
जमशेदपुर,1 अक्टुबर
नवरात्रि के सातवें दिन मां भगवती के सातवें स्वरूप का आह्वान कर विशिष्ट पूजा अर्चना की जाती है जो कालरात्रि के नाम से विख्यात हैं.
मां कालरात्रि का शरीर का रंग अंधकार की तरह गहरा काला है. इनके शरीर के केश बिखरे हुए गले में विद्युत सदृश चमकीली माला है. इनके तीन नेत्र हैं, जो ब्रह्मांड की तरह गोल हैं. इन तीनों से विद्युत की ज्योति चमकती रहती है. नासिका से श्वास प्रश्वांस छोड़ने पर हजारों अग्नि की ज्वालाएं निकलती रहती हैं. इनका वाहन गदहा है.
माता कालरात्रि के ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ में चमकती तलवार है, इसके नीचे हाथ में वरमुद्रा है, जिससे भक्तों को अभीष्ट वर देती हैं. बांधे हाथ में जलती हुई मशाल है और नीचे वाले हाथ में अभयमुद्रा है. जिससे अपने सेवकों को अभयदान करती हैं और भक्तों को सभी कष्टों से मुक्त करती हैं. अतएव शुभ करने से ही शुभकारी भी हैं.
नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की साधक पूजा उपासना करते हैं. सप्तमी तिथि के दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है. इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है. इस माता के उपासना से उपासक को अग्नि, भय, जलभय सहित अन्य भय नहीं रहता है तथा ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं.
मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ: हे मां! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है. या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ. हे मां, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान करें.
पूजन विधि
नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करने के बाद मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं.
उपासना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्मा खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा |
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभयंकरी ||