चक्रधरपुर प्रखंड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर स्थित एक हजार फीट उंची पहाड़ों में बसा है लांजी गांव

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 आजादी के 70 वर्ष बाद भी गांव में नहीं बनी सड़क, नहीं पहुंची बिजली, नहीं मिला स्वच्छ पेयजल 

ग्रामसभा आयोजित कर साढ़े छह किलोमीटर सड़क निर्माण कराने का लिया गया था निर्णय 

– सड़क निर्माण में श्रमदान नहीं करने वालों पर लगता है जुर्माना 

✍रामगोपाल जेना
चक्रधरपुर :
अपने स्थापना काल से उपेक्षित ग्रामीण जब किसी का साथ नहीं पाये, तो खुद साथ हुए और एक मिशाल पेश करते हुए साढ़े छह किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण शुरू कर दिया. कोई समतल रास्ता नहीं, बल्कि दो पहाड़ों के बीच से एक लंबा रास्ता निकाला लिया. इसके लिए पहाड़ काटने पड़े, चट्टान तोड़ने पड़े, मुरूम मिट्टी डाले गये. कोई एक ग्रामीण नहीं बल्कि समूचा गांव, महिला, बच्चे व बुजुर्ग सभी इस श्रमदान में शामिल हुए. एक महीने की कठिन परिश्रम के बाद साढ़े किलोमीटर में से साढ़े तीन किलोमीटर लंबी सड़क बनाई जा चुकी है और शेष सड़क का निर्माण जारी है. पश्चिमी सिंहभूम के चक्रधरपुर प्रखंड अंतर्गत होयोहांतु गांव के एक हजार फीट उंची पहाड़ों में बसे लांजी गांव का यह मामला है. जब इस पुण्य कार्य की खबर चक्रधरपुर पहुंची, तो पत्रकारों का एक समूह इसकी वास्तविक्ता जानने के लिए चक्रधरपुर से 25 किलोमीटर दूर अतिनक्सल प्रभावित व सुदूरवर्ती गांव लांजी पहुंचा. जहां ग्रामीणों का हौसला देख सभी हैरत में पड़ गये. सभी अपने काम धाम को छोड़ कर गांव का हर वर्ग सड़क बनाने में लीन था. श्रमदान करने वालों में मंगल सिंह भूमिज, फगुआ पुरती, रागो भूमिज, टोपी डांगिल, सोमा हांसदा, सोमनाथ भूमिज, शुरूवा भूमिज, फूलमनी भूमिज, चांदु भूमिज, लखीमुनी भूमिज समेत काफी संख्या में ग्रामीण महिला-पुरूष, बुजुर्ग व बच्चे सेवा दे रहे थे.

ग्रामसभा में ग्रामीणों ने लिया था निर्माण 

गांव में सड़क बनाने के लिए किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया, तो होयोहातु के मुखिया श्रीमती पालो हांसदा के नेतृत्व में लांजी गांव में एक माह पूर्व ग्रामसभा आयोजित हुआ. जमीन से एक हजार उंचा पहाड़ चढ़ने के लिए साढ़े छह किलोमीटर सड़क निर्माण करने का निर्माण लिया गया. ग्रामसभा के एक सप्ताह बाद 29 अक्तूबर 2017 से ग्रामीणों ने श्रमदान करना शुरू किया. एक माह के अंतराल में ग्रामीणों ने पहाड़ को काट कर छह फीट चौड़ी व साढ़े तीन किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कर डाला. शेष बचे सड़क का निर्माण कार्य में ग्रामवासी लगे हुए हैं.

एक हजार फीट उंचा पहाड़ में बसा है लांजी गांव 

लांजी गांव प्रखंड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर स्थित एक हजार फीट उंचे पहाड़ों में बसा है. यहां के लोग नीचे उतरने व उपर चढ़ने के लिए डेढ़ फीट संक्रीण रास्ता का उपयोग करते हैं. वह भी रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर व चट्टानों के बीच से आना जाना करना पड़ता है. रास्ते के एक तरफ खाई में गिरने का भय बना रहता है. नीचे से सामग्रियों को उपर लाना हो तो ग्रामीण अपने कंधे में रख कर लाते हैं. इससे उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

गर्भवती महिला व मरीजों को खटिया में उतारना पड़ता है 

गांव में सड़क नहीं होने के कारण ग्रामीण गर्भवती महिलाओं व मरीजों को खटिया एवं अपने गोद में लेकर पहाड़ से नीचे उतरते हैं. नीचे से पहाड़ चढ़ने के लिए कई घाटीनुमा रास्ता मिलता है. जिसकी दूरी साढ़े छह किलोमीटर है. इस दूरी को तय करने में काफी वक्त लग जाता है. जिसके बाद ग्रामीणों को चिकित्सा सुविधा मिल पाती है. वक्त पर चिकित्सा नहीं मिलने के कारण मौत का भी डर बना रहता है.

