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Home » World Earth Day 2025: :अक्षय ऊर्जा उत्पादन से पृथ्वी को मिलेगी राहत
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World Earth Day 2025: :अक्षय ऊर्जा उत्पादन से पृथ्वी को मिलेगी राहत

BJNN DeskBy BJNN DeskApril 22, 2025Updated:April 22, 2025No Comments8 Mins Read
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अंशुल शरण
अंशुल शरण ,(लेखक गैर सरकारी संगठन युगांतर भारती के अध्यक्ष हैं)

22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस है। यह वह दिन है, जब पूरी दुनिया को इस बात पर मंथन करने की जरूरत महसूस होती है कि पृथ्वी का क्या हाल-चाल है। एक नजरिये से देखें तो पृथ्वी की स्थिति दारुण हो चली है क्योंकि चीजें लगातार खराब होती चली जा रही हैं। एक तरफ रुस और यूक्रेन में युद्ध चल रहा है तो दूसरी तरफ फिलिस्तीन और इजरायल भी युद्धरत हैं। इन चारों देशों में जो युद्ध चल रहा है, निश्चित तौर पर वह पृथ्वी को छलनी ही कर रहा है। सिर्फ युद्ध ही नहीं, इंसानी हरकतों के कारण भी पर्यावरण में घोर असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है। पशुओं की कई नस्लें गायब हो रही हैं तो ग्लेशियरों की स्थिति भी लगातार खराब होती चली जा रही हैं। अतिवृष्टि और अनावृष्टि से दुनिया के कई देश जूझ रहे हैं। पारिस्थितिकी तंत्र भी गड़बड़ा रहा है। तापमान लगातार बढ़ता चला जा रहा है। बेमौसम बारिश और गर्मी का सितम महसूस किया जा सकता है।
इस बार का, यानी पृथ्वी दिवस 2025 की थीम है “हमारी शक्ति, हमारा ग्रह” है। यह थीम अक्षय ऊर्जा के महत्व पर जोर देता है और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के लिए वैश्विक संक्रमण का आह्वान करता है। इसका लक्ष्य 2030 तक अक्षय ऊर्जा उत्पादन को तीन गुना करना है। यह बताने की बात नहीं कि हमें स्वस्थ ग्रह की जरूरत है और हमारे ग्रह को हमारी जरूरत है। पृथ्वी दिवस 2025 प्रकृति के लिए कार्रवाई करने के बारे में है।

हम वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा उत्पादन को 2030 तक तीन गुना बढ़ाने का आह्वान कर रहे हैं। अक्षय ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग आर्थिक प्रणालियों, राजनीतिक सीमाओं और राजनीतिक दलों से परे है, जो एक सार्वभौमिक अपील को दर्शाता है। चीन और अमेरिका (मुख्य रूप से मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम के माध्यम से) दोनों अक्षय ऊर्जा में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं। चीन वर्तमान में पवन और सौर, दोनों में दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जिसका लक्ष्य 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करना है।

पिछले दशक में, सौर पैनलों के निर्माण की लागत में नाटकीय रूप से गिरावट आई है, जिससे वे बिजली के सबसे किफायती और अक्सर सबसे सस्ते रूपों में से एक बन गए हैं। 2010 और 2020 के बीच सौर मॉड्यूल की कीमतों में 93% तक की गिरावट आई है। इसी अवधि के दौरान उपयोगिता-पैमाने पर सौर पीवी परियोजनाओं के लिए बिजली की वैश्विक भारित-औसत स्तरीकृत लागत (एलसीओई) में 85% की गिरावट आई। जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, दिल के दौरे और स्ट्रोक सहित श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का जोखिम काफी कम हो सकता है।

महिलाएँ वायु प्रदूषण और जल संदूषण के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होती हैं। इन खतरों से स्तन कैंसर, डिम्बग्रंथि रोग और मातृ स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के विकास का जोखिम बढ़ जाता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी से जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों को कम करने में मदद मिलती है। जैसे हीटवेव, बाढ़ और संक्रामक रोगों का प्रसार।

अक्षय ऊर्जा की ओर यह गहन और तेजी से आगे बढ़ने वाला बदलाव सिर्फ़ एक पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं है- यह एक आर्थिक क्रांति है। यह उद्योग, परिवहन और कृषि में नवाचार को बढ़ावा देगा, अधिक तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देगा और वैश्विक स्तर पर लाखों नए रोजगार और अवसर पैदा करेगा। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करना महत्वपूर्ण है क्योंकि अक्षय ऊर्जा प्राथमिक ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन किए बिना बिजली उत्पन्न करती है। इसके विपरीत जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैसों के प्रमुख उत्सर्जक हैं और इस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग में प्राथमिक योगदानकर्ता हैं।

भारत ने अक्षय ऊर्जा क्षमता में नाटकीय वृद्धि देखी है-31 मार्च, 2025 तक 29.52 गीगावाट की रिकॉर्ड वार्षिक वृद्धि के साथ। भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र तेजी से विकास और परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। सरकारी समर्थन, तकनीकी प्रगति और बढ़ते निवेश के साथ, भारत अपने महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने और वैश्विक अक्षय ऊर्जा परिदृश्य में अग्रणी बनने की राह पर है।

