जमशेदपुर-2 अक्टुबर
शारदीय नवरात्र का आठवां दिन यानि महाष्टमी है. महाष्टमी के दिन महागौरी की पूजा का विशेष विधान है. देश भर में महाष्टमी की पूजा की छटा देखते ही बनती है.
मां गौरी को शिव की अर्धागनी और गणेश की माता के रुप में जाना जाता है. महागौरी की शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं.
भगवती महागौरी वृषभ के पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है. मणिकान्तिमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, जिनके कानों में रत्नजडितकुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती महागौरी हैं.
आज के दिन ही अन्नकूट पूजा यानी कन्या पूजन का भी विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ रहता है. इस पूजन में 9कन्याओं को भोजन कराया जाता है अगर 9 कन्याएं ना मिले तो दो से भी काम चल जाता है. भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए. इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्नता से हमारे मनोरथ पूर्ण करती हैं.
महाष्टमी के बाद कल भारत के घर घर में रामनवमी की धूम होगी. आज के दिन अधिकतर घरों में कन्या पूजन होती है.
महागौरी के मंत्र
महागौरी सदैव मनोकामनाओं को पूर्ण करती है. माता की पूजा अर्चना करने के लिए उनक ध्यान मंत्र निम्न है :
मंत्र : या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।
ध्यान मंत्र :-
वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थितांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥
स्तोत्र मंत्र :-
सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥
कवच मंत्र :-
ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।
कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥
भगवती महागौरीका ध्यान स्तोत्र और कवच का पाठ करने से सोमचक्र जाग्रत होता है, जिससे चले आ रहे संकट से मुक्ति होती है, पारिवारिक दायित्व की पूर्ति होती है वह आर्थिक समृद्धि होती है. मां गौरी ममता की मूर्त मानी जाती है जो अपने भक्तों को अपने पुत्र समान प्रेम करती हैं.
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