जमशेदपुर।
अनुसूचित जाति समन्वय समिति, जमशेदपुर के पदाधिकारियों ने सोमवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के केंद्रीय प्रवक्ता और पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा। समिति ने अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रों और युवाओं को जाति प्रमाण पत्र बनाने में हो रही गंभीर परेशानियों का मुद्दा उठाया।
समिति ने कहा कि प्रशासन की ओर से जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने में 10 अगस्त 1950 से पूर्व निवास प्रमाण की अनिवार्यता लागू कर दी गई है। यह शर्त व्यवहारिक रूप से पूरी करना लगभग असंभव है। परिणामस्वरूप हज़ारों विद्यार्थी उच्च शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षाओं, सरकारी नौकरी और योजनाओं से वंचित हो रहे हैं।
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पदाधिकारियों ने इस संदर्भ में भारत सरकार और झारखंड सरकार के दिशा-निर्देशों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि राज्य गठन के बाद भी अनुसूचित जातियों की सूची वही है जो पहले से मान्य थी। ऐसे में 1950 से पूर्व निवास प्रमाण की मांग अनुचित और तर्कहीन है।
कुणाल षाड़ंगी ने समिति का ज्ञापन स्वीकार करते हुए आश्वासन दिया कि वे इस विषय को प्राथमिकता से राज्य सरकार और विभागीय मंत्री के समक्ष रखेंगे। उन्होंने कहा, “मैं स्वयं मंगलवार को विभागीय मंत्री चमरा लिंडा जी से बात करूंगा ताकि शीघ्र समाधान निकले और अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रों और युवाओं को जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने में कोई दिक्कत न हो।”
समिति के प्रतिनिधियों ने कहा कि यह समस्या लंबे समय से बनी हुई है और बार-बार शिकायत करने के बावजूद स्थिति जस की तस है। इससे न केवल छात्रों की पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं पर असर पड़ रहा है, बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी उनसे छिन रहा है।
ज्ञापन सौंपने वालों में विभिन्न समाजों के प्रतिनिधि शामिल थे। इनमें राजक समाज से अजय राजक और बिमल राजक, कलिंदी समाज से तराचंद कलिंदी और अगस्ती कलिंदी, मुखी समाज से पोरेश मुखी और जुगल किशोर मुखी, पासी समाज से रामपालख चौधरी और गौरव कुमार, दुसाद समाज से गौरी देवी और पूर्णिमा देवी, बौरी समाज से अरमान बौरी और सूरज बौरी, तुरी समाज से मनीष प्रसाद और हेमंत कुमार, भुइंयां समाज से राजू भुइंयां और संतोष भुइंयां, तथा रविदास समाज से विजय रविदास और संतलाल रविदास शामिल थे।
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समिति ने स्पष्ट किया कि यदि जल्द ही इस मुद्दे का ठोस समाधान नहीं निकला, तो वे आंदोलन का रास्ता भी अपनाने पर मजबूर होंगे।

