जमशेदपुर
आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से 3 घंटे का “बाबा नाम केवलम” अखंड कीर्तन आनंद मार्ग जागृति में संपन्न हुआ इस अवसर पर नारायण भोज एवं निशुल्क पौधा वितरण कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया
कीर्तन समाप्ति के बाद आचार्य नवरुणानंद अवधूत ने कहा कि “हरि “का कीर्तन और किसी का नहीं अपनी प्रशंसा नहीं दूसरे की प्रशंसा नहीं बहुत से लोग अपनी बड़ाई खूब अधिक से अधिक करते हैं मैंने यह किया मैंने वह किया इत्यादि यह हुआ आत्म कीर्तन यह जो”हरि “हैं अर्थात परम पुरुष हैं इन्हीं का कीर्तन करना है अपना कीर्तन नहीं कीर्तनिया सदा “हरि ” मनुष्य यदि मुंह से स्पष्ट भाषा में उच्चारण कर कीर्तन करता है उससे उसका मुख पवित्र होता है जीहां पवित्र होती है कान पवित्र होते हैं शरीर पवित्र होता है और इन सब के पवित्र होने के फलस्वरूप आत्मा भी पवित्र होती है कीर्तन के फल स्वरुप मनुष्य इतना पवित्र हो जाता है कि वह अनुभव करता है जैसे उसने कभी अभी-अभी गंगा स्नान किया हो भक्तों के लिए गंगा स्नान का अर्थ हुआ सदा कीर्तन यदि लोग मिल जुलकर कीर्तन करते हैं तब उन लोगों की मात्र शारीरिक शक्ति ही एकत्रित होती है ऐसी बात नहीं है उनकी मिलित मानस शक्ति भी एक ही भावधारा में एक ही परम पुरुष से प्रेरणा प्राप्त कर एक ही धारा में एक ही गति में बहती रहती है इसलिए मिलित जड़ शक्ति और मिलित मानसिक शक्ति इस पंचभौतिक जगत का दुख कलेश दूर करती है.
कीर्तन करना जरूरी है क्योंकि मन की मजबूती परमात्मा के ध्यान करने से ही बढ़ती है
कीर्तन करने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ती ही है साथ साथ मन की भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मन मजबूत होता है ज्यादा से ज्यादा कीर्तन करना जरूरी है क्योंकि मन की मजबूती परमात्मा के ध्यान करने से ही बढ़ती है

