चुनावी चक्कलस

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© आनंद कुमार
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बाहर मौसम भले पतझड़ का हो, नेताओं के लिए तो बहार अब आयी है. माहौल देख ऐसे-वैसे, जैसे-तैसे, कैसे-कैसे हर टाइप के लोग मैदान में कूद पड़े हैं. जिन्हें मुहल्ले का पनवाड़ी भी नहीं पहचानता, वे भी होलसेल में वोट बेचने निकल पड़े हैं… ऐसा नहीं कि पार्टी और प्रत्याशी ये नहीं जानते पर क्या करें भैया..एक-एक वोट कीमती है. किसी को नाराज़ नहीं कर सकते. सो मक्खी तो निगलनी ही पड़ेगी.

….चुनाव में सबसे ज्यादा होड़ फ़ोटो खिंचवाने की है… जिसका फोटो ज्यादा छपेगा उसका भाव ज्यादा. एक नेता तो प्रत्याशी से ऐसे सटे हैं कि फेविकोल भी पूछ बैठा… भैया अब तक तो हमीं थे… तुम कहाँ से चिपके.. नेताजी जवाब में क्या बोले ये तो पता नहीं… पर प्रत्याशी और उनके अज़ीज इन नेता जी से खासे परेशान है.. खबर है कि नेताजी बाज नहीं आये तो जल्द ही कड़वे वचन सुनने पड़ सकते हैं… हाँ कड़वे वचन से याद आया कल एक नेताजी ने अपनी हरकत से विधायक जी का पारा हाई कर दिया था…सभा का मंच न होता तो नेताजी की फ़ज़ीहत तय थी..

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… नेता भी न जाने क्या क्या खाते हैं…बड़े नेता चारा और अलकतरा खाते हैं.. तोप, ताबूत, वर्दी और यहाँ तक की कोयला भी खा जाते हैं तो छुटभैये कैसे पीछे रहें… एक नेताजी की जठराग्नि ऐसी लपलपाई कि पट्ठा पांच लाख की टाइल्स खा गया. अब टाइल्स वाला परेशान.. मैदान से दालान तक दौड़ने के बाद भी अब तक कोई फलाफल नहीं निकला.. अगरचे मोहल्ले में हल्ला जरूर हो गया पर वो नेता ही क्या जिसे शर्म आ जाए.

…भैया की बात ही निराली हैं.. कब कौन सा दांव लगा बैठें कोई नहीं जानता. कल तक पूरी तैयारी थी.. कई लोगों को बुलाया… टटोला…ठोका-बजाया और आखिर में चुप्पी खींच गए. इधर नामांकन का टाइम निकल गया… अब विरोधी पार्टीवाले भोंपू लेकर चीख रहे मैच फिक्सिंग हो गया पर बोलने से क्या होता है. अंदर का गूदा तो हज़म हो गया..अब छिलके कौन जेब में रखता है..

….राष्ट्रभक्त पार्टी में ‘बिजली’ गिरने के शॉक से अभी तक बहुत से नेता भन्नाए हुए हैं. ऐसे ही एक नेता को नामांकन में चलने के लिए मनाने को फोन गया तो नेताजी ने दो-टूक कह दिया उम्मीदवार देते वक़्त मुझसे पूछा था क्या..अब जाऊं न जाऊं क्या फर्क पड़ता है… मामला संगीन देख ऊपर के लोग आये… खैर नेताजी मान गए..पर मन में गाँठ रह गयी है.. जब खुलेगी तो…भगवान बचाये.

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