जमशेदपुर/रांची। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के द्वितीय संस्करण की घोषणा की गई. लोगों को न्याय प्रदान करने में भारत के राज्यों की इस एकमात्र रैंकिंग रिपोर्ट में 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों (प्रत्येक एक करोड़ से अधिक आबादी वाला राज्य) में महाराष्ट्र ने एक बार फिर सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। इसके बाद तमिलनाडु (2019 में तीसरा स्थान), तेलंगाना (2019 में 11वाँ), पंजाब (2019 में 4था) और केरल (2019 में दूसरा स्थान) ने क्रमशः दूसरा, तीसरा, चैथा और पाँचवाँ स्थान प्राप्त किया है। सात छोटे राज्यों (एक करोड़ के कम आबादी वाले राज्य) की सूची में शीर्ष पर त्रिपुरा (2019 में 7वाँ) और उसके बाद दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः सिक्किम (2019 में दूसरा) और हिमाचल प्रदेश (2019 में तिसरा) है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आइजेआर) टाटा ट्रस्ट्स की पहल है जिसे सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पालिसी और हाउ इंडिया लिव्स का सहयोग प्राप्त है। प्रथम आइजेआर 2019 में जारी की गई थी। 14 महीनों की श्रमसाध्य मात्रात्मक शोध के माध्यम से इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 ने एक बार फिर राज्यों द्वारा सभी को प्रभावकारी ढंग से सेवाएँ देने के लिए न्याय प्रदान करने के अपने-अपने ढाँचों में की गयी प्रगति की खोज की है। इसमें नवीनतम आंकड़ों और परिस्थितियों का विचार किया गया है जैसी वे मार्च 2020 के पहले थीं. इसमें न्याय के चार स्तंभों – पुलिस, न्यायपालिका, कारागार और कानूनी सहायता पर आधिकारिक सरकारी स्रोतों के अन्यथा बंद पड़े आंकड़ों को एक साथ पेश किया गया है। अखिल भारतीय तस्वीर को मिलाकर रिपोर्ट के निष्कर्ष चैंकाने वाले हैं। भारत में कुल न्यायाधीशों में महिलाओं का अनुपात केवल 29 प्रतिशत है। देश के दो-तिहाई कैदी अभी अंडरट्रायल हैं। 1995 के बाद पिछ्ले 25 वर्षों में केवल 1.5 करोड़ लोगों को कानूनी सहायता मिली है, जबकि देश की जनसंख्या की 80 प्रतिशत आबादी इसकी पात्र है।
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