शांतनु/
महान कथक नृत्य शिल्पी पंडित बिरजू महाराज जिनकी मनमोहक नृत्य मुद्राएं देखने वालों पर जादू की सी असर डालती थी , जो नि:सदेंह कथक शैली के सम्राट थे अनंत यात्रा पर निकल गये हैं। ऐसे महान कलाकार की उपस्थिति हमारे बीच हमेशा बनी रहती है। हमारे मन, हमारे हृदय में वह नृत्य -रत रहते हैं, हमारे स्मृतियों में वह विराजमान रहेंगे अपनी नटखट अदाओं के साथ, कला और रस की अपनी प्रखर ज्ञान के साथ।
पंडित बिरजू महाराज जी अपने आप में भारतीय कला और संस्कृति की चलती-फिरती इनसाइक्लोपीडिया थे। ऐसे बहुमुखी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व संसार में बहुत कम मिलते हैं। महाराज जी कथक नृत्य शैली के लखनऊ घराने का प्रतिनिधित्व करते थे। वे जितने बड़े नृत्य शिल्पी थे उतने ही ऊंचे दर्जे के गायक और तबला वादक भी थे। कविता लेखन और गाने की सुर देने में भी वे उतनी ही गभींरता और तन्मयता के साथ डुबकी लगाते थे। यही नहीं वे बेहतरीन चित्रकारी भी करते थे।
बिरजू महाराज ने नृत्य की अपनी पहली प्रस्तुति मात्र सात साल की उम्र में दिया था। नृत्य की तालिम उन्हें अपने पिता और गुरु पंडित अच्छन महाराज जी से मिली थी। बाद मे पिता के निधन के बाद उनके दो चाचा जो स्वंयम बड़े कलाकार थे- पंडित शंभू महाराज और लच्छू महाराज ने उनके नृत्य शैली को तराशा और वे कथक नृत्य के सबसे नायाब हीरा बनकर चमके। बिरजू महाराज अपनी मनमोहक भाव-भंगिमाओं के साथ कथानक को प्रस्तुत करने का जरिया बनाया था। अपने शरीर के अलग-अलग हिस्से, मसलन- हाथ, उंगलियां, चेहरा, भवें, पांव की थिरकन, कमर की लचक, कलाइयों की गति…ये सभी एक लयबद्ध तरीके से भाव की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर प्रस्तुत करते थे।
देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपने नृत्य के मनमोहक प्रस्तुति के बदौलत लाखों प्रशंसकों के हृदय पर राज करने वाले इस महान कलाकार को पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कालिदास सम्मान, फिल्म फेयर अवार्ड, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार आदि से समय समय पर सम्मानित किया गया था। माधुरी दीक्षित जैसी कई प्रसिद्ध बालीवुड अभिनेत्रीयों को भी उन्होंने फिल्मों में नृत्य की प्रस्तुति के लिए प्रशिक्षण दिया था।
उनकी पोती रागिनी महाराज के हवाले से बताया गया कि रविवार की रात 12 बजे के आसपास परिवार के सभी सदस्य खाने के बाद अंताक्षरी खेल रहे थे, जबकि महाराज जी लेटें लेटें अंताक्षरी में गाये जा रही पुरानी हिंदी फिल्मी गानों का आनंद उठा रहे थे। तभी उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई और उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें बचाया नहीं जा सका। पिछले एक महिने से महाराज जी किडनी की समस्या से जूझ रहे थे और डायलिसिस पर थे।
ऐसे मनीषी नृत्य शिल्पी को बारंबार प्रणाम निवेदित है।
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