झारखंड अपनी अर्थव्यवस्था, ऊर्जा उत्पादन और रोजगार के लिए कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है। इससे अक्षय ऊर्जा स्रोतों में बदलाव करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इसके लिए राज्य की आर्थिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता होती है। झारखंड में स्वच्छ ऊर्जा के विकास में कई कारक बाधा बन रहे हैं। इनमें नवीकरणीय संसाधनों की कम उपलब्धता, कोयले पर अत्यधिक निर्भरता और बड़े पैमाने पर निजी निवेश की कमी शामिल है। 2015 की अपनी राज्य सौर नीति में, झारखंड ने 2020 तक 2,650 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा था। यह लक्ष्य अभी भी पूरा नहीं हुआ है। सरकार ने अब राज्य की 2022 की सौर नीति में लक्ष्य को संशोधित किया है, जिसका लक्ष्य अगले पांच वर्षों के भीतर 4,000 मेगावाट स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, राज्य ने विभिन्न श्रेणियों और अनुप्रयोगों में सौर पैनलों की स्थापना के लिए एक रोडमैप को लागू करने की योजना बनाई है, जिसमें पार्क और नॉन-पार्क सौर प्रतिष्ठान, वितरित ग्रिड-कनेक्टेड, रूफटॉप सौर प्रणाली और ऑफ-ग्रिड सिस्टम शामिल हैं।

नए आक्रामक लक्ष्यों के साथ, उम्मीद है कि पारिस्थितिक प्रभाव विश्लेषण को प्राथमिकता देगा और फ्लोटिंग सौर परियोजनाओं को लागू करने से पहले कई आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों और चुनौतियों को संतुलित करेगा।

दुनिया के किसी भी कोने में युद्ध हो, उसका प्रभाव पूरी पृथ्वी पर पड़ता है। यह प्रभाव गहरा और बहुआयामी होता है, जो मानव समाज, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्थिरता को प्रभावित करता है। युद्ध के कारण लाखों लोगों की मृत्यु, घायल होने या अक्षमता होती है। उदाहरण के लिए, यूक्रेन-रूस युद्ध में हजारों लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए। विस्थापन से शरणार्थी संकट उत्पन्न होता है, जिससे लोग अपने घर, आजीविका और सामाजिक संरचना खो देते हैं। इसके साथ ही युद्ध में बमबारी, रासायनिक हथियारों का उपयोग और सैन्य गतिविधियाँ पर्यावरण को नष्ट करती हैं। हरे-भरे खेत बंजर हो जाते हैं, जल स्रोत दूषित होते हैं और जैव विविधता को बेहद हानि पहुंचती है। परमाणु या रासायनिक हथियारों का उपयोग पृथ्वी के जैवमंडल को दीर्घकालिक नुकसान पहुँचा सकता है। अगर आर्थिक रुप से देखें तो युद्ध से बुनियादी ढांचे नष्ट हो जाते हैं और समाज दशकों पीछे चला जाता है। युद्ध एक तरफ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को तो प्रभावित करता ही है, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी पड़ता है।

पृथ्वी के वायुमंडल पर कई तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं। वायुमंडलीय दबाव में बदलाव के कारण मौसम और ऋतुओं में परिवर्तन होता है, जो वायुमंडल के दबाव को प्रभावित करता है। वायुमंडल का तापमान सूर्य की ऊर्जा से निर्धारित होता है, और इसमें बदलाव के कारण वायुमंडल की परतों में परिवर्तन होता है। वायुमंडलीय आर्द्रता में बदलाव के कारण बादल, कोहरा, पाला, वर्षा, ओस, हिम, ओला, हिमपात आदि होते हैं। ओजोन परत का क्षरण एक बड़ा खतरा है, जो पृथ्वी और उस पर रहने वाले जीवों के लिए हानिकारक है। ओजोन परत सूर्य से आने वाली उच्च आवृत्ति की पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित कर लेती है। वायुमंडल को पांच विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है, जिनमें क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, तापमंडल और बाह्यमंडल शामिल हैं। इन परतों में बदलाव के कारण वायुमंडल की संरचना और कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। वायुमंडल की संरचना और कार्यप्रणाली को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम वायुमंडल पर पड़ने वाले प्रभावों को समझें और उनकी रोकथाम के लिए काम करें।

पृथ्वी पर रहने वाले पशुओं पर भी कई तरह के प्रभाव पड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण पशुओं के आवास नष्ट हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण पशुओं के भोजन की उपलब्धता कम हो रही है। पशुओं को अपने आवास से प्रवास करना पड़ रहा है। मानव गतिविधियों के कारण पशुओं के आवास नष्ट हो रहे हैं। पशुओं का शिकार हो रहा है। मानव गतिविधियों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है, जो पशुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पशुओं में बीमारियों का प्रसार बढ़ रहा है। पशुओं की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। पशुओं की संख्या में कमी के कारण पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ रहा है।
हमें पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को भी देखना चाहिए। हम देख रहे हैं कि पर्यावरण पर कई प्रतिकूल असर पड़ रहे हैं। वायु, जल और भूमि प्रदूषण के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है। कारखानों द्वारा धुएं का उत्सर्जन और मानव गतिविधियों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है, जिससे चरम मौसमी घटनाएं जैसे सूखा और अतिवृष्टि हो रही हैं। नगरीकरण और औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों के बीच असंतुलन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र अच्छा-खासा प्रभावित हो रहा है। अधिक दोहन के कारण भूमि की उर्वरता कम हो रही है और यह बंजर हो रही है।

दरअसल, पृथ्वी दिवस हमें पृथ्वी की रक्षा और संरक्षण के लिए अपनी जिम्मेदारी का भी एहसास कराता है। यह दिवस हमें बताता है कि हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना चाहिए, संसाधनों का संचयन करना चाहिए और अंतिम तौर पर जैव विविधता का संरक्षण करना चाहिए। अगर ये तीनों काम हम लोग कर लेते हैं तो पृथ्वी दिवस की प्रासंगिकता सार्थक हो जाएगी।

(लेखक गैर सरकारी संगठन युगांतर भारती के अध्यक्ष हैं)

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