Jamshedpur News -बिरसा मुंडा की जयंती व 9 वें सिख गुरु तेग बहादुर जी की 400 वीं प्रकाश पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का रक्तदान शिविर

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स्थानीय धालभूमगढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं डॉ बालमुकुंद स्मृति सेवा न्यास के तत्वाधान में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती एवं 9 वें सीख गुरु तेग बहादुर जी की 400 वीं प्रकाश वर्ष में रक्तदान शिविर आयोजित किया गया। जिसमें गुरु नानक नर्सिंग होम के संचालक सर्वजीत सिंह एमoजीoएमo अस्पताल के हड्डी रोग विशेषज्ञ एवं प्राध्यापक श्री गौरीशंकर बड़ाईक जमशेदपुर महानगर के संघचालक व्ही नटराजन जमशेदपुर विभाग के विभाग प्रचारक आशुतोष कुमार उपस्थित रहे। सर्वप्रथम दीप प्रज्वलित कर भारत माता, भगवान बिरसा मुंडा एवं गुरु तेग बहादुर जी के तस्वीर पर पुष्पार्चन किया गया। तत्पश्चात सर्वजीत सिंह ने सीख गुरुओं के बलिदान को पुरे समाज के लिए एक सबक के रूप में लेने की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ गौरीशंकर बड़ाईक ने भगवान बिरसा मुंडा के संपूर्ण जीवन को देश एवं धर्म के लिए एक आदर्श के रूप में बताया कि। अनेको कठिनाईयों के बावजूद भगवान बिरसा ने अपने जीवन में राष्ट्र धर्म को पहले स्थान पर रखा। और अपनी संस्कृति एवं महापुरुषों के प्रति सदैव श्रद्धा एवं विश्वास बनाये रखा। मुख्य वक्ता आशुतोष भारती ने दोनों धर्म योध्दाओं की जयंती पर प्रकाश डालते हुए कहा कि। जिन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया. और उनके बलिदान के फल स्वरूप पूरा समाज जागृत और संगठित होकर मुस्लिम आक्रांताओं एवं धूर्त ईसाई मिशनरियों को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया। और भगवान बिरसा मुंडा की जयंती और गुरु तेग बहादुर जी के 400 वें प्रकाश पर्व को सार्थक बनाने का आह्वान किया। भगवान बिरसा मुंडा के जीवन से संबंधित एक घटना का उल्लेख करते हुए। उन्होंने बताया कि आज भोले भाले जनजातीय समाज के लोग अपने बच्चों की शिक्षा के लिए धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि भगवान बिरसा के पिता भी ईसाई धर्म को स्वीकार किया और बिरसा को चाईबासा के मिशनरी स्कूल में दाखिला कराया। किंतु शुक्रवार के चर्च के पादरी द्वारा मुंडा समाज धर्म संस्कृति के विरोध में कहना शुरू किया। और फिर सामने खड़ा होकर इसका कड़ा प्रतिकार किया। और उन्होंने अपने पिता के साथ ईसाई धर्म को छोड़कर वैष्णव धर्म अपनाया। तथा यज्ञोपवित धारण किया। एवं पूरे समाज को संगठित कर ईसाई मिशनरियों के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ी। जिससे अंग्रेज सिपाही इनका सहयोग करने के लिए खड़े हुए। आज लोग जलियांवाला बाग का उल्लेख करते हैं। लेकिन झारखंड की धरती पर ईसाई मिशनरियों और अंग्रेजों के संयुक्त अभियान कर सामूहिक रूप से जब विरसा सभा कर रहे थे। तो चारों तरफ से घेरकर छोटे-छोटे बच्चों महिलाओं को मौत के घाट उतारा गया। वही गुरु तेग बहादुर जी के बारे में बताया कि जब कश्मीर के हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने के लिए औरंगजेब और उसके सैनिक प्रयास कर रहे थे। तो उस समय गुरु तेग बहादुर के पास आए कश्मीरी हिंदुओं के लिए गुरु तेग बहादुर ने कहा कि किसी महान संत को बलिदान देने की आवश्यकता है। तो उनका छोटा सा पुत्र गुरु गोविंद सिंह अपने पिता को कहता है। कि आप से बड़ा महान संत कौन है। समाज में और अपने पुत्र की प्रेरणा से गुरु तेग बहादुर जी हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान हुए। आज यह प्रश्न हम सबों के सामने है की यह समाज कब जागेगा और कितने गुरुओं की बलि स्वीकार करेगा। अतः उठो जागो और पराक्रम करो। कुल मिला कर 172 यूनिट रक्दान पूर्ण हुआ। मंच संचालन विनोद कर्ण एवं समूचे व्यवस्था को जयगोपाल, अमित, संजय, सुनील , ऋषिकांत, हन्नी, पी के दत्ता ने सम्हाला।

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