गुलाब रंग है प्रेम का (12 फरवरी -रोज डे)
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शांतनु चक्रवर्ती
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प्रेम का प्रतीक गुलाब का फूल अपने रंगो के महत्त्व के लिए सबसे ज्यादा लोक्रपिय और ख़ास होता है। लाल गुलाब प्यार का प्रतिक होता है। इसी तरह से पीला दोस्ती, नारंगी उत्साह, और सफ़ेद गुलाब ख़ुशी और पवित्रता का प्रतिक होता है।गुलाब , यानी रोज शब्द लैटिन भाषा के रोज़ा शब्द से लिया गया है। यह एक प्रकार का झाड़ी वाला पौधा है।गुलाब दुनिया के सबसे खूबसूरत फूलों में से एक है। धरती पर गुलाब के फूल 33 करोड़ साल पहले से मौजूद था। इसका इस्तेमाल सौन्दर्य लेप व उबटन के लिए किया जाता है.। गुलाब की पत्तियों के सेवन से शरीर के हर हिस्से विशेषकर पेट में ठंडक मिलती है। इसी के चलतें प्राचीन समय में गुलकंद घर में बना कर उसे खाया जाता था।
सीरिया की शाहजादी पीले गुलाब से प्रेम करती थी। मुगल बेगम नूरजहां को लाल गुलाब सबसे अधिक प्रिय था। कहते हैं कि नूरजहां के दिल को खुश करने के लिए उनके शौहर रोज ताजे गुलाब उनके महल भिजवाया करते थे। यही नहीं गुलाब के इत्र का आविष्कार नूरजहां ने किया था।
भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी गुलाब के दीवाने थे।उनकी अचकन में हमेशा गुलाब का फूल लगा रहता था। यूरोप के दो देशों का राष्ट्रीय पुष्प भी सफेद गुलाब और लाल गुलाब है।भारतीय साहित्य में- गुलाब के अनेक संस्कृत पर्याय है। अपनी रंगीन पंखुड़ियों के कारण गुलाब पाटल है, सदैव तरूण होने के कारण तरूणी, शत पत्रों के घिरे होने पर ‘शतपत्री’, कानों की आकृति से ‘कार्णिका’, सुन्दर केशर से युक्त होने ‘चारुकेशर’, लालिमा रंग के कारण ‘लाक्षा’ और गन्ध पूर्ण होने से गन्धाढ्य कहलाता है। फारसी में गुलाब कहा जाता है और अंगरेज़ी में रोज, बंगला में गोलाप, तामिल में इराशा और तेलुगु में गुलाबि है। अरबी में गुलाब ‘वर्दे’ अहमर है। सभी भाषाओं में यह लावण्य और रसात्मक है। शिव पुराण में गुलाब को देव पुष्प कहा गया है।
गुलाब ने अपनी गन्ध और रंग से विश्व काव्य को भी अपना माधुर्य और सौन्दर्य प्रदान किया है। रोम के प्राचीन कवि वर्जिल ने अपनी कविता में वसन्त में खिलने वाले सीरिया देश के गुलाब की चर्चा की है। अंगरेज़ी साहित्य के कवि टामस हूड ने गुलाब को समय के प्रतिमान के रूप में प्रस्तुत किया है। कवि मैथ्यू आरनाल्ड ने गुलाब को प्रकृति का अनोखा वरदान कहा है। टेनिसन ने अपनी कविता में नारी को गुलाब से उपमित किया है। हिन्दी के श्रृंगारी कवि ने गुलाब को रसिक पुष्प के रूप में चित्रित किया है ‘फूल्यौ रहे गंवई गाँव में गुलाब’। कवि देव ने अपनी कविता में बालक बसन्त का स्वागत गुलाब द्वारा किए जाने का चित्रण किया है। निराला ने गुलाब को पूंजीवादी और शोषक के रूप में अंकित किया है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने इसे संस्कृति का प्रतीक कहा है।
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