झारखंड सरकार का बजट सत्ताधारी दलों के घोषणा पत्र की तरह ही खोखला और दिशाहीन है। फंड का रोना रोने वाली सरकार ने बजट का आकार तो बढ़ा दिया है, पैसे कैसे खर्च होंगे इसकी कोई ठोस नीति पेश नहीं की है। पिछले बार के 92,000 करोड़ के बजट की आधी राशि भी यह अक्षम सरकार खर्च नहीं कर पाई, इसके बावजूद बजट का आकार बढ़ाना समझ से परे है। खुद को किसान हितैषी और ग्राम हितैषी बताने वाली सरकार को न तो किसानों की चिंता की है, ना गांव की चिंता की है। युवाओं, महिलाओं के साथ किए चुनावी वादों को भी पूरा करने की मंशा नहीं दिखाई। बजट में न तो बहनों के लिए चूल्हा खर्च के लिए प्रावधान किया है, न ही युवाओं के बेरोजगारी भत्ता के लिए विशेष प्रावधान किया गया है। जब नीति, नियत और नेतृत्व दिशाहीन हो तो बजट भी ऐसा ही पेश होता है।
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