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Home » Jamshedpur News :बात उनकी, सोच सबकी”— ‘युवा’ संस्था ने महिलाओं, विकलांगों और ट्रांसजेंडर समुदाय की राजनीतिक व सामाजिक भागीदारी पर सार्थक संवाद का किया आयोजन
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Jamshedpur News :बात उनकी, सोच सबकी”— ‘युवा’ संस्था ने महिलाओं, विकलांगों और ट्रांसजेंडर समुदाय की राजनीतिक व सामाजिक भागीदारी पर सार्थक संवाद का किया आयोजन

BJNN DeskBy BJNN DeskOctober 24, 2025No Comments5 Mins Read
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Anni Amrita

जमशेदपुर.

‘युवा’ संस्था ने -डब्ल्यूजीजी के तहत ‘क्रिया’ के सहयोग से शुक्रवार को होटल कैनेलाइट में “बात उनकी, सोच सबकीः लड़कियों, महिलाओं, ट्रांसजेंडर और विकलांग महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय पर संवाद और पुनर्विचार” विषय पर जिला स्तरीय वार्षिक रीथिंक कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम का संचालन अंजना देवगम और युवा की सचिव वर्णाली चक्रवर्ती ने किया.

इस अवसर पर वर्णाली चक्रवर्ती ने कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “रीथिंक” आत्ममंथन का अवसर है, यह मूल्यांकन करने का कि क्या हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं. उन्होंने “Recall, Rethink and Learn” की अवधारणा को समझाते हुए जेंडर हिंसा और वन स्टॉप सेंटर की कार्यप्रणाली पर भी चर्चा की. उन्होंने बताया कि कैसे जमशेदपुर में वन स्टाॅप सेंटर को और फंक्शनल बनाने के लिए ‘युवा’ के नेतृत्व में शहर की गणमान्य महिलाओं ने तत्कालीन डीसी से मुलाकात की और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया. उसके बाद डीसी की पहल पर 24घंटे गाड़ी की सुविधा प्रदान की गई और समय समय पर एसडीओ के निरीक्षण से अन्य सुविधाएं भी बहाल हुईं.

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मुख्य सत्रों में अतिथियों सह प्रमुख वक्ताओं के विचार
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रिसोर्स पर्सन नसरिन जमाल (ICRW) ने कहा कि जेंडर आधारित हिंसा के मामले केवल औपचारिकता में नहीं सिमटने चाहिए, बल्कि समाज के गहरे स्तर पर समीक्षा की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि मानसिक हिंसा सबसे खतरनाक रूप है और “हर दसवां व्यक्ति मानसिक रोगी” है.

जिला मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. दीपक गिरी ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य अब भी सामाजिक कलंक (स्टिग्मा) से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा, “जो दिखता नहीं, उसे समाज समझ नहीं पाता.”
उन्होंने बताया कि झारखंड में मानसिक बीमारियों की दर राष्ट्रीय औसत(10.6) से अधिक (11.2%) है. उन्होंने कहा कि बदलते दौर में घर और बाहर, दोनों के काम संभालने की वजह से दोतरफा दबाव की शिकार होने की वजह से महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. दीपक गिरि ने बताया कि आज भी दूर दराज के ग्रामीणों के लिए कई किलोमीटर की यात्रा करके, शहर आकर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का इलाज कराना एक कठिन चुनौती है. उन्होंने बताया कि मेंटल हेल्थ कार्यक्रम के तहत सरकार की तरफ से टेली मानस हेल्पलाइन नंबर-14416 जारी किया गया है,जिसमें कोई भी व्यक्ति मानसिक परेशानियों को लेकर काॅल कर सकता है या एप के जरिए भी विशेषज्ञों से संपर्क स्थापित कर सकता है.

पोटका सी एच सी की बीपीएम अनामिका ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब स्थिति बदल रही है, लेकिन अब भी कम उम्र में मां बनने के मामले काफी आते हैं, जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.

को-ऑपरेटिव काॅलेज के सहायक प्रोफेसर अशोक कुमार रवानी ने अपने जीवन के अनुभव और कठिन संघर्ष साझा करते हुए कहा कि “बाधामुक्त वातावरण और स्कूलों में जागरूकता बेहद जरूरी है.” उन्होंने बताया कि उन्हें अपने पिता और गुरुजनों का काफी सहयोग मिला.

प्रीति मुर्मू (वकील, DLSA) ने बताया कि कानून सिर्फ सजा नहीं देता, बल्कि समाज को जिम्मेदारी भी सौंपता है. उन्होंने कहा कि “अगर मानसिक हिंसा हो रही है, तो जिम्मेदार पूरा समाज है.” उन्होंने बताया कि कैसे 2006 में नालसा की स्थापना के बाद प्रत्येक जिले में डालसा गठित हुआ ताकि वंचितों तक न्याय सुलभ कराया जा सके.

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अनुभव साझा सत्र में विविध स्वर:

वरिष्ठ पत्रकार अन्नी अमृता ने कहा कि जेंडर आधारित हिंसा खासकर महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ होनेवाली हिंसा की जड़ में समाज की मनोग्रंथियां हैं, जिसका इलाज जरूरी है. हर इंसान अपने गिरेबां में झांके कि वह दूसरों को कितना प्रताड़ित कर रहा है, तो हालात बदल सकते हैं. स्कूल -कॉलेज में ट्रांसजेंडर समुदाय या लड़कियों के प्रति गलत व्यवहार के पीछे कहीं न कहीं समाज की सोच की भूमिका है. बच्चे, बड़ों से ही सीखते हैं. समाज बेहतर होगा, तो बच्चे भी स्कूल काॅलेज स्तर से ही संवेदनशीलता प्रदर्शित करेंगे. मानसिक स्वास्थ्य को लेकर वृहद स्तर पर काम करना होगा. दूसरों की खिल्ली उड़ाने के पीछे, कहीं न कहीं मानसिक विकारों की भूमिका है, जो समस्या की जड़ है.

‘पीपल फाॅर चेंज’ के संस्थापक सौविक साहा ने का कि बाल विवाह जैसी कुरीतियों का खामियाजा सिर्फ लड़कियां ही नहीं एलजीबीटीक्यूप्लस समुदाय के लोग भी भुगतते हैं. लेकिन, इस मामले पर उनकी समस्या अदृश्य दिखती है.

ट्रांसजेंडर प्रतिभागी रिशिका ने कहा कि समाज की समझ में बदलाव के बिना समानता संभव नहीं है. उन्होंने बताया कि “मुझे लड़कियों के साथ खेलना पसंद था, पर समाज ने मेरी पहचान पर सवाल उठाए.”

विकलांग साथियों, सामाजिक संस्थाओं और पंचायत प्रतिनिधियों ने भी अपने अनुभव साझा किए. थाना से सुलेखा टोप्पो ने बताया कि पुरुष और महिला दोनों के प्रताड़ना के मामले बढ़ रहे हैं.

कार्यक्रम के अंत में चाँदमनी संवैया ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया. कार्यक्रम में इब्तिदा नेटवर्क और अन्य सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया.

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