Pandit Birju Maharaj :गंगा – गोमती में विलीन हो होकर पंचतत्व का अंश बने कथक का चमकता सितारा

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शांतनु

Dhanbad
कथक के जादूगर कहे जाने वाले पंडित बिरजू महाराज की अस्थियां शनिवार को वैदिक रीति से पूजन के बाद गंगा‌ और गोमती नदी में विसर्जित कर दी गई। दोनों ही शहरों में अस्थि कलश विसर्जन के लिए निकली यात्रा में कथक सम्राट के शिष्य और परिजनों की उपस्थिति रही। कलानगरी बनारस में सभी ने नम आंखों से अस्सी घाट पर अस्थि कलश के पूजन में हिस्सा लिया। पं. बिरजू महाराज के ज्येष्ठ पुत्र पं. जयकिशन महाराज ने अस्थि पूजन किया। बनारस के कलाकाराें ने अस्थि कलश पर पुष्पांजली अर्पित किए। बाद में बजड़े पर सवार होकर सभी गंगा की बीच धारा में पहुंचे और अस्थि विसर्जन किया।उनकी अंतिम इच्छानुसार दो अस्थि कलश दिल्ली से लखनऊ लाए गए थे जिनमें से एक गोमती में विसर्जित किया गया तो दूसरा बनारस लाया गया था। पं. बिरजू महाराज को जितना लखनऊ से प्रेम था, उतना ही संगीत के शहर बनारस से। बनारस में उनका ससुराल और समधियान दोनों ही है और इस‌ सिलसिले में अक्सर ही‌ उनका बनारस आना होता था। इससे पहले पिछले सोमवार को लय-ताल बद्ध श्रद्धाञ्जलि के साथ अनूठे ढंग से दिल्ली में पंडित बिरजू महाराज जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया था।
पंरपरागत “श्रीराम नाम सत्य है” या “हरि बोल” की जगह तालों के बोल एवं हर-हर महादेव के स्वर के साथ उन्हें अग्नि-समर्पित किया गया था।
महान कथक नृत्य शिल्पी पंडित बिरजू महाराज जी का मनमोहक नृत्य मुद्राएं देखने वालों पर जादू की सी असर डालती थी ।नि:सदेंह वो कथक शैली ‌के सम्राट थे। ऐसे महान कलाकार की उपस्थिति हमारे बीच हमेशा बनी रहती है। हमारे मन, हमारे हृदय में वह नृत्य -रत रहते हैं, हमारे स्मृतियों में वह विराजमान रहेंगे अपनी नटखट अदाओं के साथ, कला और रस की अपनी प्रखर ज्ञान के साथ।
पंडित बिरजू महाराज जी अपने आप में भारतीय कला और संस्कृति की चलती-फिरती इनसाइक्लोपीडिया थे। ऐसे बहुमुखी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व संसार में बहुत कम मिलते हैं। महाराज जी कथक नृत्य शैली के लखनऊ घराने का प्रतिनिधित्व करते थे। वे जितने बड़े नृत्य शिल्पी थे उतने ही ऊंचे दर्जे के गायक और‌ तबला वादक भी थे। कविता लेखन और गाने की सुर देने में भी वे उतनी ही गभींरता और तन्मयता के साथ डुबकी लगाते थे। यही नहीं वे बेहतरीन चित्रकारी ‌भी करते थे।‌
बिरजू महाराज ने नृत्य की अपनी पहली प्रस्तुति मात्र सात साल की उम्र में दिया था। नृत्य की तालिम उन्हें अपने पिता और गुरु पंडित अच्छन महाराज जी से मिली थी। बाद‌ मे पिता के निधन के बाद उनके ‌दो चाचा जो स्वंयम बड़े कलाकार थे- पंडित शंभू महाराज और लच्छू महाराज ने उनके नृत्य शैली को तराशा और वे कथक नृत्य के सबसे नायाब हीरा ‌बनकर चमके। बिरजू महाराज अपनी मनमोहक भाव-भंगिमाओं के साथ कथानक को प्रस्तुत करने का जरिया बनाया था। अपने शरीर के अलग-अलग हिस्से, मसलन- हाथ, उंगलियां, चेहरा, भवें, पांव की थिरकन, कमर की लचक, कलाइयों की गति…ये सभी एक लयबद्ध तरीके से भाव की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर प्रस्तुत करते थे।
देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपने नृत्य के मनमोहक प्रस्तुति के बदौलत लाखों प्रशंसकों के हृदय पर राज करने वाले इस महान कलाकार को पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कालिदास सम्मान, फिल्म फेयर अवार्ड, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार आदि से समय समय पर सम्मानित किया गया था। माधुरी दीक्षित जैसी कई प्रसिद्ध बालीवुड अभिनेत्रीयों को भी उन्होंने फिल्मों में नृत्य की प्रस्तुति के लिए प्रशिक्षण दिया था। पिछले रविवार की रात 12 बजे के आसपास उनके परिवार के सभी सदस्य जब खाने के ‌बाद अंताक्षरी खेल रहे थे तो लेटें लेटें अंताक्षरी में गाये जा रही पुरानी हिंदी फिल्मी गानों का आनंद उठा रहे बिरजू महाराज जी को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें ‌बचाया नहीं जा सका। पिछले एक‌ महिने से महाराज जी किडनी की समस्या से जूझ रहे थे ‌और डायलिसिस पर थे।
झारखंड से भी उनका नाता रहा था। धनबाद, जमशेदपुर और रांची के कई कलाकार महाराज जी ‌से नृत्य की प्रशिक्षण लेकर अपनी कला को निखार चुके हैं।ऐसे मनीषी नृत्य शिल्पी को हमारे और से बारंबार प्रणाम निवेदित है।

 

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