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: इस साल मदर्स डे के मौके पर, इटली के पियाजियो समूह की 100% सहायक कंपनी पियाजियो व्हीकल्स प्राइवेट लिमिटेड और प्रतीकात्मक दोपहिया निर्माता कपंनी वेस्पा और एप्रिलिया ने भारत के विभिन्न हिस्सों की उन कंटेम्पररी मांओं के लिये मदर्स डे मनाया जिन्होंने अपने जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर एक मां की तरह भूमिका निभाई।
इस विश्वास के साथ कि मातृत्व की भावना अपने बच्चे के साथ एक मां की रूढ़िवादी काव्यात्मक छवि से परे होती है, वेस्पा का दृढ़ विश्वास है कि मातृत्व का अवतार लिंग, उम्र या रूपों से परे है। उनकी कहानियों का सम्मान करने और उन्हें साकार करने में सक्षम करने के लिये, वेस्पा ने दो ऐसी अनोखी मांओं के साथ साझीदारी की, जिन्होंने मातृत्व की अपनी परिभाषा से कई लोगों को प्रेरित किया है।
इस महामारी ने कई अपनों की जिंदगियों पर अप्रत्याशित प्रभाव डाला है। पूरी दुनिया मे लोगों ने अपने जीवन में व्यक्तिगत रूप से और पेशेवर रूप से काफी बदलाव देखा है। इन अप्रत्याशित घटनाओं के दौरान, मुंबई की महिमा भालोटिया कई ऐसे लोगों में से एक थीं जिन्होंने खुद को कॉरपोरेट नौकरी से बाहर पाया। इससे उन्हें घर पर अपनों के साथ ज्यादा वक्त बिताने का मौका मिला और इससे उन्हें यह बात समझ आई कि उनके पिता को कुछ बेसिक कामों जैसे ऑनलाइन ऑर्डर या वीडियो कॉल करने में उनकी कितनी जरूरत है। महिमा को एहसास हुआ कि उनके पिता की तरह ही ऐसे कई सारे बुजुर्ग हैं जिन्हें बेहद ही बेसिक कामों में मदद की जरूरत होगी। जीवन के निर्बाध रूप से चलने के लिये यह बहुत जरूरी है।
इस एहसास ने जन्म दिया आधुनिक युग के एक स्कूल और हमारी अनूठी मां महिमा की पहल को जिसका नाम है, “द सोशल पाठशाला”। इसके पीछे सोच थी, 50 साल से अधिक उम्र के लोगों को टेक्नोलॉजी के बारे में सिखाना कि किस तरह से वीडियो कॉल शुरू करते हैं, वॉट्सअप लोकेशन भेजते हैं, कैब बुक करते हैं, संपर्क में बने रहने के लिये फेसबुक अकाउंट बनाते हैं, ऑनलाइन शॉपिंग और ऐसी ही कई सारी बातें। सोशल पाठशाला ने रक्षा, चिकित्सा, वित्त जैसे अलग-अलग पृष्ठभूमि के 2000 से भी अधिक लोगों की मदद की। वेस्पा की इस साझीदारी के साथ वेस्पा लेकर महिमा की बहादुरी, संवेदनशीलता और उनके नेकदिल की कहानी है, जहां उन्होंने तकनीक के अपने ज्ञान से कई सारे लोगों की जिंदगियां आसान बना दी, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।
ऐसी ही प्रेरक कहानी है अपने बीसवें साल के मध्य में एक युवा लड़की, रांची की आर्ची सेन की। आर्ची को एहसास हुआ कि महामारी के दौरान प्रतिबंधों, कर्फ्यूा, और लोगों की सीमित आवाजाही के साथ, आवारा कुत्ते सबसे बुनियादी पोषण से भी वंचित थे। उन्होंने अपने क्षेत्र में और आसपास के डॉग्स को किसी भी बीमारी से सुरक्षित रखने के लिये उन्हें कृमि मुक्त रखने, खिलाने और टीकाकरण करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। इसके साथ, हमारी प्रेरक योद्धा-मां ने धन जुटाने और उन्हेंक गोद लेने का भी काम किया ताकि आवारा कुत्तों की मदद की जा सके। एक दिन के लिये वेस्पा पर अपनी कहानी सुनाते हुए, आर्ची ने बताया कि वे इलाज के लिये पपी को पास के क्लीनिक में लेकर गई थीं। आर्ची द्वारा प्रदर्शित निःस्वार्थ मातृ प्रेम का यह रूप दर्शाता है कि हम वृद्धावस्था की धारणा से आगे बढ़ गए हैं कि एक मां का प्यार क्या है।
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