताया कि सरकारी चापाकल एवं कुंएं हैं लेकिन चूंकि इनका पानी इतना खारा है कि गांववाले इनका प्रयोग केवल नहाने एवं कपड़ों की सफाई के लिए करते हैं.
हम शिक्षा देते हैं लेकिन विवश हैः सुमित कुमरा तिवारी शिक्षक
पगदा प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक सुमित कुमार तिवारी से जब जानने का प्रयास किया कि आखिर आप किस प्रकार की शिक्षा देते हैं बच्चों को स्वच्छ पानी के संबंध में. उन्होंने स्पष्ट लहजे में कहा कि झारखंड राज्य के नागरिकों को अलग राज्य का लाभ नहीं मिल रहा. मूलभूत सुविधाओं के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है. वे विवश हैं ग्रामीणों की स्थिति को देखकर. उन्होंने बताया कि गांव के नलकूपों का पानी अत्यंत ही खारा है जिसे एक घूंट भी पिया नहीं जा सकता. खाना भी नहीं बनता ऐसे प्रकृति द्वारा प्रदत्त सुविधा ही इनके लिए एकमात्र साधन है.
हमने शिक्षा ग्रहण जरूर किया है लेकिन प्रैक्टीकल में फेल हैः छात्रा
गांव की ही इंटर में पढ़नेवाली छात्रा छाया रानी सिंह ने व्यंग करते हुए पानी की हांडी सर पर लिए व्यंग करते हुए कहा कि भैया हमने पढ़ाई के दौरान ये बातें जरूर पढ़ीं हैं कि पीने के लिए स्वच्छ पानी का प्रयोग करना चाहिए. लेकिन आपके सामने जो दिख रहा है यही हकीकत है. उसने बताया कि थ्योरी ये कहता है कि गंदा पानी पीने से अनेक प्रकार की बीमारियां फैलती हैं, लेकिन प्रैक्टीलक यही है कि जीने के लिए इससे समझौता करने में ही भलाई है. हम प्रैक्टीकल में फेल हैं जिसके लिए हमारे पूर्वज जिन्होंने अलग झारखंड राज्य की मांग की थी वे जिम्मेवार हैं. उसने काफी दुखी मन से सरकार को कोसते हुए कहा कि क्या करें ये तो अपनी नियती है जिसके लिए सरकार कभी तो सोचेगी.
जब शादी करके आई हूं झरने के पानी का ही प्रयोग कर रही हूः शकुंतला सिंह
एक महिला ने बताया कि करीब बीस वर्ष पूर्व इस गांव शादी कर आयी हूं तब से ल्रेकर आज- तक सुबह एवं शाम एक ही दिनचर्या है पीने का पानी झरना से लाने का. जब उनसे पूछा गया कि कभी सोचा है आपने कि आपकी आनेवाली पीढ़ी का क्या होगा. उन्होंने हंसते हुए क्षेत्रीय भाषा में कहा कोनो दिने तो बिहान होबेखे बाबू, जारो कोने नाई थाके ओदेर ठाकुर तो आछे……. अर्थात् कभी तो सवेरा होगा. जिसका कोई नहीं होता भगवान (प्रकृति) उसकी रक्षा करते है.
गौर करेवाली बात ये है कि इस क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक रहे रामचंद्र सहिस (वर्तमान में भी) ने भी कभी इस क्षेत्र की समस्या को लेकर किसी भी स्तर पर मांग नहीं किया. हालांकि इस संबंध में भी ग्रामीणों का कहना था कि विधायक जी कहते हैं कि हम ग्रामीणों की वोट पर नहीं जीते हैं बल्कि शहरी वोट से जीते हैं. वैसे जानकारी के लिए यहां बताना उचित होगा कि जिस डिमना लेक के पानी से पूरे जमशेदपुर शहर को शुद्ध पानी मुहैया कराई जा रही है वह डिमना लेक इस गांव से महज 10 या बारह किमी दूरी पर है. हम सरकार एवं स्थानीय जिला प्रशासन से उम्मीद करते हैं कि शायद हमारी रिपोर्ट के बाद इन ग्रामीणों का कुछ हल निकल सके.