श्रमदान नहीं करने पर लगता है जुर्माना 

ग्रामसभा में लिये गये फैसले के अनुसार सड़क निर्माण करने में प्रत्येक घर से एक व्यक्ति को श्रमदान करना अनिवार्य है. जिस घर का व्यक्ति श्रमदान नहीं करता है, उसे प्रत्येक दिन दो सौ रूपये का जुर्माना देना पड़ता है. ग्रामीण लगातार छह दिनों तक श्रमदान करते हैं. उसके बाद एक दिन सभी ग्रामीण मिल कर अवकाश में रहते हैं. उसके बाद पुन: ग्रामीण श्रमदान कर सड़क निर्माण में जुट जाते हैं. ग्रामीण साबल, हथौड़ा, कुदाल, गैंईता, कढ़ाई, गमला एवं लकड़ी से मिट्टी समतल करने वाल औजार का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये सभी ग्रामीण अपने ही घरों से लेकर आते हैं.

कभी प्रशासनिक पदाधिकारी या राजनेता नहीं पहुंचे गांव 

आजादी के 70 वर्ष गुजरने के बाद भी आजतक लांजी गांव में प्रशासनिक पदाधिकारी या राजनेता का कदम नहीं पड़ा. जिस कारण यह गांव सरकारी लाभों से कोसों दूर है. गांव में पक्की सड़क तक नहीं है, न ही गांव में बिजली पहुंची है. आज भी गांव के लोग ढ़िबरी युग में जीते हैं. गांव में स्वास्थ्य व्यवस्था की घोर कमी है.

जलावन लकड़ी व खटिया बना कर करते हैं जीविकोपार्जन 

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लांजी गांव के ग्रामीण जलावन लकड़ी और खटिया बना कर झरझरा हाट बाजार में बेचते हैं. इससे जो आमदानी होती है. उनका जीविकोपार्जन होता है. ग्रामीण हरी सब्जी की खेती भी करते हैं. कुछ ग्रामीण रोजाना मजदूरी भी करने शहर की ओर आते हैं.

गांव में नहीं है चापाकल, चुआं के पानी से बुझती है प्यास 

लांजी गांव में एक भी चापाकल नहीं है. यहां के लोग पहाड़ के झरना व चुआं खोद कर उसी पानी को पी कर अपना प्यास बुझाते हैं. रास्ता नहीं होने के कारण गांव में बोरिंग गाड़ी भी नहीं घुस पाती है. ग्रामीणों ने चंदा उठा कर गांव के एक रिंग कुआं में चापाकल लगाया था. कुछ दिन ठीक रहा, उसके बाद चापाकल खराब हो गया. जो आज तक खराब ही है.

गांव में एक हजार से अधिक आबादी है

लांजी गांव में एक हजार से अधिक की आबादी है. गांव में कुल सात टोले हैं. ये टोले लांजी, सरबलडीह, पाकिला, रेंगोली, टोपुकउली, टुटेडीह एवं लातरडीह हैं. डेढ़ सौ से अधिक परिवार है. समूचा गांव मिट्टी के घरों से बसा है. झाड़ियों से दीवार बनाये गये हैं. पक्का मकान एक भी नहीं है.

ममता वाहन पहुंचती है पहाड़ के नीचे : सहिया 

सहिया सरोज तामसोय व रूपाली भूमिज ने कहा कि लांजी गांव जाने के लिए सड़क नहीं होने के कारण गर्भवती महिला को प्रसव के लिए अस्पताल ले जाने के समय ममता वाहन को फोन किया जाता है. समय पर ममता वाहन आता है, लेकिन सड़क नहीं होने के कारण समय पर गर्भवती महिला को अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सकता है. गर्भवती महिला या मरीज को खटिया या गोदी में उठा कर नीचे लाया जाता है. गांव में आंगनबाड़ी केंद्रे है.

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ग्रामीणों की कहानी, उनकी जुबानी 

सरकार की अनदेखी से विकास नहीं पहुंच पाने का एहसास ग्रामीणों को है. जिसका खामियाजा गरीब ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है. गांव में 150 से अधिक परिवार रहते हैं. इसके बावजूद सरकार का ध्यान नहीं है : मंगल सिंह भूमिज

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सरकार बड़े-बड़े वादे करती है. लेकिन सरकार की कोई योजना धरातल में नहीं उतरता है. इसका उदाहरण हमारा गांव लांजी है. यहां आज तक कोई भी प्रशासनिक पदाधिकारी या राजनेता कभी झांकने तक नहीं आये : फागुआ पुरती
रास्ते के बगैर विकास संभव नहीं है. लेकिन सरकार यहां रास्ता नहीं बना रही है. रास्ते के अभाव से ग्रामीणों को काफी कठिनाईयां उठानी पड़ती है. इन कठिनाईयों को समाप्त करने के लिए श्रमदान कर सड़क निर्माण किया गया है : रागो भूमिज

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सड़क नहीं होने से ग्रामीण नर्क की जिंदगी जीने को विवश हैं. लोगों को बिजली, पानी व सड़क की सुविधाएं मिलनी चाहिए. लेकिन सरकार हमें नक्शे से ही मिटाने का काम कर रही है : फूलमनी भूमिज

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लांजी गांव में सड़क निर्माण के लिए स्थानीय विधायक, सांसद व प्रशासन को लिखित आवेदन दिया गया था. इसके बाद भी इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिस कारण यहां के ग्रामीण काफी परेशान हैं : जोगेन सिंह हांसदा

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