जमशेदपुर.
हिंदी साहित्य में 9 रसों की कल्पना भरत मुनि ने सबसे पहले नाट्यशास्त्र ग्रंथ में की थी . इनके विचार से श्रृंगार रस, हास्य रस, रौद्र रस, करुण रस, भयानक, वीर, अद्भुत, शांत रस साहित्य में है. बाद में वात्सल्य रस और भक्ति रस को भी इसमें जोड़ दिया गया. अब देशभक्ति रस की भी चर्चा जोरों पर है. इन रसों को काव्य की आत्मा माना गया है. काव्य में रस का वही स्थान है जो शरीर में प्राण का है. यह बातें सहयोग की संस्थापिका डॉक्टर जूही समर्पिता ने अपने स्वागत भाषण में कही.
इस दो दिवसीय काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन संचालन डॉक्टर मनीला ने किया जिसमें कुल 38 प्रतिभागियों ने भाग लिया और विभिन्न रसों में अपने भावों की अभिव्यक्ति की.
अध्यक्ष डॉ. मुदिता चंद्रा ने बताया कि जितनी भी कविताएं पढ़ी गईं इनका एक संकलन जल्द ही सहयोग द्वारा प्रकाशित किया जाएगा. डॉ.रागिनी भूषण,श्रीमती चन्द्रा शरण,भोपाल से जुड़ीं श्रीमती रानी सुमिता तथा डॉ.पुष्पा कुमारी ने सहयोग सदस्यों द्वारा प्रस्तुत विभिन्न रस से सम्बंधित कविताओं पर अपने विचार रखे और बताया कि काव्य रचना से सम्बंधित एक कार्यशाला का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे विभिन्न विषयों की कविताएँ सृजित होंगी और काव्य साहित्य सम्पन्न होगा.सहयोग की सचिव विद्या तिवारी जी ने मनमोहक प्रस्तुति के लिए सभी सदस्यों को धन्यवाद दिया. कार्यक्रम का समापन कृष्णा सिन्हा के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ. कुल 46 कविताओं का संकलन जल्द ही प्रकाशित किया
जाएगा.
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