शारदीय नवरात्र—-माता सिद्धिदात्री

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जमशेदपुर,02 अक्टुबर

नौ दिनों तक चलने वाले इस व्रत में हर तरह भक्तिमय माहौल रहा. नवरात्र नवमी के दिन सिद्धिदात्री के पूजन के साथ सफल होता है. नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा होती है. मां दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्रीके नाम से जानी जाती हैं. आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएं हैं. उनका आसन कमल है. दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है.

मां सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं. जैसा कि मां के नाम से ही प्रतीत होता है मां सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं. ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं. हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थस्थान है.

कन्या पूजन : आज के दिन कन्या पूजन का विशेष विधान है. आज के दिन नौ कन्याओं को विधिवत तरीके से भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा देकर आशिर्वाद मांगा जाता है. इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है. त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है. चार वर्ष की कन्या कल्याणी के नाम से संबोधित की जाती है. कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है. रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है. छ:वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है. आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं. दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है. सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं

पूजन की विधि

यूं तो सिद्धिदात्री की पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए लेकिन अगर ऐसा संभव ना हो सके तो आप कुछ आसान तरीकों से मां को प्रसन्न कर सकते हैं. सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए. इस प्रकार नवरात्र का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

मंत्र देवी की स्तुति मंत्र करते हुए कहा गया है:

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

ध्यान मंत्र

वन्दे वंछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥

स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।

शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥

पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।

मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।

कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥

स्तोत्र मंत्र

कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।

स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।

नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।

विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।

भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।

धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।

मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

कवच मंत्र

ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।

हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥

ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।

कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥

भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है. कार्यो में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं. कामनाओं की पूर्ति होती है.

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