जमशेदपुर।
केतना ज़रूरी बाटे “मातृभाषा” ? एकर जवाब में रउवा समझीं के मातृभाषा के सवाल पर लोग आपन जान देले बा, देस बँटल बा आ केतना लोग क़ुर्बान हों गइल l बहुत लोग समझेला के हमार बात तहरा के बस समझ में आ गइल, कम्यूनिकेट हो गइल बस बात खतम l इ उपभोक्तावादी सोच बा l भूख लागल बा त का बस पेट भरें ख़ातिर कुछुओ खा लेवेनि ? ना नु, ओहि तरीक़ा से भासा केवल आपन बात दोसरा तक पहुँचाए के माध्यम नइखे l पूरा समाज कहाँ से आ रहल बा आ कहाँ जाई इ ओकर मातृभाषा पे निर्भर करेला l पूरा समाज के व्यवस्था आ ओकर इतिहास ओकर मातृभाषा के साहित्य, शब्द आ लोकगीत में रहेला l समाज के सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक राजनीतिक विकास मे भाषा बहुत बड़ा फ़ैक्टर बाटे l भारत में बीमारु राज्य ऊहे हों गइल जे आपन मातृभाषा के दरकीनार करके हिंदी में ढूकल l बैलेन्स ना रख पवलस l हिंदी भाषा के पट्टी दरसल ब्रज अवधी भोजपुरी मैथिली मगही संठाली, कुड़ुक, सादरी इत्यादि के पट्टी ह l
मातृभाषा केवल कुछ शब्द नइखे, भासा अर्थव्यवस्था ह, व्यक्ति के सम्मान ह, औद्योगिक विकास के रास्ता ह, कवनो सामाज के सामूहिक आत्मसम्मान के निसानी ह l जे समाज आपन मातृभाषा अपना घर में छोड़ी (बिहार/उत्तर प्रदेस) ओकर आत्मसम्मान खतम होत चल जाई, उ बस पेट भरें वाला एक मशीन बनकर रह जाई l ओकर मानसिक पलायन होखि l अगर तरक़्क़ी करी त उ तरक़्क़ी अकेला करी, ओकर समाज हरमेसा पिछड़ा रही, उ आपन ज़मीन ख़ातिर योगदान ना करी, हाँ देखावा ज़रूर करी l
देस के विकास करे के बा त बिहार आ उत्तर प्रदेस के लोग मातृभाषा के विकास के शुरुआत करे आजु से l आपन मातृभाषा मेन लिखे पढ़े बोले l
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