JAMSHEDPUR -अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू औऱ राजद नेता ओम प्रकाश ने नए कृषि बिल पर उठाए सवाल

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जमशेदपुर
अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू और राजद के प्रदेश महासचिव ओम प्रकाश ने संसद में बनने वाले कानून को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संसद में जब कोई कानून बनता है तो उस कानून के बनने के बाद फायदे का आकलन अनुभवी और कानून के जानकार करते हैं और उससे होने वाले दूरगामी परिणामों पर गहन विचार विमर्श होता है। आम जनता यही सोचती है कि संसद में कोई संसोधन या नया कानून जनहित के लिए बनता है। सरकार भी जनहित में सोचती है।
उन्होंने कहा कि आज देश के सामने किसानों के लिए बने नये कानून को लेकर अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है। सरकार का कहना है कि यह कानून किसान हित में है। इससे किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी और किसानों का कहना है कि यह कानून किसानों के लिए बंधुआ मजदूर बनाने एवं पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए है। दोनों पक्षों के दावे के लिए अपने तर्क है। सरकार का कहना है कि चाहे जो हो जाए हम कानून वापस नहीं लेंगे। हम जबरदस्ती किसानों को फायदा पहुंचायेंगे ही और किसानों का कहना है कि हम इस काले और पूंजीपतियों के फायदे केलिए बने कानून को किसी परिस्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे। इसी रस्साकसी में दिल्ली की सभी सीमाएं 42 दिनों से बन्द हैं।
उन्होंने कहा कि यहां एक तीसरा पक्ष भी होना चाहिए जो (सरकार और किसानों) दोनों के दावे पर विचार कर सके। दोनों ही पक्षों में कानून के जानकार और इस कानून से सरकार और किसानों के होने वाले फायदे और नुकसान का आकलन करने वाले वाले लोग होंगे। दोनों ही पक्षों की नियत पर विचार करना होगा।
वर्तमान समय ऐसा नहीं रहा कि कोई भी व्यक्ति मनमानी करे। आप किसी बीमार व्यक्ति के भी घर जाकर जबरदस्ती अपनी मनपसंद दवा नहीं पीला सकते, क्योंकि जिसे आप दवा बता रहे हैं वह उसे जहर करार दे रहा है। अब रास्ता एक ही बचता है। या तो उसे समझाकर अपने बातों से यह साबित कर दे कि आपकी दवा उसे ठीक कर देगी अन्यथा वह अपने सिद्धांतों पर अटल है और आपके दवा से वेहतर दवा उसके पास है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा बनाए गए कानून वर्तमान समय में सरकार के लिए सही हो परन्तु किसानों और उनके अनुभवी लोगों के हिसाब से यह काला कानून है। ऐसे में यहां सवाल यह उठता है कि सरकार जबरदस्ती इस कानून को बंदुक की नोक पर किसानों को क्यों मनवाना चाह रही है।
बस यहीं से सरकार की नियत पर संदेह उत्पन्न होने लगता है। आखिर क्यों? सरकार क्यों किसानों के इच्छा के विरुद्ध इस कानून को बंदूक की नोक पर थोपना चाहती है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को पूंजीपतियों से काले धन वसूली का लाभ नहीं दिखाई दे रहा तो किसानों को बंदूक की नोक पर कानून मनवाने की आवश्यकता क्यों पड़ी है?

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